कर्त्यवीर्य अर्जुन द्धारा रावण को बंदी बनाना.




रावण का दिग्विजय अभियान चल रहा था। कई राज्यों को जीतते हुए रावण महिष्मति पहुंचा। उस समय वहाँ हैहय वंश के राजा कर्त्यवीर्य अर्जुन शासन कर रहा था तथा नित्य की भांति अपनी रानियों के साथ जलविहार को गया हुआ था। घूमता घूमता रावण अपनी सेना सहित उसी सरोवर के किनारे पहुंच गया और अपने आराध्य भगवान शंकर की आराधना हेतु उसने शिवलिंग की स्थापना की। उधर अर्जुन की रानियों ने कौतुक के लिए उससे कुछ असाधारण करने का अनुरोध किया। कर्त्यवीर्य अर्जुन को वरदान स्वरुप हजार भुजाएं प्राप्त हुई थी इसी कारण वो सहस्त्रबाहु के नाम से भी विख्यात था तथा अजेय था। अपने पत्नियों के इस प्रकार अनुरोध करने पर उसने अपनी हजार भुजाओं से नदी का प्रवाह पूरी तरह रोक दिया।
अचानक धारा रुक जाने से नदी का जलस्तर बढ़ गया और उसके तट पर बनाया गया रावण का शिवलिंग बह गया। इससे अतिक्रोध में आकर रावण ने अपनी सेना की एक टुकड़ी को इसका कारण पता करने और अपराधी को बंदी बना कर लाने का आदेश दिया। जब उसकी सेना ने देखा कि अर्जुन ने अपने हजार हाथों से जल का प्रवाह रोक दिया है तो उन्होंने उसे बंदी बनाने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया किन्तु अर्जुन के पराक्रम के आगे किसी की ना चली। उससे पराजित हो,  वे वापस रावण के पास लौटे और उससे सारी घटना कही। अपने विजय के मद में चूर रावण, ये सुनकर नदी के तट पर पहुंचा और अर्जुन को युद्ध की चुनौती दे डाली। पहले अर्जुन ने कहा की रावण उसका अतिथि है इसलिए उसका, उससे युद्ध करना उचित नहीं है किन्तु रावण के रणमत्त हठ के आगे उसकी एक न चली। अंततः दोनों वीर युद्ध के लिए सज्जित हुए।
दोनों महायोद्धा और अजेय थे। उनका युद्ध कई दिनों तक चलता रहा और ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनमे से कोई भी पराजित नहीं हो सकता। अंत में अर्जुन ने क्रोध में आकर रावण को अपने हजार हाथों से जकड लिया। रावण अपनी पूरी शक्ति के बाद भी उससे निकल नहीं पाया और अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया। बाद में जब रावण के दादा महर्षि पुलत्स्य को इसका पता चला तो उन्होंने बीच बचाव कर रावण को मुक्त करवाया और फिर रावण अर्जुन से मित्रता कर वापस लंका को लौट गया।

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