श्रीराधा जी




श्रीराधा जी

श्री कृष्ण की प्राण-सखी और उपासिका राधा, वृषभानु नामक गोप की पुत्री थी। राधा की माता का नाम कीर्ति था।

श्री राधारानी जी के सम्बन्ध में गर्ग संहिता में कथा आती है कि एक बार नंद बाबा, बालक कृष्ण को लेकर अपने गोद में खिला रहे हैं, उस समय कृष्ण दो साल सात महीने के थे, उनके साथ दुलार करते हुए वो वृंदावन के भांडीर वन में आ जाते हैं| इस बीच एक बड़ी ही अनोखी घटना घटती है| अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं| बिजली कौंधने लगती है| देखते ही देखते चारों ओर अंधेरा छा जाता है.और इसी अंधेरे में एक बहुत ही दिव्य रौशनी आकाश मार्ग से नीचे आती है.जो नख शिख तक श्रृंगार धारण किये हुए थी|

नंद जी समझ जाते हैं कि ये कोई और नहीं खुद राधा देवी हैं जो कृष्ण के लिए इस वन में आई हैं, वो झुककर उन्हें प्रणाम करते हैं और बालक, कृष्ण को उनकी गोद में देते हुए कहते हैं कि हे देवी मैं इतना भाग्यशाली हूं कि भगवान कृष्ण मेरी गोद में हैं और आपका मैं साक्षात दर्शन कर रहा हूं|

तूफान थम जाता है| अंधेरा, दिव्य प्रकाश में बदल जाता है और इसके साथ ही भगवान भी अपने बालक रूप का त्याग कर के किशोर बन जाते हैं| इतने में ही ललिता, विशाखा और ब्रह्माजी भी वहाँ पहुँच जाते है| ब्रह्मा जी ने वेद मंत्रो के द्वारा किशोरी-किशोर का गान्धर्व विवाह संपन्न कराया| सखियों ने प्रसन्नता पूर्वक विवाह कालीन गीत गाये| आकाश से फूलो की वर्षा होने लगी|

फिर देखते ही देखते ब्रह्मा जी और सखिया चली गई| कृष्ण ने पुनः बालक का रूप धारण कर लिया और श्री राधिका ने कृष्ण को पूर्ववत उठाकर प्रतीक्षा में खड़े नन्द बाबा की गोदी में सौप दिया इतने में बादल छट गए और नन्दबाबा, कृष्ण को लेकर अपने ब्रज में लौट आये|

जब कृष्ण जी मथुरा चले गए तब श्री राधा जी अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अंतर्धान हो गई| कही कही ऐसा वर्णन आता है कि उनकी छाया जो शेष रह गई उसी का विवाह 'रायाण' नाम के गोप के साथ हुआ| रायाण, श्रीकृष्ण की माता यशोदा जी के सहोदर भाई थे| गोलोक में तो वह श्रीकृष्ण के ही अंश-भूत, गोप थे| रायाण, श्री कृष्ण के मामा लगते थे|

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