‘और बढ़िया’ की खोज
दुख का कारण.
(स्वामी सुखबोधानंद)
एक शिष्य ने मुझसे पूछा था कि मैं लगातार जीवन का अर्थ जानने के लिए उत्सुक रहा हूं लेकिन बहुत खोज के बावजूद मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ। क्या मेरी इस खोज के विचार में ही कुछ गड़बड़ है? मैंने उसकी जिज्ञासा का जवाब देते हुए कहा कि मैं पशुओं से प्रेम करता हूं। मेरे पास दो श्वान और छह बिल्लियां हैं। मैंने कभी नहीं देखा कि उन्होंने कभी किसी चीज को लेकर चिंता की हो।
मुझे लगता है कि मनुष्य के सोचने और महसूस करने के तरीके में ही गड़बड़ है। कोई भी व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि जीवन बेहतरीन है, हर कोई किसी न किसी तरह के सुख की खोज में ही लगा हुआ है। जीवन हमारे सामने है लेकिन हम उसकी खोज कर रहे हैं। याद रखिए कि किसी भी तरह की 'सफलता" हमें शांति नहीं देती है और न ही सांसारिक चीजों से किसी तरह का सुख मिल सकता है।
हम अक्सर जीवन को समझने के लिए दुनिया को देखते हैं। हम बढ़िया कार, बढ़िया घर और बढ़िया सुख-सुविधाओं से जोड़कर जीवन को समझना चाहते हैं। इसके बाद हम ज्यादा आनंद पाने और ज्यादा अच्छी स्थिति प्राप्त करने को लेकर प्रयत्नशील रहते हैं। हमारी जिंदगी इस 'और बेहतर" की प्रक्रिया में खो जाती है और हमारे भीतर बहुत कटुता आ जाती है।
फिर कड़वाहट ही हमारी जिंदगी बन जाती है। हम भीतर से बहुत कडवे हो जाते हैं। यह कडवाहट हमारी जिंदगी को खराब करती है और हमारे लिए बंधन पैदा करती है। फिर आप खुशी के लिए शर्तें लगाने लगते हैं। आप कहते हैं कि अगर मेरे पास यह होगा तो मैं खुश होऊंगा।
कडवाहट हमारे माइंडसेट से पैदा होती है। यह हमारे भीतर गहरे तक पैठ जाती है। हम अपनी स्थिति और सामर्थ्य का पूरा उपयोग करके जिंदगी में कुछ न कुछ पाना चाहते हैं।
जब बाहरी दुनिया में खोज करके हम थक जाते हैं तो खोज बाहर से हमारे भीतर आ जाती है। एक व्यक्ति अच्छा महसूस करना चाहता है, प्रेम और सुरक्षा चाहता है। वह कहता है, 'अगर मुझे सच्चा प्रेम करने वाला मिलेगा तब मैं सुरक्षित महसूस करूंगा।" तब एक अलग ही स्तर पर खोज शुरू हो जाती है। कडवाहट बढ़ती ही जाती है।
प्रेम पाने के लिए हम संबंधों की ओर देखते हैं ताकि हम अपने भीतर आनंद पा सकें, सुरक्षा पा सकें। तब एक गहरे स्तर पर हम दूसरों से फायदा उठाना शुरू कर देते हैं। यहां दूसरे से आशय पत्नी और हमारे मित्रों से है। ये लोग हमारे आनंद के लिए उपकरण बन जाते हैं। हम इन लोगों के जरिए अपने जीवन में प्रेम, सुरक्षा और आनंद की तलाश करते हैं मगर इन लोगों से बहुत अलग भी हो जाते हैं।
हम दूसरों से जुड़ने के बजाय उनसे दूर हो जाते हैं। हो सकता है कि दूसरे भी आपकी ही तरह सोच रहे हों और इसलिए भी लोग एकदूसरे से दूर हो रहे हैं। यही वजह है कि रिश्तों में लोगों को आनंद नहीं मिल रहा है, सुख नहीं मिल रहा है।
फिर एक व्यक्ति अध्यात्म की तरफ जाता है। मगर दूसरों से आनंद पाने का विचार यहां भी बना रहता है। वह सोचता है कि कोई गुरु मुझे राह बता दे मगर ऐसा कहां हुआ है। आखिरकर जब सभी तरफ से निराशा मिलती है तो व्यक्ति अध्यात्मिक रास्ते पर और आगे बढ़ता है। मगर जब तक व्यक्ति दूसरों के जरिए आनंद पाना चाहता है उसके हाथ निराशा ही लगती है।
कौन कहता है कि 'दूसरे" हमारी समस्याओं को हल कर सकते हैं? शायद ईगो ही हमें यह सुझाता है कि दूसरों से समाधान मिलेगा। मगर हम इस बात को ठीक से समझ नहीं पाते हैं। हर व्यक्ति के जीवन में ईगो होता ही है और इसलिए इंटेलीजेंस के लिए बहुत ही कम जगह बचती है। हमारी चेतन अवस्था की राह में ईगो बहुत बड़ी बाधा है। जब भी आप खुद को ही खास समझते हैं तो इंटेलीजेंस खो देते हैं।
बिल्ली में यह बुद्धि होती है कि वह जगह को ठीक से घेरकर बैठती है। कोई भी उसे ऐसा करना सिखाता नहीं है बल्कि वह खुद ही सीख जाती है। हमारे शरीर को देखो।
हमारे शरीर के सभी अंग एक बुद्धिमत्तापूर्ण तालमेल के साथ काम करते हैं और अगर किसी एक अंग में ईगो आ जाए तो चीजें गड़बड़ा जाएंगी। ईगो से बचने की कोशिश करना चाहिए क्योंकि तब हम बुद्धिमत्ता के लिए जगह नहीं रखते हैं। ईगो छोड़कर हम जिंदगी को आसान बना सकते हैं और तब हमें सच्चे आनंद की प्राप्ति होगी।
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