अति-विशिष्ठ कारक
ग्रह.
(ज्योतिष)
सभी नौ ग्रहों के अपने अपने कारक भाव होते हैं और कुछ भाव ऐसे भी होते हैं, जिनमें ग्रह दिग्बली होते हैं। इसी प्रकार लग्न कुंडली के कुछ भाव ऐसे भी होते हैं, जिनमे कुछ विशेष ग्रहों के स्थित होने पर भाव सम्बन्धी प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। ऐसे ग्रहों को अतिविशिष्ठ कारक ग्रह कहा जाता है। अतिविशिष्ठ कारक ग्रह जिस भाव में अति विशिष्ट होता है, यदि उसी भाव में विराजमान हो जाए तो उस भाव विशेष के प्रभाव में वृद्धि हो जाती है।
सूर्य.
लग्न
और नवम में सूर्य कारक और दशम में दिग्बली होते हैं। ग्यारहवें भाव में स्थित होने
पर सूर्य अतिविशिष्ठ ग्रह हो जाता हैं, जिससे इस भाव के प्रभाव में वृद्धिकारक
होते हैं। जिस किसी जातक की जन्मकुंडली में ऐसा सूर्य विद्यमान हो उसे जीवन भर धन
प्राप्त होता रहता है।
चंद्र.
चन्द्र
चौथे भाव में कारक और चौथे भाव में ही दिग्बली भी होता हैं। यही चंद्र यदि लग्न
अथवा सप्तम में स्थित हो तब अतिविशिष्ठ कारक हो जाता हैं। जिस किसी जातक की
लग्नकुंडली में प्रथम भावस्थ चंद्र हो तो ऐसा जातक भावुक होता है और दूसरों का भला
चाहने और करने वाला भी। ऐसे जातक का समाज हमेशा आदर करता है। यही चंद्र यदि सप्तम
भावस्थ हो जाए तो जातक/जातिका को सौम्य स्वभाव का जीवनसाथी प्राप्त होता है, जो
बड़ों का मान रखता है और सबको साथ लेकर चलता है।
मंगल.
मंगल
तीसरे और छठे भाव में कारक और दशम भाव में दिग्बली हो जाता हैं। यही मंगल दशम भाव
में स्थित होने पर अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह हो जाता हैं।
बुध.
चौथे
और दसवें भाव में बुध कारक और प्रथम भाव में दिग्बली होता हैं। व्यापार और बुद्धि
का कारक बुध यदि लग्नकुंडली के ग्यारहवें भाव में स्थित हो जाएँ तो अतिविशिष्ठ
योगकारक ग्रह हो जाता हैं। ऐसा जातक किसी एक क्षेत्र से बंधा नहीं रहता बल्कि कई
क्षेत्रों से धनार्जन करता है।
गुरु.
देवगुरु
लग्नकुंडली के दुसरे, पांचवें, नवें, दसवें और
ग्यारहवें भाव के कारक और लग्न में दिग्बली होता हैं। यही गुरु लग्न कुंडली के
पंचम एवं नवम भाव में अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह हो जाता हैं। ऐसा जातक उच्च शिक्षा प्राप्त
करता है।
शुक्र.
शुक्र
सप्तम भाव का कारक और चतुर्थ भाव में दिग्बली होता हैं। यही शुक्र लग्नकुंडली के
द्वादश भाव में स्थित होने पर अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह हो जाता हैं। चौथे भाव में
स्थित होने पर भी शुक्र अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह बन जाता हैं लेकिन द्वादश से कम विशिष्ठ
कारक गिना जाता हैं और सप्तम में भी अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह भी होता हैं, लेकिन
चतुर्थ से कम प्रभावी माना जाता हैं।
शनि.
छठे, आठवें, दसवें,
बारहवें भाव का कारक होता हैं और सातवें भाव में दिग्बली हो जाता हैं।
यही शनि तीसरे और छठवें भाव में स्थित होने पर अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह हो जाता
हैं।
राहु.
तीसरे, छठे और दसवें भाव में कारक होता हैं।
राहु तीसरे, छठे और दसवें भाव में ही स्थित होने पर अतिविशिष्ठ
योगकारक ग्रह माना जाता हैं।
केतु.
दुसरे
और आठवें भाव में कारक होता हैं। केतु दुसरे और आठवें भाव में ही स्थित होने पर
अतिविशिष्ठ योगकारक ग्रह होता हैं।
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