ईश्वरीय सत्ता का बोध.
जगत में प्राय: संभी ईश्वरवादी हैं| कुछ लोग तर्कवाद या विद्या-बुद्धि के गर्व से अनीश्वरवाद को सिद्ध करने का प्रयास करते देखे जाते हैं, परन्तु अंत में ईश्वर की सत्ता सिद्ध हो ही जाती हैं| यदि कोई कहे कि मेरे मुझ में जीभ नहीं हैं तो उसका यह कहना निराधार हैं. क्योकि उसके बोलने से ही जीभ का होना सिद्ध हैं| इसी प्रकार यदि कोई यह कहे कि मेरे पिता हुये ही नहीं हैं तो उसका यह कथन भी निराधार ही होगा; क्योकि जब वह हैं तो अवश्य ही उसका जन्मदाता भी स्वयं सिद्ध हैं, चाहे वह उसको जाने या न जाने| यही बात ईश्वर के सम्बन्ध में हैं| जब कोई मनुष्य किसी घने जंगल में जाकर देखता हैं कि वहां एक सुंदर मंदिर बना हुआ हैं और उसके समीप एक सुरम्य वाटिका लगी हैं, जिसमें नाना प्रकार के फल-फूलों के बृक्ष यथास्थान सुव्यवस्तिथ हैं तथा जिसके एक ओर एक चिड़ियाखाना भी हैं. जिसमें विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी अलग अलग विभागों में पिंजड़ों में बंद हैं, ऐसी अवस्था में उसे यह मानना ही होगा कि इन सबका बनाने वाला कोई अवश्य हैं| नियमित और सुव्यवस्तिथ कर्म के देखने से ही कर्ता का अनुमान होता हैं, यह स्वाभाविक हैं|
जगत में प्राय: संभी ईश्वरवादी हैं| कुछ लोग तर्कवाद या विद्या-बुद्धि के गर्व से अनीश्वरवाद को सिद्ध करने का प्रयास करते देखे जाते हैं, परन्तु अंत में ईश्वर की सत्ता सिद्ध हो ही जाती हैं| यदि कोई कहे कि मेरे मुझ में जीभ नहीं हैं तो उसका यह कहना निराधार हैं. क्योकि उसके बोलने से ही जीभ का होना सिद्ध हैं| इसी प्रकार यदि कोई यह कहे कि मेरे पिता हुये ही नहीं हैं तो उसका यह कथन भी निराधार ही होगा; क्योकि जब वह हैं तो अवश्य ही उसका जन्मदाता भी स्वयं सिद्ध हैं, चाहे वह उसको जाने या न जाने| यही बात ईश्वर के सम्बन्ध में हैं| जब कोई मनुष्य किसी घने जंगल में जाकर देखता हैं कि वहां एक सुंदर मंदिर बना हुआ हैं और उसके समीप एक सुरम्य वाटिका लगी हैं, जिसमें नाना प्रकार के फल-फूलों के बृक्ष यथास्थान सुव्यवस्तिथ हैं तथा जिसके एक ओर एक चिड़ियाखाना भी हैं. जिसमें विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी अलग अलग विभागों में पिंजड़ों में बंद हैं, ऐसी अवस्था में उसे यह मानना ही होगा कि इन सबका बनाने वाला कोई अवश्य हैं| नियमित और सुव्यवस्तिथ कर्म के देखने से ही कर्ता का अनुमान होता हैं, यह स्वाभाविक हैं|
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