मुन्था. (ज्योतिष)

 मुन्था. (ज्योतिष)

वर्ष कुण्डली में गणना के संदर्भ में मुंथा का अत्यधिक उपयोग किया जाता है. जन्म कुण्डली में मुन्था सदैव लग्न में स्थित होता है और हर वर्ष यह एक राशि आगे बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म मेष लग्न में हो तो जातक के जन्म समय मुन्था मेष राशि में होगा तथा आने वाले वर्ष में यह मुंथा वृष राशि में और इससे आगे आने वाले वर्ष में यह मिथुन में स्थित होगा. इस क्रम से प्रत्येक वर्ष मुंथा एक-एक राशि आगे बढ़ते जाती है. मुंथा कोई ग्रह नहीं है लेकिन यह नवग्रहों के समान ही महत्वपूर्ण है और इसके आधार पर ही वर्ष कुण्डली के अनेक प्रभावों का वर्णन किया जा सकता है. मुन्था का शुभ और अशुभ प्रभाव जातक के जीवन को पूर्ण रुप से प्रभावित करता हैं. ज्योतिष के अनेक शास्त्रों में हमें मुन्था के विषय में बहुत कुछ जानने को मिलता है, उससे मुंथा का महत्व परिलक्षित होता है और जन्म कुंडली के आधार पर मुथा की गणना क वर्ष कुण्डली में जीवन की घटनाओं को वर्ष के लिए अनुमानित किया जाता हैं.

         मुंथा की गणना.

मान्य सूत्र हैं कि जन्म कुंडली के जन्म लग्न भाव में ही मुन्था स्तिथ होती हैं.  जैसे जन्म समय लग्न तुला हैं तो तुला में या अन्य जो भी लग्न हैं, उसमें ही मुन्था मानी जायेगी.

जातक के जिस वर्ष के लिए मुन्था ज्ञात करना हो, उसके जीवन के व्यतीत पूर्ण वर्ष में जन्म लग्न के अंक को जोड़कर यदि उत्तर 12 से अधिक अधिक आता है, तो उसमें 12 से भाग दिजिए और जो शेष संख्या आये उसी संख्या की राशी में मुंथा स्थित होगी. यदि शेष संख्या शून्य आती है तो इसे बारहवीं (मीन) राशि मानेगे.

गति- मुंथा प्रतिवर्ष एक राशि में, एक माह में ढ़ाई अंश तथा एक दिन में ढ़ाई कला चलती है। इसे कभी वक्री नहीं माना गया है.    

मुंथा का प्रभाव.

वर्ष कुण्डली में जन्म कुण्डली के लग्न की भांति मुंथा का महत्त्व होता है. वर्ष के फल तभी शुभ होंगे, जब मुंथेश उच्च युक्त या स्वराशि से युक्त हो. मुन्थेश शुभ ग्रहों से युक्त या उनसे प्रभावित है, तो परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं. मुन्था 2, 9 10, 11 भाव में स्थित होने पर मजबूत आर्थिक पक्ष और अच्छी व्यवसायिक स्थिति को भी दर्शाता है.

मुन्था की विपरित स्थिति.

भाव 4, 6, 8, 12  और सप्तम भाव में मुन्था अच्छी नहीं मानी जाती, यह अशुभ परिणामदायक हो सकती है. इस प्रकार यदि मुन्था षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश युक्त हो तो भी शुभ परिणाम प्रदान करने वाली नहीं होती है. मुन्थेश यदि नीच का हो या नीचता से युक्त हो अथवा पिड़ित, निर्बल या शत्रु भाव में स्थित हो तो यह शुभ परिणाम प्रदान नहीं करता है. मुन्था यदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो विपरित फल प्रदान करती है.

वर्ष कुण्डली में मुन्था की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है, उस भाव तथा भाव के स्वामी को मुन्थेश मानकर, उसके बलाबल अनुसार निर्णय लिया जाता हैं.

4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है. इसी प्रकार वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति का भी आंकलन किया जाता है. वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है.

राहु-केतु से युक्त मुन्था अशुभ फ़लदायक होती है.  

वर्षकुंडली में यदि जन्मकुंडली का लग्नेश निर्बल, अष्टम या सूर्य आदि क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है.  मुंथेश यदि वर्ष कुंडली में अस्त होकर शनि द्वारा दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक को हानी, मानसिक कष्ट व भयंकर रोग से ग्रस्त होने की संभावना होती है.

वर्षलग्न यदि जन्मलग्न या जन्मराशि से अष्टम राशि का हो तो उस वर्ष जातक को भीषण कष्ट व रोग होने की संभावना होती है.  

वर्षकुंडली में यदि चन्द्र 1,6,7,8,12 भाव में पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो उस वर्ष जातक का प्रबल अरिष्ट होता है. जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट की संभावना होती है.    

यदि चन्द्र वर्षकुंडली में मंगल से दृष्ट हो तब अग्नि-भय, राहु-केतु से दृष्ट हो तो शत्रु-भय, सूर्य से दृष्ट हो तो आर्थिक हानि का सामना जातक को करना पड़ता है.

यदि चन्द्र वर्षकुंडली में गुरु से दृष्ट हो तो शुभफलदायक होता हैं. गुरु की दृष्टी जिन भावों/ग्रह में पडती हैं, उनके कारक तत्वों में शुभता की वृध्दि होती है.

ज्योतिष में फलादेश हेतु ग्रहों के लिए निर्धारित सूत्र ही मुन्था के लिये यथावत लागू होते हैं, पर यह सब सिर्फ वर्ष कुंडली तक ही सिमित हैं.  


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