एक रुपया की कीमत..




"चाहत और जरूरत में तालमेल बिठाये बिना आप किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकते|
"

सोहन नामक नवयुवक लड़का के पिताजी एक छोटे शहर में मिठाई की दुकान चलाते थे|  दूकान की कमाई से सामान्य बचत के साथ घर खर्च चल जाता था|
सोहन , था तो सभ्य  लड़का किन्तु फिजूलखर्ची था|  प्राय: पिताजी से पैसा लेकर, खाने-पीने या सिनेमा देखने में उड़ा दिया करता था|

एक दिन पिताजी ने सोहन  को समझाया, “देखो बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो और तुम्हे अपनी जिम्मेदारियां समझना चाहियें। आये दिन तुम मुझसे पैसे मांगते रहते हो और उसे इधर-उधर उड़ाते हो ये अच्छी बात नहीं है।”

“क्या पिताजी! कौन सा मैं आपसे हज़ार रुपये ले लेता हूँ… चंद पैसों के लिए आप मुझे इतना कुछ कह रहे हैं....इतने से पैसे तो मैं जब चाहूँ आपको लौटा सकता हूँ।”, सोहन ने अनमने मन से कहा।

सोहन की बात सुनकर पिताजी क्रोधित हो गए, पर वो समझ चुके थे की डांटने-फटकारने से कोई बात नहीं बनेगी। इसलिए उन्होंने कहा, “ ये तो बहुत अच्छी बात है…ऐसा करो कि तुम मुझे ज्यादा नहीं बस एक रूपये रोज लाकर दे दिया करो।”

सोहन मुस्कुराया और खुद को जीता हुआ समझ  कर वहां से चला गया।

अगले दिन सोहन जब शाम को पिताजी के पास पहुंचा तो वे उसे देखते ही बोले, “ बेटा, लाओ मेरा  1 रुपया।”

उनकी बात सुनकर सोहन  जरा घबराया और जल्दी से अपनी दादी माँ से एक रुपये लेकर लौटा।

“लीजिये पिताजी ले आया मैं आपका  एक रुपया !”, और ऐसा कहते हुए उसने सिक्का पिताजी के हाथ में थमा दिया।

उसे लेते ही पिताजी ने सिक्का, चूल्हा की आग  में फेंक दिया।

“ये क्या, आपने ऐसा क्यों किया?”, सोहन  ने हैरानी से पूछा।

पिताजी बोले-

तुम्हे इससे क्या, तुम्हे तो बस 1 रुपये देने से मतलब होना चाहिए, फिर मैं चाहे उसका जो करूँ।

सोहन ने भी ज्यादा बहस नहीं की और वहां से चुपचाप चला गया।

अगले दिन जब पिताजी ने उससे 1 रुपया माँगा तो उसने अपनी माँ से पैसा मांग कर दे दिया…कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा वो रोज किसी दोस्त-यार या सम्बन्धी से पैसे लेकर पिताजी को देता और वो उसे चूल्हा की आग में फेंक देते।

फिर एक दिन ऐसा आया, जब हर कोई उसे पैसे देने से मना करने लगा। सोहन  को चिंता होने लगी कि अब वो पिताजी को एक रुपये कहाँ से लाकर देगा।

शाम भी होने वाली थी, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो करे क्या! एक रुपया भी ना दे पाने की शर्मिंदगी वो उठाना नहीं चाहता था। तभी उसे एक अधेड़ उम्र का मजदूर दिखा जो  हाथगाड़ी से समान  लेकर कहीं जा रहा था।

“सुनो भैया, क्या तुम थोड़ी देर मुझे ये हाथगाड़ी खींचने दोगे? उसके बदले में, मैं तुमसे बस एक रुपये लूँगा”, सोहन  ने गाड़ीवाले  से कहा।

गाड़ीवाला  बहुत थक चुका था, वह तुरंत  तैयार हो गया।

 सोहन गाड़ी खींचने लगा! ये काम उसने जितना सोचा था उससे कहीं कठिन था… थोड़ी दूर जाने में ही उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए, पैर भी दुखने लगे! खैर किसी तरह से उसने अपना काम पूरा किया और बदले में  पहली बार  1 रुपया कमाया।

आज बड़े गर्व के साथ वो पिताजी के पास पहुंचा और उनकी हथेली में 1 रुपये थमा दिए।

रोज की तरह पिताजी ने रूपये लेते ही उसे चूल्हे  में फेंकने के लिए हाथ बढाया।

“रुकिए पिताजी!”, सोहन ने  पिताजी का हाथ थामते हुए कहा, “आप इसे नहीं फेंक सकते! ये मेरे मेहनत की कमाई है।”

और सोहन  ने पूरा वाकया कह सुनाया।

पिताजी आगे बढे और अपने बेटे को गले से लगा लिया।

“देखो बेटा! इतने दिनों से, मैं सिक्के चूल्हे की आग  में फेंक रहा था लकिन तुमने मुझे एक बार भी नहीं रोका पर आज जब तुमने अपनी मेहनत की कमाई को आग में जाते देखा तो एकदम से घबरा गए। ठीक इसी तरह जब तुम मेरी मेहनत की कमाई को बेकार की चीजों में उड़ाते हो तो मुझे भी इतना ही दर्द होता है, मैं भी घबरा जाता हूँ…इसलिए पैसे की कीमत को समझो चाहे वो तुम्हारे हों या किसी और के…कभी भी उसे फिजूलखर्ची में बर्वाद मत करो!” 
 
सोहन अब पिताजी की बात समझ चुका था, उसने फौरन उनके चरण स्पर्श किये और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। आज वो एक रुपये की कीमत समझ चुका था और उसने मन ही मन संकल्प लिया कि अब वो कभी भी पैसों की बर्बादी नहीं करेगा।

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