प्राचीन काल की एक घटना.
बहुत प्राचीन काल की घटना है कि एक बार मिथिला नरेश ने कौशल राज्य के ऊपर चढ़ाई की। कौशल में सेना थोड़ी थी, राजा हार गया और वह किले को छोड़कर भाग निकला, उसे पकड़ने के लिए मिथिला नरेश ने एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की घोषणा की।
कौशल नरेश इधर उधर जंगलों में अपनी जान बचाकर छिपते फिरते थे। एक दिन वे ऐसे नगर में पहुँचे जहाँ के सभी युवक उनकी फौज में भर्ती होकर अपने प्राण गँवा चुके थे, केवल स्त्रियाँ तथा छोटे बच्चे उस नगर में शेष थे। उनकी खेती भी इस वर्ष नष्ट हो गई थी, इसलिये गाँव आपत्ति ग्रस्त हो रहा था। कितने ही बाल, वृद्ध बीमार पड़े थे और कितने ही भूख से प्राण गँवा रहे थे। उन लोगों की ऐसी दुर्दशा देखकर राजा की आँखों में आँसू आ गये। इन लोगों को आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी, पर वे तो स्वयं ही छिपते फिरते थे, किसी को क्या देते?
अन्त में एक उपाय उन्हें सूझा वे उस गाँव के कुछ वृद्ध पुरुषों को साथ लेकर मिथिला नरेश के यहाँ पहुँचे और कहा- मैं कौशल नरेश हूँ। मेरे पकड़ने के लिये एक हजार स्वर्ण मुद्रायें देने की जो घोषणा आपने की थी सो इन वृद्ध पुरुषों को दे दी जायें।
सब लोग आश्चर्य चकित रह गये कि अपनी इस प्रकार जान जोखिम में डालकर इनने क्यों आत्म समर्पण किया? जब सारी बात मालूम हुई कि इन भूखे मरते लोगों की सहायता के लिये अपना सर्वस्व दे रहे हैं तो उनकी उदारता देखकर श्रद्धा से सब का मस्तक नीचा हो गया। मिथिला नरेश ने उन्हें गले लगा लिया और यह कहते हुए उनका राज वापस कर दिया कि ऐसे उदार हृदय सत्पुरुष का राज लेकर मैं अपने को कलंकित नहीं करना चाहता।
उदार हृदय व्यक्ति दूसरों को दुख से बचाने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते।
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