इच्छा शक्ति के सुनियोजन
से
असंभव भी संभव.
मनुष्य के द्वारा जो भी कृत्य होते हैं, उनकी पृष्ठभूमि में इच्छाशक्ति को ही कार्यरत देखा जा सकता है। चेतना की यह शक्ति असीम, अप्रत्याशित एवं विलक्षण है। इस पर यदि नियंत्रण साधा जा सके तो मनुष्य न केवल अपनी शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है वरन् व्यक्ति, पदार्थ एवं वातावरण पर भी वह अपना प्रभाव डाल सकता है और उन्हें बदलने तक में आश्चर्यजनक रूप से समर्थ हो सकता है।
फ्राँस के प्रख्यात परामनोविज्ञानवेत्ता डा॰ पाल गोल्डीन के कथनानुसार मनुष्य के पास असीम सामर्थ्य के रूप में इच्छाशक्ति विद्यमान है जो सभी इन्द्रियों से अधिक शक्तिशाली एवं अद्भुत है। यह अकेले ही समस्त इन्द्रियों एवं शक्तियों के कार्य कर सकती है। इसी प्रकार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मूर्धन्य वैज्ञानिक डा॰ ह्वाटले कैरिंगटन ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति में इच्छाशक्ति होती है पर प्रायः यह क्षीण एवं अस्तव्यस्त होती है। जो लोग इसे प्रबल एवं व्यवस्थित बना लेते हैं वह अद्भुत शक्ति सामर्थ्ययुक्त हो जाते हैं। कुछ लोगों में यह अपने आप विकसित हो जाती है और कुछ लोग प्रयत्नपूर्वक अभ्यास से इसे विकसित करते-प्रचण्ड बनाते हैं। ऐसे अनेकानेक उदाहरण विद्यमान हैं जिसमें व्यक्तियों ने अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से जड़ वस्तुओं में हलचल पैदा करने, बादलों को हटाने, वर्षा कराने अथवा वर्षा रोकने के सफल प्रदर्शन किये हैं। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक डा॰ राँल्फ एलेक्जैण्डर ने सन् 1951 में बादलों को इच्छाशक्ति से एकत्र कर बूंदा−बांदी करने तथा फिर हटाने में ख्याति प्राप्त की थी, इसका विवरण तो बहुत समाचार पत्रों में मिलता है, पर एक व्यक्ति इस सदी में ऐसा भी हुआ है, जिसे “कमाण्डर ऑफ नेचर”, “किंग ऑफ क्लाउड कम्पेलर्स” की उपाधि मिली व जिसने शर्त लगाकर सानडियागो कैलीफोर्निया में मूसलाधार बरसात करके दिखाई। इस व्यक्ति का नाम था चार्ल्स हैटफील्ड। कहते हैं कि ग्वाटेमाला में वह तीस वर्ष तक आदिवासियों से सीखी विद्या के आधार पर झीलों को भरने, फसल बचाने के चमत्कार दिखाता रहा। पर वैज्ञानिकों को उस पर कोई विश्वास नहीं था। उसने लंदन शहर पर छाये कुहासे को हटाकर उसे सहारा रेगिस्तान पर बरसाकर हरियाली लाने का भी दावा किया, पर इसे मजाक समझकर किसी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया।
29 दिसम्बर, 1915 को वह सानडियागो के मेयर के पास पहुँचा व पेशकश रखी कि दस हजार डालर के बदले वह मोरेना डैम नामक शहर की पूर्ति करने वाले जलाशय को भर देगा। यदि वर्षा न हुई तो उस कुछ नहीं चाहिए, यदि जलाशय भर गया तो वे उसे वाँछित राशि देंगे। 15 अरब गैलन क्षमता वाला जलाशय इच्छाशक्ति से भरा जा सकता है, यह किसी के लिये भी हँसी का विषय बन सकता था। मेयर ने हँसी-हँसी में यह सौदा कर लिया क्योंकि पहले पूरी वर्षा होने पर भी वह जलाशय निर्माण की तिथि से अब तक कभी भी एक तिहाई से अधिक नहीं भरा था। चूँकि तीन वर्ष से वर्षा हो भी नहीं रही थी, जल संकट था ही, ऐसी शर्त बदलने में नुकसान क्या है? यही सोचकर मेयर महोदय ने मौखिक सौदा कर लिया।
एक जनवरी, 1916 को हैट फील्ड सालडियागो से 60 मील पूर्व स्थिति मोरेना डैम के समीप जा पहुँचा। पहले उसने बीस फीट ऊँचा एक लकड़ी का टाँवर बनाया इसके ऊपर बड़ी गैल्वेनाइजिंग ट्रे रखी जिनमें उसका विशिष्ट आर्द्रता आमंत्रक द्रव्य उसने फैला रखा था। फिर उसने अपनी गुप्त प्रक्रिया द्वारा उस पर ध्यान केन्द्रित कर उस सम्मिश्रण को जो वनौषधि से बना था, वाष्पीकृत करना चालू किया, साथ ही कुछ मंत्र बुदबुदाना भी। यह क्रम बिना विश्राम के 5 जनवरी तक चलता रहा। उसी शाम से बादल घुमड़ आए, पहले बूंदा−बांदी हुई, क्रमशः दस जनवरी तक यह मूसलाधार बरसात में बदल गयी जो दस वर्ग मील के घेरे मात्र में थी। बीस जनवरी तक पानी इतना बरसा कि सानडियागो के नागरिक प्रार्थना करने लगे किसी तरह पानी रुक जाए। सारा व्यापार ठप्प हो गया। सड़कों पर नदियों के रेले बहने लगे। कई मकान बह गए। कुछ दिन पानी रुका, सूर्य देवता बादलों से झाँकी देकर चले गए। काम काज चालू हुआ ही था कि 26 जनवरी को एक बार फिर भयंकर गर्जना के साथ तूफान आया, पानी बरसने लगा एवं मोरेना डैम में 2 फीट प्रति घण्टे की दर से पानी बढ़ने लगा। जब तक कि वह ऊपरी तल से 5 इंच नीचे नहीं रह गया, तब तक पानी बरसता रुका नहीं।
इसमें पचास व्यक्तियों की जान चली गयी। 200 पुल बह गए। बत्तीस दिन तक न गाड़ियों चली, न रेलें। जब सब कुछ ठीक ठाक हो गया, दैनन्दिन व्यापार चलने लगे तो हैटफील्ड अपनी फीस लेने पहुँचा। किंतु उल्टे उस पर आरोप लगाकर कि उसने शहर व आसपास के क्षेत्र का नुकसान किया है, हर्जाना भरने तक सिटी कौंसिल द्वारा जेल में बंद कर दिया गया। लोगों के अनुरोध पर उसे छुड़ाया गया पर उसे वह फीस नहीं मिली क्योंकि सबने इसे मानवी इच्छाशक्ति का चमत्कार नहीं “एक्ट ऑफ गाँड” कहकर सृष्टा का क्रियाकलाप कहकर उसे भगा दिया। फिर भी उसे लोग भूले नहीं। 1947 में उसकी मृत्यु तक उसे उसके इस चमत्कार के कारण बराबर याद किया जाता रहा। सम्भवतः वह अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग बाढ़ की विभीषिका रोकने में नहीं कर सका, नहीं तो वह इतिहास में अमर हो जाता। अंत तक उसने अपने विशिष्ट सम्मिश्रण का फार्मूला किसी को नहीं बताया।
सन् 1964 की कुआलालम्पुर मलेशिया की उस घटना से सभी अवगत है जिसमें वहाँ की सरकार द्वारा घनघोर वर्षा को रोकने के लिए प्रसिद्ध ताँत्रिक रैम्बो को बुलाया गया था ताकि राष्ट्र मण्डलीय हॉकी मैच सम्पन्न हो सके। ध्यान एकाग्र कर रैम्बो ने वर्षा के बादलों को स्टेडियम से दूर हटा दिया, जब तक कि मैच पूरा न हो गया।
लुन्का में प्रवाहित होने वाली ओसर नदी में जबर्दस्त बाढ़ आई हुई थी। सारा नगर कुछ ही क्षणों में जलमग्न हो जाने वाला था। इंजीनियरों के सारे प्रयास विफल हो गये थे। सभी नगर निवास जल समाधि की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसी समय कुछ व्यक्तियों ने फ्रीडियन नामक प्रख्यात संत से जाकर प्रार्थना की-महात्मन्! इस दैवी आपदा से बचाव का कुछ उपाय आप ही कीजिए। कहते हैं कि महात्मा फ्रीडियन ने ओसर नदी की प्रचण्ड धारा को अपनी इच्छा शक्ति से दूसरी ओर मोड़ दिया और नगर को डूबने से बचा लिया।
यह सत्य है कि मानव मन शरीर के बाहर स्थित सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी व्यक्ति की क्षमतानुसार इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। मनीषियों का कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इच्छाशक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियन्त्रण संभव है।
बहुचर्चित पुस्तकें “स्ट्रेंज हैपनिंग्स” एवं “बिटवीन टू वर्ल्ड्स” में इच्छाशक्ति के प्रदर्शन की कई घटनाओं का वर्णन किया गया है। प्रख्यात मनोविज्ञानी फ्रायड इस तरह की शक्तियों में विश्वास नहीं करते थे। किन्तु 25 मार्च 1901 की एक घटना ने इच्छाशक्ति की महत्ता को मानने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया। हुआ यों कि उनके समकालीन प्रसिद्ध मनःचिकित्सक कार्ल जुँग उस दिन उनके घर पर उपस्थित थे। उनने अपनी मानवी एकाग्रता की क्षमता का प्रदर्शन करके फ्रायड के कमरे में रखी वस्तुओं में हलचल पैदा कर दी। वस्तुएँ इस तरह थरथराने लगीं मानो कोई तूफान या भूकंप आ गया हो। इस दृश्य को देख कर फ्रायड आश्चर्य चकित रह गये।
मानवी कार्य पिण्ड में अनन्त असीम सामर्थ्य विद्यमान है। मनस् तत्व की एकाग्रता द्वारा जड़ व चेतन को प्रभावित कर असंभव को भी संभव कर दिखाना संभव है, यह उपरोक्त घटनाक्रमों से प्रमाणित होता है। यदि मनुष्य इस संकल्प शक्ति को अपने अंतःकरण को जगाने, परमतत्व को जानने व उससे अपना संबंध जोड़ने में सुनियोजित कर सकें तो उससे बड़ा सौभाग्यशाली कोई और नहीं।
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