सर्वसिध्द साढ़े तीन मुहूर्त.
देवउठनी एकादशी, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा,
अक्षय तृतीया,
विजयदशमी और
कार्तिक शुक्त प्रतिपदा (दीपावली की मध्य रात्रि)
ये चार मुहूर्त स्वयंसिद्ध माने गए हैं। इनमें से प्रथम तीन मुहूर्त पूर्ण एवं चतुर्थ अर्द्धबली होने से आधा, इस प्रकार इन्हें साढ़े तीन मुहूर्त कहते हैं। इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं रहती है। बिना अशुभ का चिंतन किए इन मुहूर्तों का फल सदा से शुभ होता आया है।
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भीष्म पंचक व्रत भी इसी दौरान
कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक के पांच दिनों में व्रत को भीष्म पंचक कहा जाता है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियां और पुरुष इस व्रत को करते हैं। दरअसल महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे तब भगवान कृष्ण पांचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गए थे। अवसर देख युधिष्ठर ने भीष्म से उपदेश देने का आग्रह किया।
भीष्म ने पांच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनके उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण संतुष्ट हुए और बोले, 'पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नाता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूं। जो श्रद्धालु इसे करेंगे वे जीवनभर विविध सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त करेंगे।
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