दया अनिवार्य हैं परन्तु जागरूकता के साथ|
दया, मनुष्योचित धर्म हैं| जो कष्ट में हैं,सहायता के लिए कराह रहा हैं, वह दया का पात्र हैं| जो दुर्बल हैं, कम आयु के हैं, गिरी अवस्था में हैं, उन पर निश्चय ही दया करनी चाहिए| दया कर्तव्य हैं| पूर्ण मनुष्य केवल साहस और वीरता से ही नहीं बनता, उसमें दया-जैसे कोमल भाव की भी बहुत आवश्यकता हैं| दया ही वह दिव्य गुण हैं, जिसके द्वारा ईश्वर आपसे, अपने बंधुओं की सहायता चाहता हैं| रोगियों का रोग दूर करने, दरिद्र को दरिद्र्य से उबारने, दुखियों का दुःख दूर करने और मानवता की रक्षा के लिए, दया एक महत्वपूर्ण सद्गुण हैं| दया का दायरा सामर्थ्य के अनुसार बढाते रहना चाहिए| इसमें मनुष्य ही नहीं,पशु-पक्षी-कीट-पतंगे इत्यादि भी सम्मिलित हैं|
लेकिन दया की भी एक मर्यादा हैं| जो व्यक्ति एक बार या दो बार, आपकी दया से लाभ उठाकर, ऊँचा नहीं उठता या उन्नति नहीं करता, वह मनुष्य नहीं, पत्थर हैं| हम आज के समाज में देखते हैं कि अनेक भिखारिओं ने दया की आड में भिक्षावृत्ति को एक पेशा बना लिया हैं| यह दया का अनुचित उपयोग हैं| इसी प्रकार के और भी अन्य उदाहरण मिल जायेंगे, जिनसे बचना चाहिए|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें