इन तीन का ध्यान रखिये.


इन तीन का ध्यान रखिये.
(श्री रामकृष्ण स्थापक राकेश”)

उत्पात की जड़.

इन तीनों को सदैव अपने अधिकार में रखिये—क्रोध, जिह्वा और वासना। ये तीनों ही मनुष्य को सर्वनाश की ओर ले जाते हैं। क्रोध के आवेश में मनुष्य कत्ल करते तक नहीं हिचकता। ऊटपटाँग बक जाता है फिर बाद में हाथ मल−मल कर पछताता है। जीभ के स्वाद के लालच में मनुष्य का भक्ष अभक्ष का विवेक नष्ट हो जाता है। अनेक व्यक्ति चटपटे मसालों, चाट पकौड़ी, माँस, मछली, अण्डे खाकर अपने स्वास्थ्य एवं पाचन−शक्ति को नष्ट कर डालते हैं। सबसे मूर्ख वह हैं जोकि अनियन्त्रित वासना के शिकार हैं। विषय−वासना के वश में मनुष्य का नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पतन तो निश्चित है ही, साथ ही गृहस्थ सुख, स्वास्थ्य और वीर्य नष्ट होता है। समाज ऐसे भोग−विलासी को लोग हीन दृष्टि से देखता है।

इन तीनों को झिड़को.

निर्दयता, गर्व और कृतघ्नता ऐसी प्रवृत्तियां हैं, जिनसे बुद्धि पाप में फँस जाती है। निर्दयी मनुष्य अविवेकी और अदूरदर्शी होता है। वह दया और सहानुभूति का मर्म नहीं समझता। घमण्डी हमेशा एक प्रकार के नशे में चूर रहता है। धन, बल, बुद्धि अपने समान किसी को नहीं समझता। कृतघ्न दूसरों के उपकारों को शीघ्र ही भूल जाता है। वह प्रत्येक कार्य में अपना स्वार्थ देखता है। वस्तुतः उस अविवेकी का हृदय सदैव मलीन और स्वार्थ पंक में कलुषित रहता है। दूसरों के किये हुये उपकारों को मानने एवं उनके प्रति अपनी कृतघ्नता प्रकाशित करने से हमारे आत्मिक गुण−विनम्रता, सहिष्णुता और उदारता प्रगट होते हैं।

इन तीनों को त्याग दीजिये.

कुढ़ना, बकझक और हँसी मजाक। (1) कुढ़ना एक भयंकर मानसिक विकार है। इससे मनुष्य की शक्ति का ह्रास, चिन्ता और व्यग्रता में वृद्धि होती है। अपने प्रति अविश्वास का भाव उत्पन्न होने से मनुष्य निराश हो जाता है एवं अपने निश्चित लक्ष को चूक जाता है। कुढ़ना हीनत्व की भावना को प्रगट करता है। (2) व्यर्थ की बकझक से मनुष्य का खोखलापन प्रगट होता है। वह केवल बातूनी जमा−खर्च में चतुर होता है। बकझक करने से उसकी शक्ति नष्ट हो जाती है। इसीलिये वह ठोस कार्य से सर्वथा वंचित रहता है। (3) अनियन्त्रित हँसी मजाक आत्मिक, मानसिक और नैतिक दृष्टि से गर्हित होने के कारण त्याज्य है। गन्दा हँसी मजाक कटुता का रूप धारण कर लेता है। इससे मनुष्य की गुप्त−वासना का पर्दाफाश होता है। अतः इन्हें त्यागना ही उचित है।

इन तीन को ग्रहण कीजिये.

चरित्र के उत्थान एवं आत्मिक शक्तियों के उत्थान के लिये इन तीन सद्गुणों−होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता का विकास अनिवार्य है। (1) यदि आप कर्म एवं व्यवहार में निरन्तर जागरुक रहें, छोटी−छोटी बातों का ध्यान ध्यान न दें, तो आप अपने निश्चित ध्येय की की अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क व्यक्ति हमेशा सावधान रहता है। वह कोई गलती नहीं करता फलस्वरूप उसे कोई दबा नहीं सकता। (2) सज्जनता एक दैवी गुण है जिसका कि मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष जीवन पर्यन्त वन्दनीय एवं पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती है। (3) सहनशीलता एक दैवी सम्पत्ति है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं है प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है। केवल महान आत्मायें ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं। इनके अतिरिक्त इन तीन पर श्रद्धा रखिये—धैर्य, शान्ति और परोपकार।

इन तीनों को हासिल कीजिये.

सत्यनिष्ठा, परिश्रम और अनवरतता—(1) सत्यनिष्ठ व्यक्ति की आत्मा विशालतर बनती है। राग−द्वेषहीन, श्रद्धा एवं निष्पक्ष बुद्धि उसमें सदैव जागृत रहती है। वह व्यक्ति वाणी, कर्म एवं धारणा से प्रत्येक स्थान पर परमेश्वर को दृष्टि में रखकर कार्य करता है। हमारे स्वयं के विचार में जो सत्य प्रतीत हो, उसके विवेक पूर्ण आचरण का नाम ही सत्य कर्म है। (2) परिश्रम एक ऐसी पूजा है जिसके द्वारा कर्म पथ के सब पथिक अपने पथ को, जीवन और प्राण को ऊँचा उठा सकते हैं। (3) अनवरतता अर्थात् लगातार अपने उद्योग में लगे रहना मनुष्य को सफलता के द्वार पर लाकर खड़ा कर देता है। पुनः अपने कर्तव्य एवं योजनाओं को परिवर्तित करने वाला कभी सफलता लाभ नहीं कर सकता।

इन तीन का आनन्द प्राप्त करो.

(1) खुला दिल, (2) स्वतन्त्रता, (3) सौंदर्य—तीनों आपके आनन्द की अभिवृद्धि करने वाले तत्व हैं। खुला दिल सबसे उत्तम वस्तुएँ ग्रहण करने को प्रस्तुत रहता है, संकुचित हृदय वाला व्यक्तिगत वैमनस्य के कारण दूसरों के सद्गुणों को कभी प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करता। स्वतन्त्रता का आनन्द वही साधक जानता है जो रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास एवं क्षणिक आवेशों से मुक्त है। स्वतन्त्रता का अर्थ अत्यन्त विस्तृत है। सोचने, बोलने, लिखने की स्वतन्त्रता प्राप्त करनी चाहिये। जो व्यक्ति आर्थिक स्वतन्त्रता से मुक्त है, वह अनेक झगड़ों से मुक्त है। सौंदर्य, आर्थिक और चारित्रिक दोनों की ही उन्नति एवं प्रगति करने वाला महान तत्व है। यदि सौंदर्य के साथ कुरुचि और वासना मिश्रित हो गई तो सौंदर्य अपना वास्तविक अभिप्राय नष्ट कर देगा। आपके मन में सौंदर्य के प्रति सुरुचि होना चाहिये। आप यदि सौंदर्य की पूजा करें तो वह आप में शुभ भावनायें प्रेरित करने वाला एवं सद्प्रेरणाओं को उत्पन्न करने वाला हो।

इन तीन के लिये लड़ो.

मान, देश और मित्र। इनकी प्रतिष्ठा आपकी अपनी इज्जत है। यदि आप में स्वाभिमान है, तो आपको इन तीनों की रक्षा अपनी सम्पूर्ण शक्ति से करनी चाहिये। इन तीन के अतिरिक्त इन तीन को भी हृदय से चाह करो—निर्मलपन, भलापन, आनन्दी स्वभाव। आन्तरिक शान्ति के लिये इन तीन की आवश्यकता है।

इन तीनों को स्मरण रक्खो.


आरोग्य, सुमित्र और सन्तोष वृत्ति। ये तीनों आड़े समय काम में आने और रक्षा करने वाले हैं, चाहे अन्य बातों में आप पीछे रहें, किन्तु स्वास्थ्य और आरोग्य सम्पदा को प्राप्त करते रहिये। सच्चा मित्र जीवन का सबसे बड़ा हितैषी और सहायक है। सन्तोष−वृत्ति मनः शान्ति को परिपुष्ट करके आन्तरिक समस्वरता को प्रदान करने वाली परमौषधि है।

कोई टिप्पणी नहीं: