महाविद्या-भाग-8



महाविद्या-भाग-8

महाविद्याओ में आठवें स्थान पर महाविद्या बगलामुखी, पीताम्बरा नाम से प्रसिद्ध, पीले रंग से सम्बंधित।
स्तंभन कर्म की अधिष्ठात्री महाविद्या बगलामुखी।

बगलामुखी दो शब्दों के मेल से बना हैं, पहला बगला तथा दूसरा मुखी। बगला से अभिप्राय हैं 'विरूपण का कारण' और मुखी से तात्पर्य हैं मुख। देवी का सम्बन्ध मुख्यतः स्तम्भन कार्य से हैं, फिर वह मनुष्य मुख, शत्रु, विपत्ति हो या कोई घोर प्राकृतिक आपदा। महाविद्या बगलामुखी महाप्रलय जैसे महा-विनाश को भी स्तंभित करने की पूर्ण शक्ति रखती हैं; देवी स्तंभन कार्य की अधिष्ठात्री हैं। स्तंभन कार्य के अनुरूप देवी ही ब्रह्म अस्त्र का स्वरूप धारण कर, तीनों लोकों में किसी को भी स्तंभित कर सकती हैं। शत्रुओं का नाश तथा कोर्ट-कचहरी में विजय हेतु देवी की कृपा अत्यंत आवश्यक हैं, विशेषकर झूठे अभियोगों प्रकरणों हेतु।

देवी! पीताम्बरा नाम से त्रि-भुवन में प्रसिद्ध हैं, पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के मेल से बना हैं, पहला पीत तथा दूसरा अम्बरा; अभिप्राय हैं, पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली। देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिय हैं। पीले रंग से सम्बंधित द्रव्य ही इनकी साधना-आराधना में प्रयोग होते हैं; वे पीले फूलो की माला धारण करती हैं, देवी पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती हैं, पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। पञ्च तत्वों द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड निर्मित हुआ हैं, जिनमें पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पीला रंग प्रिय हैं। देवी की साधना दक्षिणाम्नायात्मक तथा ऊर्ध्वाम्नाय दो पद्धतिओं से की जाती हैं, उर्ध्वमना स्वरूप में देवी दो भुजाओं से युक्त तथा दक्षिणाम्नायात्मक में चार भुजाएं हैं।

महाविद्या बगलामुखी समुद्र मध्य स्थित मणिमय मंडप में स्थित रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए हैं, इनकी दो भुजाएँ हैं। बाईं भुजा से इन्होंने शत्रु की जिह्वा पकड़ रखी हैं तथा दाहिने भुजा से इन्होंने मुगदर धारण कर रखी हैं। देवी का शारीरिक वर्ण सहस्रों उदित सूर्यों के सामान हैं तथा नाना प्रकार के अमूल्य रत्न जड़ित आभूषण से देवी सुशोभित हैं, देवी का मुख मंडल अत्यंत ही सुन्दर तथा मनोरम हैं। सत्य-युग में सम्पूर्ण पृथ्वी को नष्ट करने वाला वामक्षेप (तूफान) आया, जिस कारण प्राणियों के जीवन पर संकट छा गया। भगवान विष्णु ने देवी बगलामुखी की सहायता से ही उस घोर तूफ़ान का स्तंभन किया तथा चराचर जगत के समस्त जीवों के प्राणों की रक्षा की। देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु के तेज से हुआ, जिसके कारण देवी सत्व गुण संपन्न हैं।

बगलामुखी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है, पहला 'बगला' तथा दूसरा 'मुखी'। बगला से अभिप्राय हैं 'विरूपण का कारण' (सामान्य रूप से वक या वगुला एक पक्षी हैं, जिसकी क्षमता एक जगह पर अचल खड़े हो शिकार करना है) तथा मुखी से तात्पर्य मुख, मुख स्तम्भन या विपरीत मोड़ने वाली देवी।

व्यष्टि रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली तथा समष्टि रूप में परमात्मा की संहार करने वाली देवी बगलामुखी हैं, इनके भैरव महा मृत्युंजय हैं। देवी शक्ति साक्षात ब्रह्म-अस्त्र हैं, जिसका संधान त्रिभुवन में किसी के द्वारा संभव नहीं हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश देवी बगलामुखी में हैं।


प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।

स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, सत्य-युग में इस चराचर जगत को नष्ट करने वाला भयानक वातक्षोम (तूफान, घोर अंधी) आया। जिसके कारण समस्त प्राणी तथा स्थूल तत्वों के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा था, सभी काल का ग्रास बनने जा रहे थे। संपूर्ण जगत पर संकट आया हुआ देखकर, जगत के पालन कर्ता श्रीहरि भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हो गए और भगवान शिव के पास जाकर समस्या के निवारण हेतु उपाय पूछा। भगवान शिव ने बताया की शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इस समस्या का समाधान करने में सक्षम नहीं हैं। भगवान विष्णु सौराष्ट्र प्रान्त में गए तथा हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर, अपनी सहायतार्थ देवी श्रीविद्या महा त्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न करने हेतु तप करने लगे। उस समय देवी श्रीविद्या, सौराष्ट्र के एक हरिद्रा सरोवर में वास कर रही थी। भगवान विष्णु के तप से संतुष्ट हो श्रीविद्या त्रिपुरसुंदरी, बगलामुखी स्वरूप में उनके सनमुख अवतरित हुई, जो पीत वर्ण से युक्त होकर उनसे साधना करने का कारण ज्ञात किया। भगवान विष्णु के निवेदन करने पर देवी बगलामुखी तुरंत ही अपनी शक्तिओं का प्रयोग कर, विनाशकारी तूफान को शांत किया या कहे तो स्तंभित किया, इस प्रकार उन्होंने सम्पूर्ण जगत की रक्षा की। वैशाख शुक्ल अष्टमी के दिन देवी बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ था।

देवी बगलामुखी के प्रादुर्भाव की दूसरी कथा देवी धूमावती के प्रादुर्भाव के समय से सम्बंधित हैं। क्रोध वश देवी पार्वती ने अपने पति शिव का भक्षण किया था। देवी पार्वती का वह उग्र स्वरूप, जिसने अपने पति का भक्षण किया वह बगलामुखी शक्ति थी तथा भक्षण पश्चात देवी, धूमावती नाम से विख्यात हुई।


संक्षेप में देवी बगलामुखी से सम्बंधित मुख्य तथ्य। 


मुख्य नाम :            बगलामुखी।
अन्य नाम :            पीताम्बरा (सर्वाधिक जनमानस में प्रचलित नाम), श्री वगला।
भैरव :                   मृत्युंजय।
भगवान  के २४ अवतारों से सम्बद्ध : कूर्म अवतार।
तिथि :                  वैशाख शुक्ल अष्टमी।
कुल :                   श्रीकुल।
दिशा :                  पश्चिम।
स्वभाव :              सौम्य-उग्र।
कार्य :                 सर्व प्रकार स्तम्भन शक्ति प्राप्ति हेतु, शत्रु-विपत्ति-निर्धनता नाश तथा कचहरी (कोर्ट) में विजय हेतु।
शारीरिक वर्ण :    पीला।


क्रमश:

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