जरासंघ वध
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया तथा अपने चारों भाइयों को दिग्विजय करने की आज्ञा दी। चारों भाइयों ने चारों दिशा में जाकर समस्त नरपतियों पर विजय प्राप्त की, किन्तु जरासंघ को न जीत सके। इस पर श्री कृष्ण, अर्जुन तथा भीमसेन ब्राह्मण का रूप धर कर मगध देश की राजधानी में जरासंघ के पास पहुँचे। जरासंघ ने इन ब्राह्मणों का यथोचित आदर सत्कार करके पूछा, “हे ब्राह्मणों! मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ?”
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया तथा अपने चारों भाइयों को दिग्विजय करने की आज्ञा दी। चारों भाइयों ने चारों दिशा में जाकर समस्त नरपतियों पर विजय प्राप्त की, किन्तु जरासंघ को न जीत सके। इस पर श्री कृष्ण, अर्जुन तथा भीमसेन ब्राह्मण का रूप धर कर मगध देश की राजधानी में जरासंघ के पास पहुँचे। जरासंघ ने इन ब्राह्मणों का यथोचित आदर सत्कार करके पूछा, “हे ब्राह्मणों! मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ?”
जरासंघ के इस
प्रकार कहने पर श्री कृष्ण बोले, “हे
मगजधराज! हम आपसे याचना करने आये हैं। हम यह भली भाँति जानते हैं कि आप याचकों को कभी
विमुख नहीं होने देते हैं। राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र जी की याचना करने पर
उन्हें सर्वस्व दे डाला था। राजा बलि से याचना करने पर उन्होंने त्रिलोक का राज्य
दे दिया था। फिर आपसे यह कभी आशा नहीं की जा सकती कि आप हमें निराश कर देंगे। हम
आपसे गौ, धन, रत्नादि की याचना नहीं करते। हम केवल आपसे युद्ध
की याचना करते हैं, आप हमे द्वन्द्व
युद्ध की भिक्षा दीजिये।”
श्री कृष्ण के इस
प्रकार याचना करने पर जरासंघ समझ गया कि छद्मवेष में, ये कृष्ण, अर्जुन तथा भीमसेन हैं। उसने क्रोधित होकर कहा,
“अरे मूर्खों! यदि तुम युद्ध ही चाहते हो
तो मुझे तुम्हारी याचना स्वीकार है। किन्तु कृष्ण! तुम मुझसे पहले ही पराजित होकर
रण छोड़ कर भाग चुके हो। नीति कहती है कि भगोड़े तथा पीठ दिखाने वाले के साथ युद्ध
नहीं करना चाहिये। अतः मैं तुमसे युद्ध नहीं करूँगा। यह अर्जुन भी दुबला-पतला और
कमजोर है तथा यह वृहन्नला के रूप में नपुंसक भी रह चुका है। इसलिये मैं इससे भी
युद्ध नहीं करूँगा। हाँ यह भीम मुझ जैसा ही बलवान है, मैं इसके साथ अवश्य युद्ध करूँगा।”
इसके पश्चात् दोनों
ही अपनी-अपनी गदा सँभाल कर, युद्ध के मैदान
में डट पड़े। दोनों ही महाबली तथा गदायुद्ध के विशेषज्ञ थे। पैंतरे बदल-बदल कर
युद्ध करने लगे। कभी भीमसेन का प्रहार जरासंघ को व्याकुल कर देता तो कभी जरासंघ चोट कर जाता। सूर्योदय से सूर्यास्त तक दोनों युद्ध करते
और सूर्यास्त के पश्चात् युद्ध विराम होने पर मित्रभाव हो जाते। इस प्रकार सत्ताइस
दिन व्यतीत हो गये और दोनों में से कोई भी पराजित न हो सका। अट्ठाइसवें दिन प्रातः
भीमसेन कृष्ण से बोले, “हे जनार्दन! यह
जरासंघ तो पराजित ही नहीं हो रहा है। अब आप ही इसे पराजित करने का कोई उपाय
बताइये।” भीम की बात सुनकर
श्री कृष्ण ने कहा, “भीम! यह जरासंघ
अपने जन्म के समय दो टुकड़ों में उत्पन्न हुआ था, तब "जरा" नाम की राक्षसी ने दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया था। इसलिये युद्ध
करते समय जब मै तुम्हें संकेत करूँगा तो तुम इसके शरीर को दो टुकड़ों में विभक्त कर
देना। बिना इसके शरीर के दो टुकड़े हुये इसका वध नहीं हो सकता।”
जनार्दन की बातों
को ध्यान में रख कर भीमसेन जरासंघ से युद्ध करने लगे। युद्ध करते-करते दोनों की
गदाओं के टुकड़े-टुकड़े हो गये, तब वे मल्ल युद्ध करने लगे। मल्ल युद्ध
में ज्योंही भीम ने जरासंघ को भूमि पर पटका, श्री कृष्ण ने एक वृक्ष की डाली को बीच से चीरकर
भीमसेन को संकेत किया। उनका संकेत समझ कर भीम ने अपने एक पैर से जरासंघ के एक टांग
को दबा दिया और उसकी दूसरी टांग को दोनों हाथों से पकड़ कर, कंधे से ऊपर तक
उठा दिया जिससे जरासंघ के दो टुकड़े हो गये। भीम ने उसके दोनों टुकड़ों को अपने
दोनों हाथों में लेकर पूरी शक्ति के साथ विपरीत दिशाओं में फेंक दिया और इस प्रकार
महाबली जरासंघ का वध हो गया।
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