कविता-भजन- मुझसे अधम अधीन उबारे न जाएँगे.


कविता-भजन- 
मुझसे अधम अधीन उबारे न जाएँगे.

मुझसे अधम अधीन उबारे न जाएँगे,
तो आप दीनबंधु पुकारे न जाएँगे।
जो बिक चुके हैं और ख़रीदा है आपने
अब वह गुलाम ग़ैर के द्वारे न जाएँगे।
पृथ्वी के भार आपने सौ बार उतारे,
क्या मेरे पाप भार उतारे न जाएँगे।
खामोश हूँगा मैं भी गर आप ये कह दो,
अब मुझसे पातकी कभी तारे न जाएँगे।
तब तक न चरण आपके संतोष पाएँगे,
दृग बिन्दुमें जब तक ये पखारे न जाएँगे।

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