भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा.

भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा.

शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है, तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग भी माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा होता हैं। शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड स्वरूप है।

अर्द्ध_सोमसूत्रांतमित्यर्थ:
शिव_प्रदक्षिणीकुर्वन
सोमसूत्र_न_लंघयेत॥
इति_वाचनान्तरात।


सोमसूत्र किसे कहते हैं?

शिवलिंग की निर्मली को ‘सोमसूत्र’ कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।

क्यों_नहीं_लांघते सोमसूत्र?

सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है, अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं जिससे 5 अन्तस्थ वायु का प्रवाह, जो वीर्य स्खलन के लिए उत्तरदायी होती हैं, पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है, जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।

लांघ सकते हैं-(अपवाद)

शास्त्रों में अन्य स्थानों पर ऐसा लेख मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोमसूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है, लेकिन..“शिवस्यार्ध_प्रदक्षिणा”..का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा से हैं, अतएव शिवलिंग की परिक्रमा आधी ही करना चाहिए।

परिक्रमा की दिशा.

भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। यह ही अर्ध-परिक्रमा कहलाती हैं।

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