श्रीश्री तरुण सागर जी महाराज.
शनिवार सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया.
महाराजश्री अपने कड़वे और विवादित प्रवचन के कारण प्रसिध्द थे. उन्होंने एक किताब भी लिखी थी जिसके बाद लोगों ने उन्हें क्रांतिकारी संत कहना शुरू कर दिया था. अपनी किताब और प्रवचन में, दोनों में ही कड़वी भाषा का उपयोग किया था. उसका कुछ अंश इस प्रकार हैं:-
“राजनीति को हम धर्म से ही कंट्रोल कर सकते हैं. धर्म पति है, राजनीति पत्नी. हर पति की ये ड्यूटी होती है कि वो अपनी पत्नी को सुरक्षा दे, हर पत्नी का धर्म होता है कि वो पति के अनुशासन को स्वीकार करे, ऐसा ही राजनीति और धर्म के भी साथ होना चाहिए क्योंकि बिना अंकुश के हर कोई खुले हाथी की तरह हो जाता है.”
‘हंसने का यह गुण केवल मनुष्यों को मिला है, इसलिए जब भी मौका मिले मुस्कुराइये, कुत्ता चाहकर भी मुस्कुरा नहीं सकता.”
“जिनकी बेटी ना हो, उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए और जिस घर में बेटी ना हो, वहां शादी करनी ही नहीं चाहिए और जिस घर में बेटी ना हो उस घर से साधु-संत भिक्षा ना लें.”
“परिवार में आप किसी को बदल नहीं सकते हैं; लेकिन आप अपने आप को बदल सकते हैं, खुद पर आपका पूरा अधिकार है.”
“पूरी दुनिया को आप चमड़े से ढ़क नहीं सकते हैं; लेकिन आप अगर चमड़े के जूते पहनकर चलेंगे, तो दुनिया आपके जूतों से ढ़क जायेगी, यही जीवन का सार है.”
“इंसानों को आप दिल से जीतो, तभी आप सफल हैं. तलवार के बल पर जीत तो हासिल की जा सकती है, लेकिन प्यार नहीं.”
“अगर तुम्हारे कारण कोई इ्ंसान दुखी रहे तो समझ लो, ये तुम्हारे लिए सबसे बड़ा पाप है, ऐसे काम करो कि लोग तुम्हारे जाने के बाद दुखी होकर आसूं बहाएं, तभी पुण्य की प्राप्ति होगी.”
“गुलाब से लोग क्यों प्रेम करते हैं? क्योंकि गुलाब कांटों के बीच में भी हंसता है. तुम भी ऐसे काम करो कि तुमसे नफरत करने वाले लोग भी तुमसे प्रेम करने पर विवश हो जायें.”
“अपने अंदर इंसान को सहनशक्ति पैदा करनी चाहिए; क्योंकि जो सहता है, वो ही रहता है, जो नहीं सहता वो टूट जाता है.”
जीवन परिचय.
जैन मुनि तरुण सागर जी का जन्म 26 जून 1967 को मध्यप्रदेश के दमोह जिले के गुहजी ग्राम में हुआ था. उनका बचपन का नाम पवन कुमार जैन, उनकी माता का नाम महिलारत्न श्रीमती शांतिबाई जैन और पिता का नाम श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चन्द्र जी जै,न था। उन्होंने 8 मार्च 1981 को सत्य की खोज करने और धर्म को सपर्पित होने के लिए अपना गृह त्याग दिया था।
उन्होंने 18 जनवरी, 1982 को अकलतरा (छत्तीसगढ़) में अपनी छुल्लक दीक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने 20 जुलाई, 1988 को राजस्थान के बागीदौरा में मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। उन्हें यह दीक्षा गुरु आचार्य पुष्पदंत सागर जी द्वारा दी गई थी। दीक्षा के पश्चात मुनि तरुण सागर महाराज हो गए. वे लेखक भी थे और उनकी सबसे अधिक चर्चित कृति “मृत्यु बोध” है।
वे हरियाणा की विधानसभा में प्रवचन देने वाले प्रथम मुनि भी थे।
मुनि तरुण सागर जी ने एक टीवी चैनल के जरिया भारत सहित 122 देशों में "महावीर वाणी " नामक कार्यक्रम के जरिये भगवन बुद्ध और धर्म से जुडी कई बातों का विश्व-व्यापी प्रसारण किया था। इसी तरह उन्होंने एक टीवी चैनल के एक कार्यक्रम में जैन धर्म और जैन मुनि की चर्या भी को बड़ी सरलता से समझाकर एक रिकॉर्ड बनाया था।
मुनि तरुण सागर ने कत्लखानों और मांस -निर्यात के विरोध में एक रास्ट्रीय आन्दोलन भी चलाया था, जो पूरी तरह से अहिंसातक था। उन्हें 2002 में म.प्र. शासन द्वारा ' राजकीय अतिथि ' का दर्जा दिया गया था और 2003 में गुजरात सरकार द्वारा ' राजकीय अतिथि ' की उपाधि से सम्म्मानित किया गया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें