कर्मयोग के उपासक-आराधक.
विधाता ने जय-विजय को धरती पर यह तलाश करने के लिए भेजा कि इस वर्ष किसे स्वर्ग में सम्मान प्रवेश दिया जाय।दोनों दूत सर्वत्र घूमते फिरे और सज्जनों, भक्तजनों का लेखा-जोखा नोट करते रहें।
इस बीच उन्होंने एक अन्धा वृद्धजन देखा जो रास्ते के किनारे दीपक जलाये बैठा था। देवदूतों ने वृद्ध से पूछा, ‘घर से दूर आंखें न होते हुए, दीपक जलाना और रात भर जागना, कुछ समझ में नहीं आया।
वृद्ध ने कहा-जो किया जाय वह अपने लिए हो, यह क्या जरूरी है। संसार के अन्य लोग भी तो अपने ही हैं, रात्रि को निकलने वालों को ठोकर लगने से बचाकर मुझे ही सन्तोष और आनन्द मिलता है। स्वार्थरत रहने की तुलना में यह लाभ क्या कम है।
देवदूत पर्यवेक्षण करके वापस लौटे और सारे विवरण सुनाये, तो सर्वश्रेष्ठ वह अन्धा ही निकला। देवता अपने कन्धों पर पालकी से उसे स्वर्ग लाये और पुण्यात्माओं में वरिष्ठों को दिया जाने वाले स्थान पर कर्मयोग के उस उपासक को रखा गया।
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