अपराधी को समान सजा देने की जरूरत नहीं.


अपराधी को समान सजा
देने की जरूरत नहीं.

चार जुआरी जुआ खेलते हुए पकड़े गये। उन्हें राजा के दरबार में पेश किया गया। राजा ने चारों को ध्यान से देखा और उन्हें चार तरह की सजा दी।

एक को छह महीने के लिए जेल भेजा। दूसरे को देश निकाला दिया। तीसरे का मुँह काला कराके शहर में घुमाया। चौथे को नजर भर देखा और कहा आप भी। इसके बाद उसे छोड़ दिया।

राजा से मंत्री ने पूछा एक ही अपराध के चार अपराधियों को चार प्रकार की सजायें क्यों? भेद भाव किस लिए?

राजा ने इसका उत्तर देने से पूर्व यह कहा, जाकर यह देखा जाय कि वे चारों क्या कर रहे हैं?

जिसे जेल की सजा हुई थी। वह वहाँ जाकर भी दूसरे उपकरणों के सहारे जेल में जुआ खेलता पाया गया। जिसे देश निकाला दिया था वह शर्म से मुँह न उठा सका और रात में ही बिना मित्रों से मिले अन्यत्र चला गया। उसका पता भी न लगा। जिसका काला मुँह कराया गया, वह जन संपर्क से दूर रहकर किसी बाग में रखवाली से आजीविका कमाने लगा। जिसे कोई सजा नहीं दी गई थी। उसे भारी आत्म ग्लानि हुई और उसने नदी में कूद कर आत्म हत्या कर ली।

राजा ने दरबारियों को दिखाकर यह कहा हर अपराधी को समान सजा देने की जरूरत नहीं है, उसका व्यक्तित्व भी परखा जाना चाहिए।

(अखंड ज्योति- 1/ 1991)

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