जटायु और भीष्म.
(प्रवचन का अंश)
(प्रवचन का अंश)
महाभारत के भीष्म पितामह जो महान तपस्वी थे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, 6 महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत के लिए प्रतीक्षारत रहें। आँखों से आँसू गिरते थे। भगवान कृष्ण जब जाते थे, तो मन ही मन हँसते थे; क्योंकि सामाजिक मर्यादा के कारण वहिरंग दृष्टि से उचित नहीं था; लेकिन जब जाते थे तो भीष्म के कर्म को देखकर मन ही मन मुसकराते थे और भीष्म पितामह भगवान कृष्ण को देखकर व्याकुल हो जाते थे और कहते “कन्हैया, मैं कौन से पाप का परिणाम देख रहा हूँ कि आज बाणों की शय्या पर लेटा हूँ। भगवान कृष्ण मन ही मन हँसते थे, वहिरंग दृष्टि से समझा देते थे, भीष्म पितामह को; लेकिन याद रखना वह दृश्य महाभारत का है, जब भगवान श्रीकृष्ण खड़े हुए हैं, भीष्मपितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं, आँखों में आँसू हैं, भीष्म के, रो रहे हैं। भगवान मन ही मन मुसकरा रहे हैं।
रामायण का यह दृश्य है कि गीधराज जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं, भगवान रो रहे हैं और जटायु हँस रहा हैं। वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान कृष्ण हँस रहे हैं, जबकि रामायण में जटायुजी हँस रहे हैं और भगवान राम रो रहे हैं। दृश्य में भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं? महाभारत का दृश्य हृदय विदारक हैं, वही रामायण का दृश्य आल्हादकारी।
अंत समय में जटायु को भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली; लेकिन भीषण पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली। जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है, रामजी की शरण में, राम जी की गोद में और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं, मृत्यु की प्रतीक्षा में। ऐसा अंतर क्यों?
ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था, विरोध नहीं कर पाये थे। दुःशासन को ललकार देते, दुर्योधन को ललकार देते; लेकिन द्रौपदी रोती रही, बिलखती रही, चीखती रही, चिल्लाती रही; लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे। नारी की रक्षा नहीं कर पाये, नारी का अपमान सहते रहे। उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और कष्ट-साध्य यंत्रणा भोगते हुए, मृत्यु की प्रतीक्षा करते। वहीं गीधराज जटायु ने नारी का सम्मान किया, अपने प्राणों की आहुति दे दी, इसीलिए मरते समय भगवान श्री रामजी की गोद में शय्या मिली।
यही अंतर है, इसीलिए भीष्म 6 महीने तक रोते रहे, तड़पते रहे; क्योंकि कर्म ऐसा किया था कि नारी का अपमान देखते रहे और जटायु ने ऐसा सत्कर्म किया कि नारी का अपमान नहीं सह पाये, नारी के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी इसलिए बाबा तुलसीदासजी ने रामायण में लिखा हैं..
“जल भरि नयन कहत रघुराई।
तात करम ते निज गति पाई।।“
आज भगवान ने जटायु को अपना धाम दे दिया। तो जटायु को भगवान का धाम मिला, देव-रूप मिला और वे देव बन गये। इस प्रकार जटायु चतुर्भुज रूप धारण करके भगवान के धाम को प्राप्त हुए। कर्म फल की महानता का यह अनुपम उदाहरण हैं।
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