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(राम-कथा)
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विलोम
(कृष्ण-कथा)
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मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता
हूं जिन्होंने अपनी सीता के संधान में मलय और सह्याद्री की पहाडियों से होते हुए
लंका जाकर रावण का वध किया तथा अयोध्या वापस लौट, दीर्घ काल तक सीता संग वैभव
विलास किया|
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मैं भगवान् श्रीकृष्ण-तपस्वी व् त्यागी, रुक्मणी
तथा गोपियों संग क्रीड़ारत, गोपियों के पूज्य चरणों में प्रणाम करता हूँ, जिनके
हृदय में माँ लक्ष्मी विराजमान हैं तथा जो शुभ आभूषणों से मंडित हैं|
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पृथ्वी पर साकेत यानि अयोध्या नामक नगर था जो
वेदों में निपुण ब्राह्मणों तथा वणिकों के लिए प्रसिध्द था एवं अज के पुत्र दशरथ
का धाम था जहाँ होने वाले यज्ञों में अर्पण को स्वीकार करने के लिए देवता भी सदा
आतुर रहते थे और यह विश्व के सर्वोत्तम नगरों में एक था|
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समुद्र के मध्य में स्तिथ विश्व के स्मरणीय नगरों
में एक द्वारिका नगर था जहाँ अनगिनत हाथी –घोड़े थे, जो अनेकों विद्वानों के
वाद-विवाद की प्रर्तियोगिता स्थली थी, जहाँ राधास्वामी श्रीकृष्ण का निवास था
एवं आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसिद्ध केंद्र था|
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सर्व-कामना पूरक, भवन-बाहुल्य, वैभवशाली धनिकों
का निवास, सरस पक्षियों के कूँ-कूँ से गुंजायमान, गहरे कुओं से भरा, स्वर्णिम यह
अयोध्या नगर था|
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मकानों में निर्मित पूजा वेदी के चहुओर
ब्राह्मणों का जमावड़ा इस बड़े कमलों वाले नगर द्वारिका में होता हैं|| निर्मल
भवनों वाले इस नगर में ऊँचे आम्रवृक्षों के ऊपर सूर्य की छटा निखर रही हैं|
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राम की अलौकिक आभा-जो सूर्यतुल्य हैं, जिससे समस्त
पापों का नाश होता हैं, से पूरा नगर प्रकाशित था| उत्सवों में कमी ना रखने वाला
यह नगर अनंत सुखो का श्रोत तथा तारों की आभा से अनभिज्ञ था| (ऊँचे भवन व वृक्षों
के कारण)
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यादवों के सूर्य, सबों को प्रकाश देने वाले,
विनम्र, दयालु, गौओ के स्वामी, अतुल शक्तिशाली, श्रीकृष्ण द्वारा द्वारिका की
रक्षा भलीभांति की जाती थी|
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गाधीपुत्र गाधेय,
यानि ऋषि विश्वामित्र, एक निर्विघ्न, सुखी, आन्द्दायक यज्ञ करने को इच्छुक थे,
पर आसुरी शक्तियों से आक्रांत थे; उन्होंने शांत, शीतल, गरिमय त्राता राम का
संरक्षण प्राप्त किया था|
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नारद मुनि- दैदीप्यमान, अपने संगीत से योद्धाओ
में शक्ति संचारक, त्राता, सद्गुणों से भरपूर, ब्राह्मणों के नेतृत्वकर्ता के
रूप में विख्यात, ने विश्व-कल्याण के लिए गायन करते हुए, श्रीकृष्ण से याचना की,
जिनकी ख्याति में वृध्दि एक दयावान, शांत परोपकार की इच्छुक के रूप में दिनोदिन हो रही थी|
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लक्ष्मीपति नारायण के सुंदर सलोने, तेजस्वी मानव
अवतार राम का वरण, रसाजा (भूमिपुत्री) - धरातुल्य धैर्यशील, निज वाणी से असीम
आनन्द प्रदाता, सुधि सत्यवादी सीता ने किया था|
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नारद द्वारा लाये गए, देवताओ के रक्षक, निज पति
के रूप में प्राप्त, सत्यवादी कृष्ण के द्वारा प्रेषित, तत्वत: (वास्तव में)
उज्ज्वल पारिजात पुष्प को नृपजा (नरेश पुत्री) रमा (रुक्मणी) ने प्राप्त किया|
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श्रीराम-दुखियों के प्रति सदैव दयालु, सूर्य की
तरह तेजस्वी मगर सहज प्राप्य, देवताओं के सुख में विघ्न डालने वाले राक्षसों के
विनाशक-अपने बैरी-समस्त भूमि के विजेता, भ्रमणशील रेणुका-पुत्र परसुराम को
पराजित कर अपने तेज-प्रताप से शीतल शांत किया था|
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मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा॥७॥
अपराजेय मेरु (सुमेरु) पर्वत से भी सुंदर रैवतक
पर्वत पर निवास करते समय रुक्मणी को स्वर्णिम चमकीले पारिजात पुष्पों की
प्राप्ति उपरांत धरती के अन्य पुष्प कम सुघंधित अप्रिय लगने लगे| उन्हें कृष्ण
की संगत में ओजस्वी, नवकलेवर, दैवीय रूप प्राप्त करने की अनुभूति होने लगी|
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समस्त आसुरी सेना के विनाशक, सौम्यता से
प्रदीप्त, प्रभावशाली नेत्रधारी रक्षक राम अपने अयोध्या निवास में सीता संग
सानंद रह रहे हैं|
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अपने गले में मोतियों के हार जैसे पारिजात
पुष्पों को धारण किये हुए, प्रसन्नता व् परोपकार की अधिष्ठात्री, निर्भीक
रुक्मणी, आतशी पुष्पधारी कृष्ण संग निज गृह को प्रस्थान कर गयी|
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पाप से परिपूर्ण कैकई, पुत्र भरत के लिए
क्रोधाग्नि से पागल तप रही थी| लक्ष्मी की क्रांति से उज्जवलित धरती (अयोध्या)
को, उस मध्यमा (मझली पत्नी) ने, पापी विधि से भरत के लिए ले लिया|
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सूक्ष्मकटि (पतली कमर वाली), अति विदुषी,
सत्यभामा-कृष्ण द्वारा उतावलेपन में भेदभावपूर्ण पारिजात पुष्प रुक्मणी को देने
से आहत होकर क्रोध और घृणा से भर गई|
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विनम्र, आदरणीय, सत्य के त्याग से और वचन पालन ना
करने से लज्जित होने वाले पिता के सम्मान में अद्भुत, राम-तेजोमय,
मुक्ताहारधारी, वीर, साहसी-वन को प्रस्थान किया|
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संगीत की धनी, यानि सत्यभामा के प्रति समर्पित
प्रभु (कृष्ण)-वीर, दृढ़चित्त-कदाचित भी व् लज्जा से आक्रांत हो सत्यभामा के
निवास पहुचे|
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अपने शरणागतो को शास्त्रोचित सद्बुध्दी देने
वाली, धरती पुत्री सीता, इस लज्जाजनक कार्य से आहत, अपनी कान्ति को बिना गवाए,
वन गमन का साहस कर गई|
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तेजस्वी रक्षक कृष्ण-वैभवदाता, जिनका वाहन गरुण
हैं-उनकी ओर, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण सत्यभामा ने अपने को नीचा दिखाने से
अपमानित, (रुक्मणी को पुष्प देने से) देखा ही नहीं|
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तामसी, उपद्रवी, दम्भी, अनियंत्रित शत्रुदल को
अपने तेज से दहन करने वाले शूरवीर राम के निकट, भारद्वाज आदि संयमी ऋषि, थकान से
क्लांत, पहुच याचना की|
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सत्यभामा, उदासी पुष्पधारी कृष्ण के शब्दों पर ना
तो ध्यान ही दिया, ना तो कुछ बोली जब तक कि कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को लाने का
संकल्प ना कर लिया|
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असंख्य राक्षसों का नाश अपने तेज-प्रताप से करने
वाले (राम), स्वर्गतुल्य सुगन्धित पवन संचारित स्थल (चित्रकूट) पर यक्षराज कुबेर
तुल्य व् आभा संग लिए पहुचे|
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मेघवर्ण के श्रीकृष्ण, सत्यभामा को घोर अन्याय से
शांत करने हेतु अप्सराओं से शोभायमान, रम्भा जैसी सुन्दरियों से चमकते आँगन,
स्वर्ग को गए ताकि वे सुगन्धित पारिजात वृक्ष तक पहुच सकें|
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दंडकवन में संयमी (राम)-स्वस्थ्य नरेशों के शत्रु
(परशुराम) को पराजित करने वाले, मानव-योनी वाले व्यक्तियों (मनुष्यों) को अपने
निष्कलंक कीर्ति से आनन्दित करने वाले ने, प्रवेश किया|
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सदा आनन्ददायी जननायक श्रीकृष्ण नंदनवन को जा
पहुचे, जो इंद्र के अतिआनन्द का श्रोत था- वहीँ इंद्र जो आकर्षक काया-वाली
अहिल्या का प्रेमी था, जिसने (छलपूर्वक) अहिल्या की सहमती पा ली थी|
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वे राम शीघ्र ही महाज्ञानी-जिनकी वाणी वेद हैं,
जिन्हें वेद कंठस्थ हैं-कुम्भज (मटके में जन्मने के कारण अगस्त्य ऋषि का एक अन्य
नाम) के निकट जा पहुचें| वे निर्मल वृक्ष वल्कल (छाल) परिधान्धारी हैं, जो नाना
दोष (पाप) वाले विराध के संहारक हैं|
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हाय, वो इंद्र, पृथ्वी को जलप्रदान करने वाले,
किन्नरों-गन्धर्वो के सुरीले संगीत रस का आनंद लेने वाले, देवाधिपति ने ज्यों हो
जम्बासुर संहारक (कृष्ण) का आगमन सुना, वे अनजाने भय से ग्रसित हो गए|
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वेदों में निपुण, संतों के रक्षक (राम) का गरुड
(जटायु) ने झुक कर नमन किया जिनके प्रति अपूर्ण कामयाचना चुड़ैल, लंका की बहन
(शूर्पनखा) को भी था|
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वे (कृष्ण) वृध्दावस्था व् मृत्यु से परे-पारिजात
वृक्ष के उन्मूलन की इच्छा से गए, तब इंद्र-स्वर्ग में रहते हुए भी, कृष्ण के
हितैषी, को अपार दुःख हुआ|
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पृथ्वी को प्रिय (विष्णु यानि राम) के दाहिनी
भुजा व् उन्हें गौरव देने वाले, निडर लक्षण द्वारा नाक काटे जाने पर, उस
मांसभक्षी नासविहीन (शूर्पणखा) ने सूर्यवंशी (राम) के प्रति वैर
पाल लिया|
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उल्लास, जीवनीशक्ति और तेज के ह्रास होने का भान होने
पर केशव (कृष्ण) से मित्रवत वाणी में इंद्र-जिसने उन्नत पर्वतों को परास्त कर
महत्वहीन किया (उद्दंड-उड़नशील पर्वत के पंखो को इंद्र ने अपने वज्रायुध से काट
दिया था), जिसने अमर देवों के नायक के रूप में दुष्ट असुरों को श्रीविहीन किया-
ने धरा व् नभ के रचयिता (कृष्ण) से कहा-
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पृथ्वी व् स्वर्ग के सुदूर कोने तक व्याप्त
कीर्ति के स्वामी राम द्वारा खर की सेना को श्रीविहीन परस्त करने से, उनकी एक
गौरवशाली, निडर, शत्रु-संहारक के रूप में शालीन छवि चमक उठी|
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हे (कृष्ण), सर्वकामना पूर्ति करने वाले देवों के
गर्व का शमन करने वाले, जिनका वाहन वेदात्मा गरुड हैं, जो वैभव प्रदाता श्रीपति
हैं, जिन्हें स्वयं कुछ ना चाहिए, आप इस दिव्य वृक्ष को धरती पर ना ले जाये|
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पापी राक्षसों का संहार करने वाले (राम) पर
आक्रमण का विचार नीच, विकृत लंकेश-सदैव जिसके संग मदिरापान करने वाले क्रूर
राक्षसगण विद्यमान हैं- ने किया|
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व्यथाग्रसित हो, शत्रु की शक्ति को भूल, उन्हें
(कृष्ण को) बंदी बनाने का आदेश गन्धर्वराज इंद्र-सूर्य की शुभ्र स्वर्णाभूषण
अलंकृत मगर कुत्सित बुध्दी से ग्रस्त - ने दे दिया|
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ताड़कापुत्र मारीच को कट-मरने से प्रसिध्द, अपनीं
वाणी से पाप का नाश करने वाले, जिनका नाम मनभावन हैं, हाय-असहाय सीता अपने उस
स्वामी राम के बिना व्याकुल हो गई (मारीच द्वारा राम के स्वर में सीता को पुकारने
से)
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प्रद्युम्न संग देवलोक में विचरण कर रहे कृष्ण को
रोकने में, पुत्र जयंत के शत्रु प्रद्युम्न के अट्टहास को अपनी वाण वर्षा से काट
कर शांत करनेवाले, अथाह सम्पति के स्वामी, पर्वतों के आक्रमण-कर्ता, इंद्र
असमर्थ हो गए|
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लक्ष्मी जैसी तेजस्वी का, अंत समय आसन्न होने के
कारण नीच दुष्ट छली नीच राक्षस (रावण) द्वारा, उच्च विचारों वाले
वनदेवताओं के सामने ही उस सर्वपूजिता का अपहरण कर लिया गया|
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तब एक ब्राह्मण की मैत्री से उस लुप्त अविनाशी,
चिरस्थायी ज्ञान व् तेज को पुनर्प्राप्त कर नाकेश (स्वर्गराज इंद्र)-जिनकी इच्छा
पलायन करने वाले देवताओं की रक्षा करने की थी-ने आकुल कुमार प्रद्युम्न का
प्रताप हर लिया|
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