विघ्नहर्ता श्री गणेश जी को दूर्वा चढ़ाना





विघ्नहर्ता श्री गणेश जी को दूर्वा चढ़ाना.
 

गणेशजी को - शमी और दूर्वा की 21 गांठे कलावे से बांधकर अर्पण करने से विघ्नों का नाश होता हैं।

गणेशजी की पूजा सभी देवों से पहले की जाती है, गणों के स्वामी होने के कारण उनका नाम गणपति भी है।

ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है, जिनकी कुंडली में केतु ग्रह के कारण परेशानियां आ रही हो, उन्हें गणेशजी का पूजन करने का विधान हैं। गणेशजी ही ऐसे देव है, जिनको हरी दूर्वा चढ़ाई जाती है। दूर्वा से गणेश जी प्रसन्न होते हैं। दूर्वा गणेशजी को अतिशय प्रिय है।

इस बारे में एक कथा प्रचलित है। ऋषि-मुनि और देवताओं को अनलासुर नामक राक्षस ने परेशान कर रखा था। देवताओं के अनुरोध पर गणेशजी ने उसे निगल लिया। इससे उनके पेट में तीव्र जलन हो गई तब कश्यप मुनि ने दूर्वा की 21 गांठ (रस) बनाकर उन्हें सेवन कराया जिससे जलन शांत हो गई।

नीचे लिखे मंत्रो सहित गणेशजी को 21 दूर्वा अर्पित करें। एक मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं। इस प्रकार 9 मंत्रो में 18 दुर्वा अर्पित हो जाएँगी और आखिरी बची 3 दूर्वा अर्पित करते समय समय दसों मंत्रो का एक उच्चारण करें।


मंत्र -

ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः 
ॐ कुमारगुरवे नमः



मंत्रों के साथ पूजा के बाद यथाशक्ति मोदक का भोग लगाएं। 21 मोदक का चढ़ावा श्रेष्ठ माना जाता है।

(गणेशजी को जब भी भोग लगाये, उसमे तुलसी का पत्ता नहीं होना चाहिए।)

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