पेड़ पौधों में भी मनुष्य स्तर की बिजली होती है.
मनुष्य शरीर का सूत्र संचालन विद्युत शक्ति से होता है। मस्तिष्क उस विद्युत का केन्द्र है और समस्त शरीर में बिखरे हुए ज्ञान तन्तु उसके संवाहक।
समझा जाता रहा है कि शरीर का केन्द्र हृदय है। उसकी रक्त संचार पद्धति ही जीवन को बनाये रहती है। पर यह आँशिक सत्य है। हृदय की धड़कन बिजली के झटकों से देर तक जारी रखी जा सकती है। हृदय को अलग निकाल कर उसे कृत्रिम साधनों से धड़कता हुआ रखा जा सकता है। किन्तु मस्तिष्कीय बिजली का प्रवाह उसे न मिले तो जीवन संभव नहीं। अकेला हृदय किसी को सजीव बनाये नहीं रह सकता है। भले ही उसमें रक्त की अभीष्ट मात्रा विद्यमान हो।
भूतकाल में नाड़ी चलना बन्द होने अर्थात् हृदय की धड़कन रुक जाने पर मनुष्य की मृत्यु घोषित की जाती थी पर अब ऐसा नहीं होता। मस्तिष्क का विद्युत प्रवाह बन्द होना आत्यन्तिक मृत्यु होना समझा जाने लगा है।
मानव शक्ति मात्र माँस पेशियों पर निर्भर नहीं है। जिन माँस पेशियों में जितने सशक्त ज्ञान तन्तु हैं, वे जितनी मात्रा में विद्युत उपलब्ध कराते हैं, मनुष्य में उतनी ही स्फूर्ति और सहन शक्ति रहती है। इसलिए प्राण विद्युत की अभीष्ट मात्रा का होना समर्थ जीवन के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है।
मानवी विद्युत मशीनों में काम आने वाली बिजली से भिन्न है। यही कारण है कि उसकी उपस्थिति सामान्य रूप में अनुभव नहीं होती। सूक्ष्म अंकन करने वाले मीटर ही उसका पता लगा सकते हैं। किन्तु याँत्रिक पद्धति से ऐसा नहीं हो सकता कि उसे घटाने बढ़ाने का कोई कार्यक्रम बनाया या अपनाया जा सके।
पेड़ पौधे भी इस दृष्टि से मनुष्य की बिरादरी में ही आते हैं। उनमें पोषक रसायनों की भरमार तो है, जिसे वे उपयोगी मनोरंजन की तरह फूलों और खाद्य के रूप में फलों द्वारा देते रहते हैं। वायु शोधन उनका प्रमुख कार्य है। मनुष्य द्वारा छोड़ी कार्बनडाइ ऑक्साइड गैस वे स्वयं के काम लाते हैं और अपनी छोड़ी हुई आक्सीजन से मनुष्यों का पोषण करते हैं।
इस पुरातन धारणा के अतिरिक्त अब इस संदर्भ में एक नई मान्यता और जुड़ी है कि पेड़ों में बिजली भी होती है। उससे विद्युत घटक जैसा काम भी लिया जा सकता है और मनुष्य शरीर में इसकी जो कमी पड़ती है उसकी पूर्ति भी हो सकती है। यदि वृक्षों की छाया में घर झोपड़ा बनाकर रहा जाय तो वह मानवी विद्युत को बढ़ाने और स्फूर्ति समर्थता प्रदान करने में सहायता करता है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने यह तथ्य बहुत पहले सिद्ध कर दिया था कि पेड़ पौधों में जीवन होता है। वे सुख दुःख का अनुभव करते हैं। समीपवर्तियों से वार्तालाप करते हैं और एक दूसरे को यथा संभव सहायता भी पहुँचाते हैं।
अब आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसी शृंखला में एक और कड़ी जोड़ी है कि इस बिजली के माध्यम से वे छुटपुट कार्य भी हो सकते हैं जो बिजली या बैटरी की सहायता से किये जा सकते हैं।
आन्ध्र विश्वविद्यालय के एक शोधार्थी ने पपीते के तने से वह कार्य करके दिखाया है जो टी.वी. एंटीना द्वारा होता है। एंटीना अन्तरिक्ष में भ्रमण करती हुई शब्द तरंगों को पकड़ता है। उसे नीचे जुड़े हुए टेलीविजन यंत्र में भेजता है और दूर दर्शन का चित्र प्रदर्शन होने लगता है। बिना एंटीना के भी टी.वी चलाने का सहज तरीका यह है कि पतले तने वाले पेड़ों से वायुमंडल में से विद्युत तरंगें पकड़ने का काम लिया जाय। इस प्रकार वे विद्युत धारक और संचालक बन बैठते हैं।
वृक्षों की समीपता में रहने का लाभ वैसा ही है जैसा माता द्वारा अपने बच्चों को समीप रख कर दिया जाता है। छोटे बालक माता की गोदी में जितनी देर रहते हैं, उतनी देर उन्हें माता के शरीर से निकलने वाली बिजली प्राप्त होती रहती है। यह दुर्बल पक्ष के हित में है। पेड़ों विशेषतः कतिपय दिव्य वनस्पतियों की समीपता को शास्त्रों में अत्यधिक महत्व दिया गया है। उसे भी इसी प्रकार समझा जा सकता है। उससे शारीरिक और मानसिक कई प्रकार के लाभ हैं। अध्ययन के लिए पेड़ों के नीचे स्वच्छ वायु में बैठकर अपनी स्मरण शक्ति को अपेक्षाकृत अधिक तत्परतापूर्वक काम करती हुई देखा जा सकता है। बौद्धिक कार्य पेड़ों के नीचे बैठकर अधिक अच्छी तरह पूरे हो सकते हैं। पुरातन काल में ऋषि मनीषी आध्यात्मिक और भौतिक खोजें करते थे। उनके निर्वाह भव्य भवनों में नहीं वरन् सघन वृक्षावली के बीच ही होते थे। कवीन्द्र रवीन्द्र ने शाँति निकेतन की स्थापना इसी रूप में की थी। पुष्पोद्यान में टहलना मनुष्य को ताजगी प्रदान करता है। मात्र सुगंधि का, स्वच्छ वायु का ही लाभ नहीं मिलता वरन् उस क्षेत्र में लहलहाती प्राण स्तर की ऊर्जा से भी लाभान्वित होने का अवसर मिलता है।
इससे एक कदम और आगे बढ़कर कितने ही पौधों में भावनाएं भी पाई जाती हैं और वे मनुष्य के साथ प्रेम संबंध जोड़ते हुए प्रसन्नता अनुभव करते हैं। कितने ही पौधे अपने मालिकों और मालियों के दुःख सुख में भी साझी होते हैं। उनकी निकटता में अधिक प्रसन्न रहते और अधिक फलते फूलते हैं। उन की प्रसन्नता मनुष्य पर भी अपनी छाप छोड़ती है। पौधों को मनुष्य की और मनुष्यों को पौधों की भाव संवेदना उभारती है। इस सम्बन्ध में डॉ. बैक्सटर द्वारा किए गये प्रयोग महत्वपूर्ण हैं। कितने ही पेड़ पौधों की प्रकृति में सौम्य सात्विक भावनाओं का समावेश रहता है। वट, पीपल, आँवला, बेल, अशोक आदि को देवतुल्य माना गया है। इनकी समीपता में रहना, उन्हें अपने निवास क्षेत्र में लगाना आयुष्य वृद्धि की दृष्टि से आरोग्य सुदृढ़ रखने के उद्देश्य से प्रत्यक्ष लाभदायक है। उनसे निकलने वाली तरंगें मनुष्य को प्रकृति सान्निध्य का लाभ देती हैं और शारीरिक और मानसिक आधि−व्याधियों के निराकरण में उपयोगी सिद्ध होती हैं। दिन में पौधे शीतलता और रात में गर्मी देते हैं। तापमान की घट बढ़ से शरीर पर जो अनुपयुक्त प्रभाव पड़ता है उसे वृक्ष रोकते हैं। पेड़ पौधों का प्रेम और सान्निध्य एक प्रकार से प्रकृति के साथ घनिष्ठता बनाये रहना है। इससे हम उन्हीं की तरह सुविकसित होते और दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति अपनाती हैं।
(अखंड ज्योति 8/ 1986)
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