ईश्वरीय संविधान.
जैसे किसी राज्य या देश को अच्छे तरीके से चलाने के लिए उस देश या
राज्य में एक संविधान होता है! उपर से नीचे तक उस संविधान के रखवाले बैठाये जाते हैं! किसी
व्यक्ति को कोई परेशानी होने पर उसे तत्काल दूर करने की कानून-व्यवस्था होती! उसी प्रकार
ईश्वर ने इस सृष्टि को चलाने के लिए अपना एक संविधान बनाया है!
इस संविधान में जीव को स्वयं ही सब कुछ सौप दिया है! जो जैसा कर्म करे, वह वैसा ही फल
पाये! जिसे जो चाहिए उसे हाँसिल कर सकता है!
उपर से नीचे तक देवताओं को रखवाला बना दिया गया है, उसने अपने हाथ में कुछ भी नहीं
रखा है! हर जीव को अपना स्वरुप प्रदान कर दिया है, अपनी सारी शक्तियों के साथ हर जीव में हर-क्षण मौजुद है! जीव अपने कर्मों का फल स्वयं पाता है, जो
जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा, आपको
क्या चाहिए इसका चुनाव आपको स्वयं करना है, और
कर्मों का फल तो अवश्य मिलता है क्योंकि ईश्वर ने ऐसी
ब्यवस्था कर रखी है, कि उसे कोई रोक नहीं
सकता, इस जन्म में नहीं तो किसी और जन्म में, पर
मिलेगी जरुर|
यहाँ सब कुछ जीव के हाँथो में है
कि उसे क्या चाहिए, यहाँ दाता भी वही है और भिच्छुक भी|
(स्वामी रामसुखदास जी )
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