श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध षड्-विंश अध्यायः श्लोक 34-40 का हिन्दी अनुवाद

 (लगातार-सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण)

श्रीमद्भागवत महापुराण:
पंचम स्कन्ध षड्-विंश अध्यायः
श्लोक 34-40 का हिन्दी अनुवाद


जो व्यक्ति यहाँ दूसरे प्राणियों को अँधेरी खत्तियों, कोठों या गुफाओं में डाल देते हैं, उन्हें परलोक में यमदूत वैसे ही स्थानों में डालकर विषैली आग के धुएँ में घोंटते हैं। इसीलिये इस नरक को अवटनिरोधन कहते हैं। जो गृहस्थ अपने घर आये अतिथि-अथ्यागतों की ओर बार-बार क्रोध में भरकर ऐसी कुटिल दृष्टि से देखता है मानो उन्हें भस्म कर देगा, वह जब नरक में जाता है, तब उस पापदृष्टि के नेत्रों को गिद्ध, कंक, काक और बटेर आदि वज्र की-सी कठोर चोंचों वाले पक्षी बलात् निकाल लेते हैं। इस नरक को पर्यावर्तन कहते हैं। इस लोक में जो व्यक्ति अपने को बड़ा धनवान् समझकर अभिमानवश सबको टेढ़ी नजर से देखता है और सभी पर सन्देह रखता है, धन के व्यय और नाश की चिन्ता से जिसके हृदय और मुँह सूखे रहते हैं; अतः तनिक भी चैन न मानकर जो यक्ष के समान धन की रक्षा में लगा रहता है तथा पैसा पैदा करने, बढ़ाने और बचाने में जो तरह-तरह के पाप करता रहता है, वह नराधम मरने पर सूचीमुख नरक में गिरता है। वहाँ उस अर्थपिशाच पापात्मा के सारे अंगों को यमराज के दूत दर्जियों के समान सूई-धागे से सीते हैं। राजन्! यमलोक में इसी प्रकार के सैकड़ों-हजारों नरक हैं। उनमें जिनका यहाँ उल्लेख हुआ है और जिनके विषय में कुछ नहीं कहा गया, उन सभी में सब अधर्मपरायण जीव अपने कर्मों के अनुसार बारी-बारी से जाते हैं। इसी प्रकार धर्मात्मा पुरुष स्वर्गादि में जाते हैं। इस प्रकार नरक और स्वर्ग के भोग से जब इनसे अधिकांश पाप और पुण्य क्षीण हो जाते हैं, तब बाकी बचे हुए पुण्य-पापरूप कर्मों को लेकर ये फिर इसी लोक में जन्म लेने के लिये लौट आते हैं। इन धर्म और अधर्म दोनों से विलक्षण जो निवृत्ति मार्ग है, उसका तो पहले (द्वितीये स्कन्ध में) ही वर्णन हो चुका है। पुराणों में जिसका चौदह भुवन के रूप में वर्णन किया गया है, वह ब्रह्माण्डकोश इतना ही है। यह साक्षात् परमपुरुष श्रीनारायण का अपनी माया के गुणों से युक्त अत्यन्त स्थूल स्वरूप है। इसका वर्णन मैंने तुम्हें सुना दिया। परमात्मा भगवान् का उपनिषदों में वर्णित निर्गुणस्वरूप यद्यपि मन-बुद्धि की पहुँच के बाहर है तो भी जो पुरुष इस स्थूलरूप का वर्णन आदरपूर्वक पढ़ता, सुनता या सुनाता है, उसकी बुद्धि श्रद्धा और भक्ति के कारण शुद्ध हो जाती है और वह उस सूक्ष्मरूप का भी अनुभव कर सकता है। यति को चाहिये कि भगवान् के स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार के रूपों का श्रवण करके पहले स्थूलरूप में चित्त को स्थिर करे, फिर धीरे-धीरे वहाँ से हटाकर उसे सूक्ष्म में लगा दे। परीक्षित! मैंने तुमसे पृथ्वी, उसके अन्तर्गत द्वीप, वर्ष, नदी, पर्वत, आकाश, समुद्र, पाताल, दिशा, नरक, ज्योतिर्गण और लोकों की स्थिति का वर्णन किया। यही भगवान् का अति अद्भुत स्थूल रूप है, जो समस्त जीव समुदाय का आश्रय है।

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