कुण्डली का नवमांश भाव. (डी-9)-ज्योतिष

 

कुण्डली का नवमांश भाव.

(डी-9)-ज्योतिष 


कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि जातक का भाग्य ही नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। बिना नवमांश का अध्य्यन किये बिना भविष्य कथन में अपूर्णता की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है। इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो उसकी प्रभावशीलता संतोषजनक परिलक्षित हो सकती है।

षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण होते है, लेकिन लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली का भी विशेष महत्व होता है। नवमांश एक राशि के नवम भाव को कहते है जो अंश 20 कला का होता है। जैसे, मेष में पहला नवमांश मेष का, दूसरा नवमांश वृष का, तीसरा नवमांश मिथुन का, चौथा नवमांश कर्क का, पाचवां नवमांश सिंह का, छठा कन्या का, सातवाँ तुला का, आठवाँ वृश्चिक का और नवा नवमांश धनु का होता है। नव नवमांश में मेष राशि की समाप्ति होती है और वृष राशि का प्रारम्भ होता है। वृष राशि में पहला नवांश मेष राशि के आखरी नवांश से आगे होता है। इसी तरह वृष में पहला नवमांश मकर का, दूसरा कुंभ का, तीसरा मीन का, चौथा मेष का, पाचवा वृष का, छठा मिथुन का, सातवाँ कर्क का, आठवाँ सिंह का और नवम नवांश कन्या का होता है। इसी तरह आगे राशियों के नवमांश ज्ञात किए जाते है। नवमांश कुंडली से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी नवमांश कुंडली का परिक्षण लग्न कुंडली के साथ-साथ करते है। यदि बिना नवमांश कुंडली देखे केवल लग्न कुंडली के आधार पर ही फल कथन किया जाए तो फल कथन में कमियाँ रह जाती है। क्योंकि ग्रहो की नवमांश कुंडली में स्थिति क्या है? नवमांश कुंडली में ग्रह कैसे योग बना रहे है यह देखना अत्यंत आवश्यक है तभी ग्रहो के बल आदि की ठीक जानकारी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त अन्य वर्ग कुण्डलिया भी अपना विशेष महत्व रखती है। लेकिन नवमांश इन वर्गों में अति महत्वपूर्ण है।

 लग्न और नवमांश कुंडली परीक्षण.


यदि लग्न और नवमांश लग्न वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक मानसिक और शारीरिक रूप से बलबान होते है। वर्गोत्तम लग्न का अर्थ है - लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियो का लग्न एक ही होना अर्थात् जो राशि लग्न कुंडली के लग्न में हो वही राशि नवमांश कुंडली के लग्न में हो तो यह स्थिति वर्गोत्तम लग्न कहलाती है। इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है। जैसे सूर्य लग्न कुंडली में धनु राशि में हो और नवमांश कुंडली में भी धनु राशि में हो तो सूर्य वर्गोत्तम होगा। वर्गोत्तम होने के कारण ऐसी स्थिति में सूर्य शुभ फल देगा। वर्गोत्तम ग्रह, भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार अपने अनुकूल भाव में बेठा हो तो अधिक श्रेष्ठ फल करता है। शुभ राशियों में वर्गोत्तम ग्रह आसानी से शुभ परिणाम देता है और क्रूर राशियों में वर्गोत्तम ग्रह कुछ संघर्ष भी करा सकता है। जब कोई ग्रह लग्न कुण्डली में अशुभ स्थिति में पीड़ित हो, निर्बल हो या अन्य प्रकार से उसकी स्थिति ख़राब हो लेकिन नवमांश कुंडली में वह ग्रह शुभ ग्रहो के प्रभाव में हो, शुभ और बलबान हो गया हो, तब वह ग्रह शुभ फल देता है। इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में अपनी नीच राशि में हो और नवमांश कुंडली में वह ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो उसे बल प्राप्त हो जाता है, जिस कारण वह शुभ फल देने में सक्षम होता है। ग्रह की उस स्थिति को नीचभंग भी कहते है। चंद्र और चंद्र राशि से जातक के स्वभाव का अध्ययन किया जाता है। लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में चंद्र जिस राशि में हो तथा यदि नवमांश कुंडली की चंद्रराशि का स्वामी लग्न कुंडली के चंद्रराशि से अधिक बली हो और चंद्रमा भी लग्न कुंडली से अधिक बली नवमांश कुंडली में हो तो जातक का स्वभाव नवमांश कुंडली के अनुसार होगा। ऐसे में जातक के मन पर नवमांश कुंडली के चंद्र की स्थिति का प्रभाव अधिक पड़ेगा। यदि नवमांश कुंडली का लग्न, लग्नेश बली हो और नवमांश कुंडली में राजयोग बन रहा हो और ग्रह बली हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है। नवमांश कुंडली मुख्यरूप से विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए देखी जाती है। यदि लग्न कुंडली में विवाह होने की या वैवाहिक जीवन की स्थिति ठीक न हो अर्थात् योग न हो लेकिन नवमांश कुंडली में विवाह और वैवाहिक जीवन की स्थिति शुभ और अनुकूल हो, विवाह के योग हो तो वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।

 नवमांश कुंडली का निर्माण.

 

एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री की होती है। अतः एक राशि का नवमांश या 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री होगा। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों के नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित करने पर स्तिथि निम्न प्रकार होगी..

पहला नवमांश.. 00 से 3.20.
दूसरा नवमांश.. 3.20 से 6.40.
तीसरा नवमांश.. 6.40 से 10.00.
चौथा नवमांश.. 10.00 से 13.20.
पांचवां नवमांश.. 13.20 से 16.40.
छठा नवमांश.. 16.40 से 20.00.
सातवां नवमांश.. 20.00 से 23.20.
आठवां नवमांश.. 23.20 से 26.40.
नवां नवमांश.. 26.40 से 30.00.


मेष, सिंह और धनु राशि (अग्निकारक) के नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।
वृष, कन्या और मकर राशि (पृथ्वी तत्वीय) के नवमांश का आरम्भ मकर से होता है।
मिथुन, तुला और कुम्भ राशि (वायु कारक) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।
कर्क, वृश्चिक और मीन राशि (जल तत्वीय) के नवमांश का आरम्भ कर्क से होता है।


इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही तत्व स्वभाव की राशि से होता है।

अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए लग्न और ग्रहादि को निम्न प्रकार से निर्धारित किया जाता हैं।
 

लग्न निर्धारण.


किसी कुंडली में लग्न 07:03:15:14 है, अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश, पंद्रह कला और चौदह विकला था, यानी वृश्चिक। वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। 03:15:14 मतलब ऊपर दिए नवमांश स्थिति को देखने से ज्ञात हुआ कि 03:20 तक पहला नवमांश माना जाता है। अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न 07:18:12:12 होता तो 16.40 से 20.00 के मध्य यह डिग्री हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता। इस प्रकार कुंडली का नवमांश धनु लग्न निर्धारित होता।

ग्रह निर्धारण.


किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में 26:13:07 पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट 06:26:13:07 है) चार्ट देखने से ज्ञात कि 26:13:07 आठवें नवमांश जो कि 23.20 से 26.40 के मध्य विस्तार लिए हुए है, के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है, इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।

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