आध्यात्मिक प्रक्रिया कुछ इस तरह होती गई विकृत.


आध्यात्मिक प्रक्रिया कुछ
इस तरह होती गई विकृत.
(सदगुरु जग्गी वासुदेव)

आध्यात्मिकता, जिसका उदय मानवजाति के कल्याण के लिए हुआ था, वह कैसे विकृत हो गई? इस बात को बहुत ही सरल तरीके से समझाते हुए आध्यात्मिक सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं, 'यह गौर करना बहुत जरूरी है कि आध्यात्मिक प्रक्रिया असली है या नहीं, या उसका इस्तेमाल सही दिशा में हो रहा है या नहीं।' 


पौराणिक काल में ऐसा नहीं था कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग किनारे पर हों। आध्यात्मिकता मुख्यधारा की चीज थी। दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में कभी ऐसा नहीं हुआ है। धार्मिक चीजें हुईं हैं, लेकिन समाज के एक बड़े तबके के लिए एक सक्रिय आध्यात्मिक प्रक्रिया कभी कहीं और घटित नहीं हुई है।

एक ही शहर में कई गुरु होते थे। हर गुरु अलग-अलग चीजें बताता था मगर किसी का किसी से टकराव नहीं था। यह इतना व्यापक था कि आध्यात्मिकता में भी लोकतांत्रिक तरीका था। लोगों के पास यह विकल्प था कि आज वे एक जगह जा रहे हैं तो अगले दिन किसी और जगह जा सकते हैं और उसके अगले दिन किसी और जगह भी।

वर्तमान में एक समस्या यह है भी कि आपके पास बहुत सारे विकल्प नहीं हैं, जहां आप खोजने जा सकें। उदाहरण के लिए आप भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखते हैं।

आप जाकर अटलांटा में गाइए, वे आपके लिए तालियां बजाएंगे। आप दिल्ली या मुंबई में गाएंगे, वे तालियां बजाएंगे। मगर जब आप चेन्नई में जाकर गाएंगे, तो एक गलती करने पर दर्शक उठ कर चले जाएंगे क्योंकि वहां के दर्शकों को शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ है।

यही बात आध्यात्मिक प्रक्रिया पर भी लागू होती है, पहले उसका अनुसरण करने वाले योग्य और काबिल लोग थे। मगर जब बाहरी आक्रमण हुए, तो सबसे योग्य लोगों को सबसे पहले मारा गया क्योंकि आक्रमणकारी सिर्फ जमीन, सोना और स्त्रियां नहीं चाहते थे।

वे अच्छी तरह समझते थे कि जब तक वे अपना धर्म आपके ऊपर नहीं थोपेंगे, आप पूरी तरह उनके वश में नहीं होंगे। इसलिए सबसे पहले उन्होंने आध्यात्मिक प्रक्रिया को नष्ट किया। और इस तरह यह विकृत होती चली गई।

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