श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: पञ्चविंश अध्यायः श्लोक 10-15 का हिन्दी अनुवाद

 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
पंचम स्कन्ध: पञ्चविंश अध्यायः
श्लोक 10-15 का हिन्दी अनुवाद


जिनमें यह कार्य-कारणरूप सारा प्रपंच भास रहा है तथा अपने निजजनों का चित्त आकर्षित करने के लिये की हुई जिनकी वीरतापूर्ण लीला को परम पराक्रमी सिंह ने आदर्श मानकर अपनाया है, उन उदारवीर्य संकर्षण भगवान् ने हम पर बड़ी कृपा करके यह विशुद्ध सत्त्वमय स्वरूप धारण किया है। जिनके सुने-सुनाये नाम का कोई पीड़ित अथवा पतित पुरुष अकस्मात् अथवा हँसी में भी उच्चारण कर लेता है तो वह पुरुष दूसरे मनुष्यों के भी सारे पापों को तत्काल नष्ट कर देता है-ऐसे शेष भगवान् को छोड़कर मुमुक्षु पुरुष और किसका आश्रय ले सकता है? यह पर्वत, नदी और समुद्रादि से पूर्ण सम्पूर्ण भूमण्डल उन सहस्रशीर्षा भगवान् के एक मस्तक पर एक रजःकण के समान रखा हुआ है। वे अनन्त हैं, इसलिये उनके पराक्रम का कोई परिमाण नहीं है। किसी के हजार जीभें हों, तो भी उन सर्वव्यापक भगवान् के पराक्रमों की गणना करने का साहस वह कैसे कर सकता है? वास्तव में उनके वीर्य, अतिशय गुण और प्रभाव असीम हैं। ऐसे प्रभावशाली भगवान् अनन्त रसातल के मूल में अपनी ही महिमा में स्थित स्वतन्त्र हैं और सम्पूर्ण लोकों की स्थिति के लिये लीला से ही पृथ्वी को धारण किये हुए हैं। राजन्! भोगों की कामना वाले पुरुषों की अपने कर्मों के अनुसार प्राप्त होने वाली भगवान् की रची हुई ये ही गतियाँ हैं। इन्हें जिस प्रकार मैंने गुरुमुख से सुना था, उसी प्रकार तुम्हें सुना दिया। मनुष्य को प्रवृत्तिरूप धर्म के परिणाम में प्राप्त होने वाली जो परस्पर विलक्षण ऊँची-नीची गतियाँ हैं, वे इतनी ही हैं; इन्हें तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने सुना दिया। अब बताओ और क्या सुनाऊँ?

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