श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्यायः श्लोक 18-26 का हिन्दी अनुवाद

 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्यायः
श्लोक 18-26 का हिन्दी अनुवाद


जो मनुष्य इस लोक में बिना पंच महायज्ञ किये तथा जो कुछ मिले, उसे बिना किसी दूसरे को दिये स्वयं ही खा लेता है, उसे कौए के समान कहा गया है। वह परलोक में कृमिभोजन नामक निकृष्ट नरक में गिरता है। वहाँ एक लाख योजन लंबा-चौड़ा एक कीड़ों का कुण्ड है। उसी में उसे भी कीड़ा बनकर रहना पड़ता है और जब तक अपने पापों का प्रायश्चित न करने वाले उस पापी के-बिना दिये और बिना हवन किये खाने के-दोष का अच्छी तरह शोधन नहीं हो जाता, तब तक वह उसी में पड़ा-पड़ा कष्ट भोगता रहता है। वहाँ कीड़े उसे नोचते हैं और वह कीड़ों को खाता है। राजन्! इस लोक में जो व्यक्ति चोरी या बरजोरी से ब्राह्मण के अथवा आपत्ति का समय न होने पर भी किसी दूसरे पुरुष के सुवर्ण और रत्नादि का हरण करता है, उसे मरने पर यमदूत सन्दंश नामक नरक में ले जाकर तपाये हुए लोहे के गोलों से दागते हैं और संड़सी से उसकी खाल नोचते हैं। इस लोक में यदि कोई पुरुष अगम्या स्त्री के साथ सम्भोग करता है अथवा कोई स्त्री अगम्य पुरुष से व्यभिचार करती है, तो यमदूत उसे तप्तसूर्मि नामक नरक में ले जाकर कोड़ों से पीटते हैं तथा पुरुष को तपाये हुए लोहे की स्त्री-मूर्ति से और स्त्री को तपायी हुई पुरुष-प्रतिमा से आलिंगन कराते हैं। जो पुरुष इस लोक में पशु आदि सभी के साथ व्यभिचार करता है, उसे मृत्यु के बाद यमदूत वज्रकण्टकशाल्मली नरक में गिराते हैं और वज्र के समान कठोर काँटों वाले सेमर के वृक्ष पर चढ़ाकर फिर नीचे की ओर खींचते हैं। जो राजा या राजपुरुष इस लोक में श्रेष्ठ कुल में जन्म पाकर भी धर्म की मर्यादा का उच्छेद करते हैं, वे उस मर्यादातिक्रमण के कारण मरने पर वैतरणी नदी में पटके जाते हैं। यह नदी नरकों की खाई के समान है; उसमें मल, मूत्र, पीब, रक्त, केश, नख, हड्डी, चर्बी, मांस और मज्जा आदि गंदी चीजें भरी हुई हैं। वहाँ गिरने पर उन्हें इधर-उधर से जल के जीव नोचते हैं। किन्तु इससे उनका शरीर नहीं छूटता, पाप के कारण प्राण उसे वहन किये रहते हैं और वे उस दुर्गति को अपनी करनी का फल समझकर मन-ही-मन सन्तप्त होते रहते हैं। जो लोग शौच और आचार के नियमों का परित्याग कर तथा लज्जा को तिलांजलि देकर इस लोक में शूद्राओं के साथ सम्बन्ध गाँठकर पशुओं के समान आचरण करते हैं, वे भी मरने के बाद पीब, विष्ठा, मूत्र, कफ और मल से भरे हुए पूयोद नामक समुद्र में गिरकर उन अत्यन्त घृणित वस्तुओं को ही खाते हैं। इस लोक में जो ब्राह्मणादि उच्च वर्ण के लोग कुत्ते या गधे पालते और शिकार आदि में लगे रहते हैं तथा शास्त्र के विपरीत पशुओं का वध करते हैं, मरने के पश्चात् वे प्राणरोध नरक में डाले जाते हैं और वहाँ यमदूत उन्हें लक्ष्य बनाकर बाणों से बींधते हैं। जो पाखण्डी लोग पाखण्डपूर्ण यज्ञों में पशुओं का वध करते हैं, उन्हें परलोक में वैशस (विशसन) नरक में डालकर वहाँ के अधिकारी बहुत पीड़ा देकर काटते हैं। जो द्विज कामातुर होकर अपनी स्वर्णा भार्या को वीर्यपान कराता है, उस पापी को मरने के बाद यमदूत वीर्य की नदी (लालभक्ष नामक नरक) में डालकर वीर्य पिलाते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: