संसार
रूपी कड़ुवे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है
मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की
संगति। यह संसार कष्टों का भंडार है, पग-पग पर निराशाप्रद स्थितियों का
सामना करना पड़ता है। ऐसे संसार में दूसरों से कुछ-एक
मधुर बोल सुनने को मिल जाएं और सद्व्यवहार के धनी लोगों का सान्निध्य मिल जाए तो आदमी को तसल्ली हो जाती है। मीठे बोल और
सद्व्यवहार की कोई कीमत नहीं होती है,
परंतु ये अन्य लोगों को अपने
कष्ट भूलने में सहायता करते हैं। कष्टमय संसार में इतना ही बहुत है।
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