आसक्ति ही पुनर्जन्म का कारण बनी.
कहते हैं अति सर्वत्र वर्जते यानी किसी भी चीज की अति दुखदायी होती है। चाहे वह अति खाने-पीने को लेकर हो, प्रेम या नफरत की हो, या अन्य किसी तरह की अति, हमेशा दुख ही देती है।
एक बार की बात है, पृथ्वीपति भरत जिनके नाम पर अपने देश का "भारत" नाम पड़ा था। एक दिन, वे नदी पर नहाने के लिए गए। वहां, उस समय एक गर्भवती हिरनी पानी पीने आई। जब वह पानी पी चुकी थी, वहां अचानक शेर की आवाज सुनकर वह उछलकर नदी के तट पर चढ़ गई। बहुत ऊंचे स्थान पर चढऩे के कारण उसका गर्भपात हो गया। नदी की लहरो के साथ उसके गर्भ से निकला बच्चा, राजा भरत के पास पहुंचा। राजा भरत उसे अपने साथ आश्रम ले आए। वे उसका अपने बच्चों की तरह पालन-पोषण करने लगे।
उसी के कारण उनका पूजा-पाठ आदि सब छूट गया। वे दिन रात बस उसी के चिंतन में लगे रहते। एक दिन आश्रम के पास एक हिरणों का झुंड आया। वह हिरण उन्हीं के साथ चला गया। जब वह बच्चा वापस नहीं लौटा तो राजा भरत सोचने लगे कि कहीं उसे किसी भेडि़ए ने तो नहीं खा लिया। क्या वह आज जंगल से लौटेगा या नहीं, वे दिन रात बस उसी हिरण के बच्चे की चिंता करते रहते। जब उनकी मृत्यु का समय आया, तब भी वे उसी हिरण के बारे में सोचते रहते थे। इसी तरह हिरण के वियोग में राजा भरत ने अपने प्राण त्याग दिए। यही कारण था कि उन्हें अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा। इतने महान राजा-भक्त को भी हिरण से प्रेम आसक्ति हो जाने के कारण अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा|
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