भारतीय कला.
(64 कलायें)
कला, संस्कृति की वाहिका है। भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य हमें स्थूल से चेतन सत्ता तक एकरूप कर देता है। मानवीय संबन्धों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को कला उजागार करती है। अस्तु चेतना का मूल ‘रस’ है। वही आस्वाद्य एवं आनन्द है, जिसे कला उद्घाटित करती है। भारतीय कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्वण बनाकर रखती है। भारतीय कला को जानने के लिये उपवेद, शास्त्र, पुराण और पुरातत्त्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पड़ता है।
भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र में ६४ कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त 'प्रबन्ध कोश' तथा 'शुक्रनीति सार' में भी कलाओं की संख्या ६४ ही है। 'ललितविस्तर' में तो ८६ कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है।
कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं-
गीतं (१), वाद्यं (२), नृत्यं (३), आलेख्यं (४), विशेषकच्छेद्यं (५), तण्डुलकुसुमवलि विकाराः (६), पुष्पास्तरणं (७), दशनवसनागरागः (८), मणिभूमिकाकर्म (९), शयनरचनं (१०), उदकवाद्यं (११), उदकाघातः (१२), चित्राश्च योगाः (१३), माल्यग्रथन विकल्पाः (१४), शेखरकापीडयोजनं (१५), नेपथ्यप्रयोगाः (१६), कर्णपत्त्र भङ्गाः (१७), गन्धयुक्तिः (१८), भूषणयोजनं (१९), ऐन्द्रजालाः (२०), कौचुमाराश्च (२१), हस्तलाघवं (२२), विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (२३),.पानकरसरागासवयोजनं (२४), सूचीवानकर्माणि (२५), सूत्रक्रीडा (२६), वीणाडमरुकवाद्यानि (२७), प्रहेलिका (२८), प्रतिमाला (२९), दुर्वाचकयोगाः (३०), पुस्तकवाचनं (३१), नाटकाख्यायिकादर्शनं (३२), काव्यसमस्यापूरणं (३३), पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः (३४),तक्षकर्माणि (३५), तक्षणं (३६), वास्तुविद्या (३७), रूप्यपरीक्षा (३८), धातुवादः (३९), मणिरागाकरज्ञानं (४०), वृक्षायुर्वेदयोगाः (४१), मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः (४२), शुकसारिकाप्रलापनं (४३), उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलं (४४),अक्षरमुष्तिकाकथनम् (४५), म्लेच्छितविकल्पाः (४६), देशभाषाविज्ञानं (४७), पुष्पशकटिका (४८), निमित्तज्ञानं (४९), यन्त्रमातृका (५०), धारणमातृका (५१), सम्पाठ्यं (५२), मानसी काव्यक्रिया (५३), अभिधानकोशः (५४), छन्दोज्ञानं (५५), क्रियाकल्पः (५६), छलितकयोगाः (५७), वस्त्रगोपनानि (५८), द्यूतविशेषः (५९), आकर्षक्रीडा (६०), बालक्रीडनकानि (६१), वैनयिकीनां (६२), वैजयिकीनां (६३), व्यायामिकीनां च (६४) विद्यानां ज्ञानं इति चतुःषष्टिरङ्गविद्या. कामसूत्रावयविन्यः. ॥कामसूत्र १.३.१५ ॥
उपरोक्त संस्कृत शब्द का हिंदी रूप:-
1- गानविद्या
2- वाद्य - भांति-भांति के
बाजे बजाना
3- नृत्य
4- नाट्य
5- चित्रकारी
6- बेल-बूटे बनाना
7- चावल और पुष्पादि
से पूजा के उपहार की रचना करना
8- फूलों की सेज
बनान
9- दांत, वस्त्र और अंगों
को रंगना
10- मणियों की फर्श
बनाना
11- शय्या-रचना (बिस्तर
की सज्जा)
12- जल को बांध देना
13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना
14- हार-माला आदि
बनाना
15- कान और चोटी के
फूलों के गहने बनाना
16- कपड़े और गहने
बनाना
17- फूलों के आभूषणों
से श्रृंगार करना
18- कानों के पत्तों
की रचना करना
19- सुगंध
वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना
20- इंद्रजाल-जादूगरी
21- चाहे जैसा वेष
धारण कर लेना
|
22- हाथ की फुर्ती के काम
23- तरह-तरह खाने की
वस्तुएं बनाना
24- तरह-तरह पीने के
पदार्थ बनाना
25- सूई का काम
26- कठपुतली बनाना, नाचना
27- पहली
28- प्रतिमा आदि
बनाना
29- कूटनीति
30- ग्रंथों के
पढ़ाने की चातुरी
31- नाटक आख्यायिका
आदि की रचना करना
32- समस्यापूर्ति
करना
33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना
34- गलीचे, दरी आदि बनाना
35- बढ़ई की कारीगरी
36- गृह आदि बनाने की
कारीगरी
37- सोने, चांदी आदि धातु
तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा
38- सोना-चांदी आदि
बना लेना
39- मणियों के रंग को
पहचानना
40- खानों की पहचान
41- वृक्षों की
चिकित्सा
42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को
लड़ाने की रीति
|
43- तोता-मैना आदि की
बोलियां बोलना
44- उच्चाटनकी विधि
45- केशों की सफाई का
कौशल
46- मुट्ठी की चीज या
मनकी बात बता देना
47- म्लेच्छित-कुतर्क-विकल्प
48- विभिन्न देशों की
भाषा का ज्ञान
49- शकुन-अपशकुन
जानना, प्रश्नों उत्तर
में शुभाशुभ बतलाना
50- नाना प्रकार के
मातृकायन्त्र बनाना
51- रत्नों को नाना
प्रकार के आकारों में काटना
52- सांकेतिक भाषा
बनाना
53- मनमें कटकरचना
करना
54- नयी-नयी बातें
निकालना
55- छल से काम
निकालना
56- समस्त कोशों का
ज्ञान
57- समस्त छन्दों का
ज्ञान
58- वस्त्रों को
छिपाने या बदलने की विद्या
59- द्यू्त क्रीड़ा
60- दूरके मनुष्य या
वस्तुओं का आकर्षण
61- बालकों के खेल
62- मन्त्रविद्या
63- विजय प्राप्त
कराने वाली विद्या
64- बेताल आदि को वश
में रखने की विद्या
|
वात्स्यायन ने जिन ६४ कलाओं की नामावली कामसूत्र में प्रस्तुत की है उन सभी कलाओं के नाम यजुर्वेद के तीसवें अध्याय में मिलते हैं। इस अध्याय में कुल २२ मन्त्र हैं, जिनमें से चौथे मंत्र से लेकर बाईसवें मंत्र तक उन्हीं कलाओं और कलाकारों का उल्लेख है।
श्री कृष्ण अपनी शिक्षा ग्रहण करने आवंतिपुर (उज्जैन) गुरु सांदीपनि के आश्रम में गए थे, जहाँ वो मात्र 64 दिन रहे थे। मात्र 64 दिनों में ही अपने गुरु से 64 कलाओं की शिक्षा हासिल कर ली थी। हालांकि श्री कृष्ण भगवान के अवतार थे और यह कलाएं उन को पहले से ही आती थी, पर उनका अवतार एक साधारण मनुष्य के रूप में हुआ था, इसलिए उन्होंने गुरु के पास इनका अध्ययन किया था। वे सम्पूर्ण 64 कलाओं में पारंगत थे।
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