ग्यारह मुखी हनुमानजी.




ग्यारह मुखी हनुमानजी.

कालकारमुख नामक एक भयानक और बलवान राक्षस जिसके ग्यारह मुख थे, ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था कि “उसे कोई भी जीत न पावे, चाहे रण में सामने काल ही क्यों न हों| जो मेरे जन्म दिन पर ग्यारह मुख धारण करें, वहीं मुझे मारे|” ऐसा वरदान प्राप्त कर, वह असुर मनमानी करने लगा| उसने देवताओं के सभी अधिकार छीन लिये| श्रुतियों के सभी आचार भ्रष्ट कर दिए| संसार अति-त्रस्त हो गया एवं अपार हाहाकार मच गया| सभी देवताओं ने परमेश्वर सीतारमण से रक्षा की गुहार लगाई| तब प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने महाबीर हनुमान को इस संकट के निवारणार्थ कहा|

प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर कपीश हनुमानजी ने चैत्र पूर्णिमा, शनिश्चर के दिन -उस राक्षस के जन्म तिथि एवं दिन के समय एकादश मुख रूप ग्रहण करके, उस दुष्ट कालकारमुख राक्षस का सैन्य सहित नाश कर दिया|

हनुमान जी के इस विग्रह में दो चरण, बाईस हाथ एवं ग्यारह मुख हैं। इन ग्यारह मुखों में कपि मुख, भैरव मुख, अग्नि मुख, ह्रयग्रीव मुख,वाराह मुख, नागमुख, रुद्र मुख, नृसिंहमुख, गज मुख एवं सौम्य मानव मुख हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: