पंच-सती
हिन्दू धर्म में पंच-सतियों का बड़ा महत्त्व है। ये पांचो
सम्पूर्ण नारी जाति के सम्मान की साक्षी मानी जाती हैं। विशेष बात ये है
कि इन पांचो स्त्रियों को अपने जीवन में अत्यंत कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा और साथ ही साथ समाज ने इनके पतिव्रत धर्म पर सवाल भी उठाए लेकिन
इन सभी के पश्चात् भी वे हमेशा पवित्र और पतिव्रत धर्म की प्रतीक मानी गई।
कहा जाता है कि नित्य सुबह इनके बारे में चिंतन करने से सारे पाप
धुल जाते हैं।
· अहल्या: महर्षि गौतम की पत्नी थी। देवराज इन्द्र इनकी सुन्दरता पर रीझ गए और
उन्होंने अहल्या को प्राप्त करने की जिद ठान ली| पर मन ही मन वे, अहल्या के पतिव्रत से डरते भी थे। एक बार रात्रि में हीं उन्होंने गौतम ऋषि के
आश्रम पर मुर्गे के स्वर में बांग देना शुरू कर दिया। गौतम ऋषि ने समझा
कि सवेरा हो गया है और इसी भ्रम में,
वे स्नान करने निकल पड़े। अहल्या को
अकेला पाकर इन्द्र ने गौतम ऋषि के रूप में आकर अहल्या से प्रणय याचना की
और उनका शील भंग किया। गौतम ऋषि जब वापस आये तो अहल्या का मुख देख कर वे सब
समझ गए। उन्होंने इन्द्र को नपुंसक होने का और अहल्या को शिला में
परिणत होने का श्राप दे दिया। युगों बाद श्रीराम ने अपने चरणों के स्पर्श से
अहल्या को श्राप मुक्त किया।
· मन्दोदरी: मंदोदरी मय दानव और हेमा अप्सरा की पुत्री, राक्षसराज रावण की
पत्नी और इन्द्रजीत मेघनाद की माता थी। पुराणों के अनुसार रावण के विश्व विजय के अभियान के समय, मय दानव ने रावण को अपनी पुत्री दे दी थी। जब रावण ने सीता का
हरण कर लिया तो मंदोदरी ने बार बार रावण को समझाया कि वो सीता को
सम्मान सहित लौटा दें। रावण की मृत्यु के पश्चात् मंदोदरी के करुण रुदन का जिक्र आता है। श्रीराम के सलाह पर रावण के छोटे भाई विभीषण ने मंदोदरी से
विवाह कर लिया था।
· तारा: तारा, समुद्र
मंथन के समय निकली अप्सराओं में से एक थी। ये वानरराज बालि की पत्नी और
अंगद की माता थी। रामायण में हालाँकि इनका जिक्र बहुत कम आया है
लेकिन ये अपनी बुधिमत्ता के लिए प्रसिद्ध थीं। पहली बार बालि से हारने के बाद
जब सुग्रीव दुबारा लड़ने के लिए आया तो इन्होने बालि से कहा कि अवश्य हीं
इसमें कोई भेद है लेकिन क्रोध में बालि ने इनकी बात नहीं सुनी और मारे
गए। बालि की मृत्यु के पश्चात् इनके करुण रुदन का वर्णन है। श्रीराम की
सलाह से बालि के छोटे भाई सुग्रीव से इनका विवाह होता है। जब लक्षमण क्रोध
पूर्वक सुग्रीव का वध करने किष्किन्धा आये तो तारा ने हीं अपनी
चतुराई और मधुर व्यवहार से उनका क्रोध शांत किया।
· कुन्ती: श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन थी। इनका असली नाम पृथा था लेकिन महाराज
कुन्तिभोज ने इन्हें गोद लिया था जिसके कारण इनका नाम कुंती पड़ा। इनका
विवाह भीष्म के भतीजे और धृतराष्ट के छोटे भाई पांडू से हुआ। विवाह से
पूर्व भूलवश इन्होने महर्षि दुर्वासा के वरदान का प्रयोग सूर्यदेव पर कर
दिया जिनसे कर्ण का जन्म हुआ लेकिन लोकलाज के डर से इन्होने कर्ण को नदी
में बहा दिया। पांडू के संतानोत्पत्ति में असमर्थ होने पर उन्होंने उसी मंत्र
का प्रयोग कर धर्मराज से युधिष्ठिर,
वायुदेव से भीमऔर इन्द्र से अर्जुन को
जन्म दिया। इन्होने पांडू की दूसरी पत्नी माद्री को भी इस मंत्र की दीक्षा
दी जिससे उन्होंने अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव को जन्म दिया।
· द्रौपदी: ये पांचाल के राजा महाराज द्रुपद की पुत्री, धृष्टधुम्न की बहन और
पांचो पांडवो की पत्नी थी। श्रीकृष्ण ने इन्हें अपनी मुहबोली बहन
माना। ये पांडवों के दुःख और संघर्ष में बराबर की हिस्सेदार थी। पांच
व्यक्तियों की पत्नी होकर भी इन्होने पतिव्रत धर्म का एक अनूठा उदाहरण
प्रस्तुत किया। कौरवों ने इनका चीर-हरण करने का प्रयास किया और ये, इनके पतिव्रत धर्म का हीं प्रभाव था कि स्वयं श्रीकृष्ण को इनकी रक्षा के लिए आना
पड़ा। श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को इन्होने हीं पतिव्रत धर्म की
शिक्षा दी थी। यही नहीं, जब पांडवों ने अपने शरीर को त्यागने का निर्णय लिया तो उनकी अंतिम यात्रा में भी उनके साथ थीं।
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