श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: एकत्रिंश अध्यायः श्लोक 26-31 का हिन्दी अनुवाद.

 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
चतुर्थ स्कन्ध: एकत्रिंश अध्यायः
श्लोक 26-31 का हिन्दी अनुवाद.


श्रीशुकदेव जी कहते हैं- राजन्! यहाँ तक स्वायम्भुव मनु के पुत्र उत्तानपाद के वंश का वर्णन हुआ, अब प्रियव्रत के वंश का विवरण भी सुनो। राजा प्रियव्रत ने श्रीनारद जी से आत्मज्ञान का उपदेश पाकर भी राज्य भोग किया था तथा अन्त में इस सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने पुत्रों में बाँटकर वे भगवान् के परमधाम को प्राप्त हुए थे। राजन्! इधर श्रीमैत्रेय जी के मुख से यह भगवद्गुणानुवाद युक्त पवित्र कथा सुनकर विदुर जी प्रेममग्न हो गये, भक्तिभाव का उर्द्रेक होने से उनके नेत्रों से पवित्र आँसुओं की धारा बहने लगी तथा उन्होंने हृदय में भगवच्चरणों का स्मरण करते हुए अपना मस्तक मुनिवर मैत्रेय जी के चरणों पर रख दिया। विदुर जी कहने लगे- महायोनिन्! आप बड़े ही करुणामय हैं। आज आपने मुझे अज्ञानान्धकार के उस पार पहुँचा दिया है, जहाँ अकिंचनों के सर्वस्व श्रीहरि विराजते हैं। श्रीशुकदेव जी कहते हैं- मैत्रेय जी को उपर्युक्त कृतज्ञतासूचक वचन कहकर तथा प्रणाम कर विदुर जी ने उनसे आज्ञा ली और फिर शान्तचित्त होकर अपने बन्धुजनों से मिलने के लिये वे हस्तिनापुर चले गये। राजन्! जो पुरुष भगवान् के शरणागत परमभागवत राजाओं का यह पवित्र चरित्र सुनेगा, उसे दीर्घ आयु, धन, सुयश, आयु, धन, सुयश, क्षेम, सद्गति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।

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