स्वयंभुव-मनु.



स्वयंभुव-मनु.

आपव नामक प्रजापति के धर्म से अयोनिज कन्या शतरूपा का जन्म हुआ। आपव (जो कि बाद में स्वायंभुव मनु कहलाये) ने प्रजा की रचना करने के उपरांत शतरूपा को अपनी पत्नी बना लिया। उसके पुत्र का नाम वीर हुआ। वीर ने प्रजापति कर्दम की कन्या काम्या से विवाह किया तथा दो पुत्रों को जन्म दिया- (1) प्रियव्रत तथा (2) उत्तानपाद। मनु की विस्तृत संतति में ही ध्रुव, वेन इत्यादि हुए। वेन से मनुगण बहुत रुष्ट थे क्योंकि वह अनाचारी था। मुनियों ने उसके दाहिने हाथ का मंथन किया, जिससे राजा पृथु का जन्म हुआ। वे राजसूय यज्ञ करने वाले राजाओं में सर्वप्रथम थे। प्रजाओं को जीविका देने की इच्छा से उनने पृथ्वी से अन्न तथा दूध का दोहन आरंभ किया। साथ-साथ राक्षस, पितर, देवता, अप्सरा, नाग इत्यादि सब इस कर्म में लग गये। कालांतर में उसके दो पुत्र हुए अंतर्धान तथा पातिन। अंतर्धान से शिखंडिनी ने हविर्धान को जन्म दिया। अग्नि की पुत्री घिषणा से हविर्धान ने छह पुत्रों को जन्म दिया- प्राचीनवर्हिस्, शुक्र, गय, कृष्ण, ब्रज और अजिन। प्राचीनवर्हिस ने घोर तप करके समुद्र-कन्या सवर्णा से विवाह किया। उसके दस पुत्र हुए जो एक ही धर्म का पालन करते थे। वे प्रचेता नाम से विख्यात हुए।

ब्रह्मा चिंतातुर थे। 'संभवत: देव ही नहीं चाहता कि सृष्टि का विस्तार हो, अन्यथा इतने प्रयत्न के उपरांत भी मैं सृष्टि का विस्तार नहीं कर पा रहा हूं।' उनके ऐसा सोचते ही उनका शरीर 'क' कहलाता है। अत: दोनों भाग काय (शरीर) कहलाये। उनमें से एक मनु (पुरुष) था, दूसरी शतरूपा (स्त्री) थी। स्वायंभुव मनु ने शतरूपा से पांच संतान प्राप्त कीं: दो पुत्र- प्रियव्रत, उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं- आकूति, देवहूति तथा प्रसूति। मनु ने ब्रह्मा से पूछा कि वे प्रजा के निवास के लिए कौन-सा स्थान ठीक समझते हैं? ब्रह्मा ने चिंतन आरंभ किया, अत: जल में डूबी हुई पृथ्वी को जल के ऊपर लाने का कार्य विष्णु (बाराह) ने किया।

मनु का उल्लेख ऋग्वेद काल से ही मानव सृष्टि के आदि प्रवर्तक और समस्त मानव जाति के आदि-पिता के रूप में किया जाता रहा है। इन्हें 'आदिपुरुष' भी कहा गया है। आरंभ में मनु और यम का अस्तित्व अभिन्न था। बाद में मनु को जीवित मनुष्यों का और यम को दूसरे लोक में, मृत मनुष्यों का आदिपुरुष माना गया।

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक मछली ने मनु से प्रलय की बात कही थी और बाद में इन्हीं से सृष्टि चली। अन्यत्र ये विराट के पुत्र बताए गए हैं जिनसे प्रजापतियों की उत्पत्ति हुई। मत्स्य पुराण मनु को 'मनुस्मृति' का रचयिता और एक शास्त्र प्रवर्तक मानता है। पुराणों के अनुसार मनु चौदह हुए हैं।

वैदिक संहिताओं में मनु को ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है। ये सर्वप्रथम मानव था जो मानव जाति के पिता तथा सभी क्षेत्रों में मानव जाति के पथ प्रदर्शक स्वीकृत हैं। वैदिक कालीन जलप्लावन की कथा के नायक मनु ही है

मनु को विवस्वान या वैवस्वत , विवस्वन्त (सूर्य) का पुत्र; सावर्णि (सवर्णा का वंशज) एवं सांवर्णि संवरण का वंशज) कहते हैं। प्रथम नाम पौराणिक है, जबकि दूसरे नाम ऐतिहासिक हैं। सावर्णि को लुड्विग तुर्वसुओं का राजा कहते हैं, किन्तु यह मान्यता सन्देहपूर्ण है।
पुराणों में मनु को मानव जाति का गुरु तथा प्रत्येक मन्वन्तर में स्थित कहा गया है। वे जाति के कर्त्तव्यों (धर्म) के ज्ञाता है।

भगवद्गीता (10.6) भी मनुओं का उल्लेख करती है। मनु नामक अनेक उल्लेखों से प्रतीत होता है कि यह नाम न होकर उपाधि है। मनु शब्द का मूल मन् धातु (मनन करना) से भी यही प्रतीत होता है। मेधातिथि, जो मनुस्मृति के भाष्यकार हैं, मनु को उस व्यक्ति की उपाधि कहते हैं, जिसका नाम प्रजापति है। वे धर्म के प्रकृत रूप के ज्ञाता थे एवं मानव जाति को उसकी शिक्षा देते थे। इस प्रकार यह विदित होता है कि मनु एक उपाधि है।

मनुरचित 'मानव धर्मशास्त्र' भारतीय धर्मशास्त्र में आदिम व मुख्य ग्रंथ माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों में जहाँ मानव धर्मशास्त्र के अवतरण आये हैं, वे सूत्र रूप में हैं और प्रचलित मनुस्मृति के श्लोकों से नहीं मिलते। वह सूत्रग्रन्थ 'मानव धर्मशास्त्र' अभी तक देखने में नहीं आया। वर्तमान मनुस्मृति को उन्हीं मूल सूत्रों के आधार पर लिखी हुई, कारिका मान सकते हैं। वर्तमान सभी स्मृतियों में यह प्रधान समझी जाती है।

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