क्षमा और दंड|




क्षमा और दंड|

क्षमा, हमारी दया का एक और अंग हैं| जो हमारे साथ दुर्व्यवहार करता हैं या अपकार, हानि, कष्ट का साधन बनता हैं, उसके मन में सच्चा पश्चाताप उदय होने पर क्षमा कर देना चाहिए| प्राय: अनेक दुष्ट क्षमा किये जाने पर गलत मार्ग को छोडकर, उन्नति के मार्ग पर चलने लगे हैं| मानव जीवन बहुमूल्य हैं| अत: एक-दो बार कसूरबार को भी क्षमा देकर उसकी उन्नति का साधन उपस्तिथ करना चाहिए| हमारे समाज में आज भी अनेक उपेक्षित वन्धु-बांधव, दुखी और पिछड़े मानव पड़े हैं, जो दया के पात्र हैं|

समाज. मनुष्यों का समूह हैं| इसमें छोटे, बड़े और पिछड़े हुये सभी प्रकार के सदस्य हैं| प्रेम तथा दया का पारस्परिक व्यवहार कायम रहने से ही हमारा समाज ठीक स्तर पर रह सकता हैं| सहकार मनुष्य की आत्मा का धर्म हैं| क्षमा करने से मनुष्य को सुधार का एक नवीन अवसर प्राप्त होता हैं| दंड, हमारी संस्कृति की अंतिम सीमा हैं| दुष्ट का दमन होना चाहिए| यदि लोक कल्याण के लिए दुष्ट को, नीति का साधारण नियम भंग करके भी दंड देना पड़े, तब वह त्याज्य नहीं हैं|

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