प्रार्थना करो. ...(लियो टालस्टाय)




प्रार्थना करो. ...(लियो टालस्टाय)

एक पादरी जलयान से यात्रा कर रहा था.

जलयान के यात्री, तीर्थ-यात्रा पर निकले हुए थे. मौसम सुहावना था, समुद्र शांत था.

आकाश में हल्के बादल तैर रहे थे. कप्तान ने कहा- “ईश्वर करे मौसम ऐसा ही रहे.”

पादरी घूमता हुआ डेक पर आया तो उसने देखा एक नाविक मुसाफिरों को कुछ बता रहा है. रह-रहकर वह दूर कहीं इशारा कर देता. पादरी ने भी उस तरफ देखा, पर उसे दूर तक फैले पानी के अतिरिक्त और कुछ नज़र न आया. आखिर नाविक उन मुसाफिरों को क्या बतला रहा था. उसे देखकर सब चुप हो गए.पादरी के पूछने पर एक यात्री ने कहा-“फादर, नाविक हमें तीन संतों के बारे में बता रहा है. जों दूर एक निर्जन द्वीप पर रहते हैं.”

“कैसे द्वीप, कौन से संत?” पादरी ने पूछा. यात्री ने उस दिशा में संकेत किया. बोला-“आप ध्यान से देखेंगे तो द्वीप नज़र आएगा.” पादरी ने फिर से नज़र गड़ाई पर पानी के अतिरिक्त कुछ दिखाई न दिया.

उसने कहा-“भाई, मुझे तो पानी के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता. चलो, मुझे उन संतों के बारे में बताओ. तभी एक नाविक ने कहा-“मुझे उन संतों के बारे में एक मछुआरे ने बताया था, जो उस निर्जन द्वीप पर भटक कर जा पहुंचा था. वहीं उसने तीन बूढों को देखा था. उन्होंने मछुआरे को भोजन और पानी दिया, फिर उसकी नाव की मरम्मत में सहायता की. उनतीनों ने फटे-पुराने कपडे पहन रखे थे. वे तीनों ही बहुत ज्यादा बूढ़े और कमजोर लगरहे थे, लेकिन एक बूढ़े ने मछुआरे की नाव को एक हाथ से इस तरह उलट दिया जैसे वह कोई छोटा बर्तन हो.”

मछुआरे ने उन्हें चुपचाप काम करते देखा. हाँ, इस बीच तीनों रह-रहकर मुस्करा उठते थे. उन्होंने मछुआरे के प्रश्नों के उत्तर केवल मुस्कान से दिए. मुंह से कुछ नहीं बोले.

इस बीच जलयान उस द्वीप के निकट आ पहुंचा था. अब पादरी को द्वीप साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था.उसने एक नाविक से द्वीप का नाम पूछा तो वह बोला-“फादर, समुद्र में ऐसे अनेक छोटे-छोटे निर्जन द्वीप हैं. इसका कोई नाम नहीं है. कहते हैं, वहाँ तीन बूढ़े संत ईश्वर-भजन के लिए अकेले रहते हैं.”

पादरी ने कहा-“अगर ऐसा है तो मैं द्वीप पर जाकर उन तीन बूढों से मिलना चाहूंगा, जिन्हें तुम संत कह रहे हो.”

जलयान के कप्तान ने कहा-“फादर, हमारा जहाज द्वीप के एकदम निकट नहीं जा सकता.”

“तो फिर मुझे एक नाव से वहाँ पहुचने की व्यवस्था करो.” पादरी ने कहा.

कप्तान बोला-“ आप बेकार परेशान हो रहे हैं. उन तीन बूढों के बारे में मैंने भी कई बार सुना है. न जाने लोग उन्हें संत क्यों कहते हैं. बुढ़ापे में इस तरह किसी निर्जन द्वीप पर रहने को मूर्खता ही कहा जा सकता है. वे न कुछ बोलते हैं, न दूसरों की बात समझते हैं.

पर पादरी इन तीन बूढों से मिलने का निश्चय कर चुका था. उसने कप्तान से कहा-“जो भी है, मैं उनसे जरूर मिलूँगा. मेरे लिए एक नौका का इंतजाम कर दो. मैं उसके बदले में तुम्हे पैसे दूंगा.”

कप्तान ने जहाज को द्वीप के और निकट ले जाने का आदेश दिया, फिर एक टेलिस्कोप पादरी को थमा दिया. अब पादरी को सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आने लगा. उसने तीन बूढों को एक चट्टान के पास खड़े देखा. एक लंबा, एक नाटा, और तीसरा एक बोने जैसा, जिसकी कमर झुकी हुई थी. तीनों ने एक दूसरे का हाथ थामा हुआ था. जहाज ने लंगर डाल दिया. फिर एक छोटी नाव नीचे पानी में उतार दी गई. एक रस्सी की सीढी के सहारे पादरी नाव में उतर गया. नाव द्वीप के तट पर जा पहुँची. तीनों बूढ़े पास ही खड़े थे. पादरी को देख कर तीनों ने सम्मान-पूर्वक नमस्कार किया. वे बोले कुछ नहीं.

पादरी ने पूछा-“मैं जानना चाहता हूँ. इस द्वीप पर रहकर आप ईश्वर की सेवा कैसे करते हैं?”

एक बूढ़े ने कहा-“फादर, हमें पता नहीं कि ईश्वर की सेवा कैसे की जाती हैं. हमें उसका ज्ञान नहीं. हाँ, हम आपस में एक दूसरे की सहायता जरूर करते हैं और आकाश की ओर देख कर कहते हैं- तीन आप, तीन हम. सब पर कृपा करना.” यह कह कर तीनों फिर से आकाश की ओर देखने लगे.

पादरी मुस्कराने लगा. उसने कहा-“मुझे लगता है, आपको ठीक से साधना करनी नहीं आती. पर इसमें आपका क्या दोष, क्योंकि आपको इस बारे में कुछ पता ही नहीं. अब मैं आपको सही तरीका बताऊँगा. आप ध्यान से मेरी बात सुनें.” और वह तीनों बूढों को ईश्वर की पूजा-आराधना का तरीका समझाने लगा. वे सम्मान-पूर्वक पादरी की बात सुन रहे थे.

“ईश्वर हमारा पिता है.” पादरी ने कहा.

“पिता, पिता, पिता!” तीनों ने बारी-बारी से दोहरा दिया.

“पिता स्वर्ग में हैं.” पादरी ने बताया.

तीनों ने उसकी बात दोहराई पर वे ठीक ढंग से बोल नहीं पा रहे थे. पादरी एक शिला पर जा बैठा. तीनों बूढ़े शिष्यों की तरह सामने खड़े रहे. पादरी भी हार मानने वाला नहीं था. वह बार-बार अपना कथन दोहराता रहा. जैसे वह अध्यापक हो और तीनों बूढ़े उसके अनाड़ी शिष्य.

इसी चर्चा में काफी समय बीत गया. सूरज छिपने लगा. परिंदे चूं-चिर्र करते हुए घोंसलों की ओर लौटने लगे. पादरी को जहाज पर लौटना था. उसने कहा-“अब मुझे जाना होगा. मैं आशा करता हूँ. आपने मेरी बातों को ध्यान से सुना होगा. अब आप उसी तरह ईश्वर-भजन करेंगे, जैसे मैंने बताया है.”

पादरी चलने लगा तो तीनों बूढ़े बारी-बारी से उसके सामने झुक गए. पादरी नाव में जा बैठा. तीनों बूढ़े सामने खड़े थे. पादरी संतुष्ट था कि उसने तीनों को पूजा का तरीका बहुतअच्छी तरह समझा दिया था.

नाव पादरी को लेकर खुले समुद्र में खड़े जहाज की ओर चली तो पादरी के कानों में तीन स्वर आए.

ये वही तीनों बूढ़े थे जो जोर-जोर से प्रार्थना कर रहे थे. पादरी सुनकर प्रसन्न हो उठा.हाँ, उसने तीनों को यही तो सिखाया था. उसने आकाश की ओर देखा- मन ही मन कहा-“हे, ईश्वर, आपकी कृपा से मैंने अपना काम पूरा कर दिया. मुझे उम्मीद है, अब वे तीनों आपकी प्रार्थना में कोई भूल नहीं करेंगे.”

कुछ देर बाद नाव जहाज के पास जा पहुँची. पहले पादरी को ऊपर खींचा गया, फिर नाव भी ऊपर चढा ली गई. अब तक सब तरफ गहरा अँधेरा छा गया था. पादरी ने द्वीप की ओर देखा. घोर अन्धकार की चादर ने द्वीप को अपने अंदर छिपा लिया था. कुछ देर बाद चाँद निकल आया. चांदनी में द्वीप दिखाई देने लगा. पादरी को लगा, जैसे तीनों बूढ़े सामने खड़े हैं. उनके चेहरा तो नहीं पर सफ़ेद कपड़ों की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी. पता नहीं क्यों पादरी को लगा जैसे वे तीनों अब भी उसके बताए तरीके से प्रार्थना कर रहे हैं, हालाँकि शब्द साफ़-साफ़ नहीं सुनाई दे रहे थे.

जहाज का लंगर ऊपर खींच लिया गया, पाल तान दिए गए. पालों में हवा भर गई और जलयान अपने मार्ग पर बढ़ चला. द्वीप धीरे-धीरे पीछे छूटता जा रहा था. कुछ देर तक उसकी झलक मिलती रही, फिर सब अँधेरे में खो गया.

धीरे-धीरे सब यात्री नींद में डूब गए. समुद्र चांदनी में चमचमा रहा था. पर पादरी को नींद नहीं आई. न जाने क्यों वह अब भी कुर्सी पर बैठा द्वीप की दिशा में ताक रहा था. उन तीनों के चेहरे उसकी आँखों के सामने तैर रहे थे. सोच रहा था-“इस यात्रा पर एक अच्छा काम तो हुआ. न जाने तीनों बूढ़े कब से इस द्वीप पर रह कर गलत ढंग से प्रार्थना करते आ रहे थे.

सब तरफ सन्नाटा था. नाविक अपने काम में लगे थे, पर यात्रियों में केवल पादरी जाग रहा था. एकाएक अँधेरे में कुछ चमक उठा-उजला, सफ़ेद. वह समझ न पाया कि चमक किस चीज की थी. कोई सफ़ेद जलपाखी या फिर कोई बड़ी नौका जिसके पाल अँधेरे में भी चमकरहे थे.

शायद यह कोई छोटी नौका है जों हमारे जहाज की तरफ बढ़ी आ रही है. देखते-देखते सफ़ेद चमक बढ़ती गई और तेजी से जहाज की तरफ आती गई.जिस तरह चमक तेज होती जा रही थी उससे लगा, जहाज की तरफ बढ़ती नौका की गति बहुत तेज है.क्या कोई उनके जहाज का पीछा कर रहा था, लेकिन क्यों? यह सोचकर पादरी कुछ डर गया.

जहाज की तरफ तेजी से बढती चीज न नौका थीं, न कोई जलपाखी और न ही मनुष्य. क्या कोई मनुष्य लहरों पर इस तरह चल सकता था? न, कभी नहीं. पादरी उठ कर एक नाविक के पास जा पहुंचा. उससे कहा-“जरा उस सफ़ेद चीज की ओर तो देखो जो तेजी से हमारी तरफ बढ़ती आ रही है. वह है क्या?”

लेकिन नाविक उसके प्रश्न का उत्तर दे पाता, इससे पहले ही पादरी ने देख लिया कि वह सफ़ेद और चमचमाती चीज क्या थी. उसकी आँखें फटी रह गईं. वे थे- तीनों बूढ़े जो पानी पर इस तरह दौड़े आ रहे थे जैसे सूखी जमीन पर चल रहे हों.

तब तक वहाँ अनेक यात्री भी आ जुटे. सबकी नज़रें समुद्र की लहरों पर चलते उन तीन बूढों पर टिकी थीं, जो पल-पल जहाज के निकट आते जा रहे थे. कप्तान ने जहाज को रोकने का आदेश दिया, पर जहाज के रुकने से पहले ही तीनों बूढ़े जहाज के साथ-साथ चलने लगे. वे सीधे पादरी की आँखों में देख रहे थे. तीनों ने अपने हाथ आकाश की तरफ उठा दिए. फिर एक साथ बोले-“ हे पवित्र पादरी, हम आपकी शिक्षा भूल गए. हम क्षमा चाहते हैं. हमें याद नहीं आ रहा. क्या आप हमें दुबारा सिखाने की कृपा करेंगे?”

पादरी पत्थर की मूर्ति की तरह अपनी जगह पर खड़ा रह गया. द्वीप पर जो कुछ हुआ था, उसे एकदम याद आ गया. उसने आकाश की ओर हाथ उठा दिए. बोला-“संतो, आपकी प्रार्थना तो पहले ही ईश्वर के पास पहुँच चुकी है. अब तो आप मुझे बताएं कि मैं क्या करूँ?” कहकर उसने लज्जा से सिर झुका लिया. ओह, वह खुद कितना नासमझ है. मूरख है, जो उन जैसे महान संतों को उपदेश देने चला था.

पादरी के इतना कहते ही तीनों बूढ़े संत मुड़ कर वापस चल दिए. पानी पर चलते हुए वे जहाज से दूर जाते दिखाई दे रहे थे. उनके शरीर घने अंधकार में चम-चम चमक रहे थे.

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