कविता-भजन-
अजब है यह दुनिया बाजार.
अजब है यह दुनिया बाजार.
जीव जहाँ पर खरीदार हैं, ईश्वर साहूकार ।
कर्म तराजू रैन दिवस दो पलड़े तौले भार,
पाप पुण्य के सौदे से ही होता है व्यापार ।
बने दलाल फिरा करते हैं कामादिक बटमार,
किन्तु बचते हैं जिनसे ज्ञानादिक पहरेदार ।
गिनकर थैली श्वास रत्न की परखादी सौ बार,
कुछ तो माल खरीदा नकदी कुछ कर लिया उधार ।
भरकर जीवन नाव चले आशा सरिता के पार,
कहीं 'बिन्दु' गर छिद्र हुआ तो डूब गए मंझधार ।
जीव जहाँ पर खरीदार हैं, ईश्वर साहूकार ।
कर्म तराजू रैन दिवस दो पलड़े तौले भार,
पाप पुण्य के सौदे से ही होता है व्यापार ।
बने दलाल फिरा करते हैं कामादिक बटमार,
किन्तु बचते हैं जिनसे ज्ञानादिक पहरेदार ।
गिनकर थैली श्वास रत्न की परखादी सौ बार,
कुछ तो माल खरीदा नकदी कुछ कर लिया उधार ।
भरकर जीवन नाव चले आशा सरिता के पार,
कहीं 'बिन्दु' गर छिद्र हुआ तो डूब गए मंझधार ।
अजब है यह दुनिया बाजार.
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