शांतनु और गंगा का मिलन.


शांतनु और गंगा का मिलन.

राजा भरत के पांच बेटे थे। जब वे बड़े हुए, तो भरत ने उन सब पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि वे अच्छे राजा नहीं बन सकते। पहली बार किसी राजा ने ऐसी समझदारी की बात की थी कि सिर्फ राजा का बेटा होना – राजा बनने के लिए काफी नहीं है। उन्होंने यह तय किया कि सिर्फ राजा के घर पैदा होने से कोई राजा बनने के योग्य नहीं हो जाता। उनकी इस बात को बहुत महत्व दिया गया, क्योंकि पहली बार दुनिया में राजा का चुनाव जन्म के आधार पर नहीं गुणों के आधार पर हो रहा था। यह भी एक वजह है कि उनके नाम पर इस देश का नाम रखा गया।

भरत अपने मानसिक संतुलन, निष्पक्षता और सब को साथ लेकर चलने, सबको समाहित करने की भावना के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने बच्चों को ही राजा बनने के योग्य नहीं समझा और एक योग्य राजा की तलाश में लग गए। उन्होंने वृहस्पति के नाजायज पुत्र विरथ, जो वृहस्पति के भाई की पत्नी ममता से पैदा हुआ था, को अपना उत्तराधिकारी चुना। वृहस्पति ने ममता के साथ जबरन संबंध स्थापित किया था, जिसका मतलब है कि विरथ बलात्कार का नतीजा था। इस युवक को भरत ने राजा के रूप में चुना। विरथ एक महान राजा साबित हुआ और उसने बहुत बुद्धिमत्ता के साथ राज किया।

महाभिषक का पतन.

विरथ के चौदह‍ पीढ़ी बाद, शांतनु हुए। शांतनु पांडवों और कौरवों के परदादा थे। पिछले जन्म में उनका नाम महाभिषक था। वह पूर्ण सिद्ध हो कर देवलोक चले गए थे। एक दिन, जब वह इंद्र के दरबार में अपने स्थान पर बैठे थे, तभी देवी गंगा वहां आईं।

भरत अपने मानसिक संतुलन, निष्पक्षता और सब को साथ लेकर चलने, सबको समाहित करने की भावना के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने बच्चों को ही राजा बनने के योग्य नहीं समझा और एक योग्य राजा की तलाश में लग गए। वह पल भर के लिए बेखबर हुईं तो उनका पल्लू गिर गया और अनजाने में उनके शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो गया। उन दिनों की आचार संहिता के मुताबिक सभी पुरुषों ने अपनी आंखें नीची कर लीं, जबकि महाभिषक जो देवलोक में नए थे, उन्हें घूरते रहे।

इस अनुचित आचरण और असभ्यता को देखकर इंद्र ने महाभिषक से कहा, ‘तुम देवलोक में रहने के अयोग्य हो। तुम्हें वापस जाकर फिर से इंसान के रूप में जन्म लेना होगा।’ फिर उन्होंने गंगा को देखा तो ध्यान दिया कि वह तवज्जो मिलने का आनंद उठाती हुई प्रतीत हो रही थीं। इंद्र ने गंगा से कहा, ‘यह पूरी तरह अनुचित है। तुम्हें भी वापस जाकर एक इंसान के रूप में जन्म लेना होगा। तुम्हें इंसान की सारी पीड़ाओं और सुखों को भोगना होगा। जब तुम अहंकार से मुक्त हो जाओगी, तब तुम वापस आ सकती हो।’

शांतनु और गंगा का मिलन.

महाभिषक का शांतनु के रूप में पुनर्जन्म हुआ। किसी समय वह गंगा से मिले। उन्हें अपना पिछला जन्म याद नहीं था, मगर गंगा को याद था। गंगा ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की मगर राजा होने के कारण, वह इधर-उधर भटक रहे थे। शांतनु एक अच्छे शिकारी थे। जब वह शिकार पर जाते, तो उसमें इतने खो जाते कि शिकार उनके लिए पूजा बन जाता। एक बार कई हफ़्तों तक वे गंगा के तट पर शिकार करते रहे, और शिकार में पूरी तरह खोये रहे। नदी पास से ही बह रही थी, मगर वह मछुआरे नहीं, एक शिकारी थे। उनका ध्यान शिकार पर रहता था। उन्होंने नदी पर कोई ध्यान नहीं दिया। गंगा इंतजार करती रहीं।

आम तौर पर जब भी उन्हें भूख, प्यास लगती या किसी चीज की जरूरत होती, तो उनके सेवक उनके सामने वह पेश कर देते। मगर एक दिन, शांतनु को तेज प्यास लगी और आस-पास कोई सेवक नहीं था। फिर उन्होंने नदी पर ध्यान दिया और गंगा को खोजने लगे। गंगा नदी से स्त्री रूप में प्रकट हुईं। जैसे ही शांतनु ने गंगा को देखा, वह एक बार फिर प्रेम में पड़ गए। उन्होंने गंगा से विवाह करने की विनती की। गंगा तैयार हो गयी, पर गंगा ने एक शर्त रखी – “मैं आपसे शादी करुँगी पर चाहे मैं कुछ भी करूं, आप कभी मुझसे ये नहीं पूछेंगे कि मैं वैसा क्यों कर रही हूँ” ।

इस तरह गंगा ने किया राजा शांतनु का अप्रिय.

विवाह के बाद राजा शांतनु उस सुंदर स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगे। समय बीतने पर शांतनु के यहां सात पुत्रों ने जन्म लिया, लेकिन सभी पुत्रों को उस स्त्री ने गंगा नदी में डाल दिया। शांतनु यह देखकर भी कुछ नहीं कर पाएं क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह मुझे छोड़कर चली जाएगी। आठवां पुत्र होने पर जब वह स्त्री उसे भी गंगा में डालने लगी तो शांतनु ने उसे रोका और पूछा कि वह यह क्यों कर रही है?

उस स्त्री ने बताया कि मैं देवनदी गंगा हूं तथा जिन पुत्रों को मैंने नदी में डाला था वे सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था। उन्हें मुक्त करने लिए ही मैंने उन्हें नदी में प्रवाहित किया। आपने शर्त न मानते हुए मुझे रोका। इसलिए मैं अब जा रही हूं। ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को लेकर अपने साथ चली गई।

वसुओं ने क्यों लिया गंगा के गर्भ से जन्म?

महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम कर रहे थे। वहां वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। वहां नंदिनी नाम की गाय भी थी। द्यो नामक वसु ने अन्य वसुओं के साथ मिलकर अपनी पत्नी के लिए उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वसिष्ठ को पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर सभी वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

वसुओं द्वारा क्षमा मांगने पर ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। इस श्राप की बात जब वसुओं ने गंगा को बताई तो गंगा ने कहा कि मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी। गंगा ने ऐसा ही किया। वसिष्ठ ऋषि के श्राप के कारण भीष्म को पृथ्वी पर रहकर दुख भोगने पड़े।

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