ग्रहों की मित्रता, शत्रुता एवं सम भाव का ज्ञान.

 

ग्रहों की मित्रता, शत्रुता एवं

सम भाव का ज्ञान.

किसी भी ग्रह की मूलत्रिकोण राशि से गिनने पर 2,4,5,8,9,12 भावों के अधिपति उस ग्रह के मित्र तथा शेष भावों के अधिपति उसके शत्रु होते हैं। जिस ग्रह की एक राशि मित्र भाव (2,4,5,8,9,12) में पड़ती हो और एक राशि शत्रु भाव में पड़ती तो वह सम होता है।

उदहारण..

बृहस्पति की मूलत्रिकोण राशि है; धनु। अब बृहस्पति के मित्र एवं शत्रु ग्रह कौन से हैं, यह जानने के लिए आप धनु राशि को लग्न मानकर निम्न प्रकार से देखें।

दूसरे स्थान में (मित्र भाव) में मकर राशि है और तीसरे (शत्रु भाव) में कुम्भ राशि है इसलिए मकर एवं कुम्भ राशि के अधिपति शनि महाराज बृहस्पति के लिए सम हैं। (न मित्र हैं न शत्रु)

चौथे स्थान में मीन राशि है, जो बृहस्पति की अपनी राशि है इसलिए मित्र-शत्रु आदि का प्रश्न ही नहीं उठता।

पंचम स्थान (मित्र भाव) में मंगल की मेष राशि है तथा द्वादश (मित्र भाव) में भी मंगल की ही वृश्चिक राशि है, इसलिए मंगल बृहस्पति के लिए मित्र हैं।

छठे स्थान (शत्रु भाव) में शुक्र की वृषभ राशि है तथा एकादश (शत्रु भाव) में भी शुक्र की ही तुला राशि है, इसलिए शुक्र बृहस्पति के लिए शत्रु हैं।

सप्तम स्थान में (शत्रु भाव) में मिथुन राशि है और दशम (शत्रु भाव) में कन्या राशि है इसलिए मिथुन एवं कन्या राशि के अधिपति बुध महाराज बृहस्पति के लिए शत्रु हैं।

अष्टम (मित्र भाव) में कर्क राशि है, चंद्र अन्य किसी राशि के अधिपति न होने के कारण वे बृहस्पति के मित्र हुए।

नवम (मित्र भाव) में सिंह राशि है, सूर्य अन्य किसी राशि के अधिपति न होने के कारण वे बृहस्पति के मित्र हुए।

आप यदि एक बार 2,4,5,8,9,12 इन अंकों को याद कर लेंगे तो ग्रहों के शत्रु-मित्रत्व को समझने में आसानी होगी।

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