कविता-भजन- बंसी वाले हमारी.


कविता-भजन-
बंसी वाले हमारी....

बंसी वाले हमारी खबर लेना।
विपत्ति पांडवों की तुमने बाँट ली आकर,
तुम्हीं ने कैद देवकी की काट दी आकर।
तुम्हीं ग़रीबों के हो मान बढानें वाले,
बिदुर के घर भाँजी भोग लगाने वाले।
हम ग़रीबों पै  भी 
कुछ नज़र देना॥
बंसी वाले हमारी....
तुम्हें पुकारतीं गौएँ कहाँ हो श्याम मेरे,
वो बृज की भूमि कह रही कहाँ राम मेरे।
हम भी अरमान दर्शनों का लिए बैठे हैं,
तुम्हारे वास्ते दिल जान दिए बैठे हैं।
दीन-दुखियों की झोली भर देना॥
बंसी वाले हमारी....
तुम्हीं ने चैन की बंसी बजाई थी बृज में,
तुम्हीं ने रास की लीला रचाई थी बृज में।
तुम्हीं हो नन्द की गौओं को चराने वाले,
तुम्हीं हो माखन-मिश्री के चुराने वाले।
फिर अपना अवतार वो धर लेना॥
बंसी वाले हमारी....
तुम्हारे नाम की रटना लगा रहा भगवन्।
दयानिधान के गुणगान गा रहा भगवन्।
जरा हमारी तरफ भी नज़र उठाओ तो,
अधम अधीन को भवजाल से छुड़ाओ तो।
बिन्दुआँसू के, आँखों से हर लेना॥
बंसी वाले हमारी....

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