विश्वानर नामक ब्राह्मण ने अपनी
पत्नी शुचिष्मति के आग्रह पर पुत्र प्राप्ति हेतु काशी में शिव-आराधना की थी| उस समय बालरूप
शिव के दर्शन हुए तब उसने निम्न-लिखित आठ पदों से उनकी स्तुति की थी| इसी के
फलस्वरूप उसे पुत्र-प्राप्ति हुई थी|
पुत्र,
पौत्र, धन, धान्य, सुख, आदि की कामना पूर्ती के लिये यह स्त्रोत्र अद्वितीय और चमत्कारी माना
गया हैं| इस स्त्रोत का शिव-विग्रह के समीप वर्ष भर स्वयं पाठ करने से (जो न कर सकें किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा
संकल्प-पूर्वक पाठ करावें) पुत्र, पौत्र,
धन, धान्य, सुख, आदि की कामना [अभिलाषा] को पूर्ण करने
वाला कहा
जाता है | ऐसा भी कहा गया कि इसके पाठ से बंध्या स्त्री को भी पुत्र-लाभ हुआ हैं|
अभिलाष्ट्क स्त्रोत....(श०रु०सं० /१३ /४२-४९)....
एकं ब्रह्मैवा
द्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किंचित |
एको रुद्रो न
द्वितियोवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशं ||
कर्ता हर्ता त्वं हि सर्वस्व शम्भो!
नाना रूपोप्यरूपः |
यद्वत्प्रत्यगधर्म
एकोप्यनेकस्त स्मान्नानयम् त्वां विनेशं प्रपद्ये ||
रज्जौ सर्पः
शुक्तिकायाम् च रौप्यम नैर: पूरस्तनमृगाख्ये मरीचौ |
यद्यत्सद्वद्विष्वगेव
प्रपंचो यस्मिनज्ञाते तं प्रपद्द्यं महेशं ||
तोये शैत्यं
दाह्कत्वं च वह्नौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसादः |
पुष्पे गन्धो
दुग्धमध्येपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ||
शब्दम्
गृह्णास्यश्रवास्तवं हि जिघ्रस्य घ्राण स्तवं व्यंघ्रीरायासि दूरात |
व्यक्ष: पश्येस्तवं
रसज्ञोप्यजिहवःकस्त्वां सम्यग्वेत्तयतस्त्वां प्रपद्ये ||
नो वेद त्वमीश!
साक्षादि वेदो नो वो विष्णुर्नो विधाताखिलस्य |
नो
योगिन्द्रानेन्द्रमुखाश्च देवा भक्तोवेद त्वामतस्त्वाम प्रपद्ये ||
नो ते गोत्रं नो
सजन्मापि नाशो नो वा रूपं नैव शीलं न् देशः |
इत्थंभूतोपीश्वरस्त्वं
त्रिलोक्या: सर्वान्कामान्पूरये स्त्वं भजेत्वाम ||
त्वत्तः सर्वे त्वं
हि सर्वं स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोति शान्तः |
त्वं वै वृद्धस्त्वं
युवा त्वं च बालस्तत्त्वं यत्किं नान्यतस्त्वां नतोहं ||
...इति..
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