श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: द्वाविंश अध्यायः श्लोक 10-17 का हिन्दी अनुवाद

 

(लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
पंचम स्कन्ध: द्वाविंश अध्यायः
श्लोक 10-17 का हिन्दी अनुवाद


ये जो सोलह कलाओं से युक्त मनोमय, अन्नमय, अमृतमय, पुरुषस्वरूप भगवान् चन्द्रमा हैं- ये ही देवता, पितर, मनुष्य, भूत, पशु, पक्षी, सरीसृप और वृक्षादि समस्त प्राणियों के प्राणों का पोषण करते हैं; इसलिये इन्हें ‘सर्वमय’ कहते हैं।

चन्द्रमा से तीन लाख योजन ऊपर अभिजित् के सहित अट्ठाईस नक्षत्र हैं। भगवान् ने इन्हें कालचक्र में नियुक्त कर रखा है, अतः ये मेरु को दायीं ओर रखकर घूमते रहते हैं। इनसे दो लाख योजन ऊपर शुक्र दिखायी देता है। यह सूर्य की शीघ्र, मन्द और समान गतियों के अनुसार उन्हीं के समान कभी आगे, कभी पीछे और कभी साथ-साथ रहकर चलता है। यह वर्षा करने वाला ग्रह है, इसलिये लोकों को प्रायः सर्वदा ही अनुकूल रहता है। इसकी गति से ऐसा अनुमान होता है कि यह वर्षा रोकने वाले ग्रहों को शान्त कर देता है।

शुक्र की गति के साथ-साथ बुध की भी व्याख्या हो गयी-शुक्र के अनुसार ही बुध की गति भी समझ लेनी चाहिये। यह चन्द्रमा का पुत्र शुक्र से दो लाख योजन ऊपर है। यह प्रायः मंगलकारी ही है; किन्तु जब सूर्य की गति का उल्लंघन करके चलता है, तब बहुत अधिक आँधी, बादल और सूखे के भय की सूचना देता है। इससे दो लाख योजन ऊपर मंगल है। वह यदि वक्रगति से न चले तो, एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगता हुआ बारहों राशियों को पार करता है। यह अशुभ ग्रह है और प्रायः अमंगल का सूचक है।

इसके ऊपर दो लाख योजन की दूरी पर भगवान् बृहस्पति जी हैं। ये यदि वक्रगति से न चलें, तो एक-एक राशि को एक-एक वर्ष में भोगते हैं। ये प्रायः ब्राह्मण कुल के लिये अनुकूल रहते हैं। बृहस्पति से दो लाख योजन ऊपर शनैश्चर दिखायी देते हैं। ये तीस-तीस महीने तक एक-एक राशि में रहते हैं। अतः इन्हें सब राशियों को पार करने में तीस वर्ष लग जाते हैं। ये प्रायः सभी के लिये अशान्तिकारक हैं। इनके ऊपर ग्यारह लाख योजन की दूरी पर कश्यपादि सप्तर्षि दिखायी देते हैं। ये सब लोकों की मंगल-कामना करते हुए भगवान् विष्णु के परमपद ध्रुवलोक की प्रदक्षिणा किया करते हैं।

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