कैसे आयेगा सतयुग?


कैसे आयेगा सतयुग?

धर्मराज युधिष्ठिर एक दिन चिन्तित बैठे थे। उसी समय कहीं से देवर्षि नारद आ गये और चिन्ता का कारण पूछने लगे।

युधिष्ठिर ने कहा-देव अब कलियुग आ पहुँचा, उसने मेरे राज्य में अपने आगमन प्रवेश और परिणाम की कष्ट-कर कथाएँ भी सुनाईं सो लगता है अब धर्मराज्य धरती पर से उठने ही वाला है।

कलियुग के आगमन की बात तो नारद जी को भी मालूम थी पर उन्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि अंधकार और प्रकाश दोनों एक स्थान पर मिल कैसे गये? कलियुग और धर्मराज्य में प्रत्यक्ष भेंट हो सकना भला कैसे संभव हो सकता है। सा उसी प्रश्न को उठाते हुए नारद जी ने पूछा “धर्म और अधर्म का प्रत्यक्ष मिलन कैसे सम्भव हो सका? घटना किस प्रकार घटी, सो हे पाण्डुपुत्र, विस्तार से वह सब विवरण सुनाइये।”

देवर्षि को उच्च आसन पर बिठाकर युधिष्ठिर ने वह प्रसंग बताना आरम्भ किया-

“भगवन् एक दिन एक व्यापारी आया उसके पास अद्भुत घोड़ा था। अर्जुन, भीम, नकुल,सहदेव उधर से आये तो घोड़े को देख कर मुग्ध हो गये और मन चाहा मोल देकर उसे बेच देने का आग्रह करने लगे।”

व्यापारी ने कहा-”धन की आपके यहाँ भी कमी नहीं और मैं भी कोई कंगाल नहीं हूँ। घोड़ा बेचना तो है, पर इसे धनी के हाथों नहीं बुद्धिमानों के हाथों बेचना है, यदि आप लोग बुद्धिमान हों तो एक शर्त करें मेरे चार प्रश्नों का उत्तर देना पड़ेगा। यदि उत्तर सही हुए तो घोड़ा मुफ्त दे दूँगा। यदि उत्तर न दिये जा सके या गलत हुए तो मेरी खींची धर्मरेखा के भीतर आप लोगों को तब तक कैद रहना पड़ेगा जब तक कि कोई आकर सही उत्तर न दे दे।”

युधिष्ठिर ने कहा - “देवर्षि मेरे चारों भाइयों ने शर्त मान ली। उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता पर और मेरे ज्ञान पर बहुत भरोसा था सो मुफ्त में बहुमूल्य घोड़ा पाने का लोभ वे संवरण न सके और शर्त में बँध कर प्रश्न पूछने लगे।”

व्यापारी ने पहला प्रश्न भीम से पूछते हुए कहा-”मैं रास्ते में आ रहा था तो देखा कि एक भयंकर कूप है उसके बीच में रस्सी से बँधा एक पैसा लटक रहा था। उस पैसे से बँधा सौ मन लोहा टँगा था। फिर भी वह रस्सी टूटती न थी पैसा गिरता न था। इसका क्या रहस्य है?”

चारों भाइयों में से कोई उत्तर न दे सका तो शर्त के अनुसार भीम को धर्म रेखा के भीतर कैद होने के लिए जाना पड़ा।

इसके बाद व्यापारी ने दूसरा प्रश्न पूछा - “उसी रास्ते पर चलते हुए मैंने एक जगह पाँच कुण्ड देखे। जिनका पानी अपने आप ऊपर निकल कर बहता था। चार कोनों के कुण्ड जब खाली हो जाते थे तो बीच का कुण्ड उन्हें भर देता था। पर जब बीच का खाली होता तो चारों मिलकर भी उसे भर नहीं पाते थे और वह सूखा हुआ खाली ही पड़ा रहता था। राजकुमार बताओ इसका रहस्य क्या था?”

इस प्रश्न का उत्तर अर्जुन को देना था। वह तो क्या शेष भाई भी मिलकर कुछ समाधान न कर सके। तब शर्त के अनुसार अर्जुन को भी धर्म रेखा में कैद होना पड़ा।

देवर्षि, बात यहीं समाप्त नहीं हुई। व्यापारी ने और भी दो प्रश्न पूछे (1) उसी रास्ते एक जगह प्रौढ़ गौ अपनी छोटी बछिया का दूध पीती पाई गई। (2) उसी यात्रा में एक विचित्र पशु देखा जो मुँह से बुरे बुरे शब्द उच्चारण करता था और मल द्वार से घास खाता था। इन दोनों दृश्यों का रहस्य बताओ?”

नकुल सहदेव ने इस पहेली को सुलझाने का बहुत प्रयत्न किया पर उन्हें भी कुछ नहीं सूझा। सो प्रश्न बिना उत्तर के ही रह गये और नकुल सहदेव को भी धर्म रेखा के भीतर कैद होना पड़ा।

सेवकों ने समाचार मुझे दिया। अद्भुत घोड़ा-विचित्र प्रश्न, मुफ्त में खरीद की शर्त, धर्म रेखा में कैद यह सभी बातें मुझे बहुत अटपटी लगीं सो हे देवर्षि मैं स्वयं उठकर द्वार पर पहुँचा और सारा घटना क्रम देख कर चकित रह गया। फिर भी भाइयों को छुड़ाना तो आवश्यक ही था। सो मैंने साहस करके व्यापारी की पूछी गई पहेलियों के उत्तर देने आरम्भ कर दिये।

(1) धूर्त लोग-एक पैसा दान करके सौ मन यश लूटने का प्रयत्न करते हैं। सौ मन पाप को एक पैसे भर पुण्य के सहारे लटकाये रहना चाहते हैं। सो वह पतली रस्सी कुछ समय अधर में टँगी भले ही रहे, एक दिन वह सारी विडम्बना कुएँ के गर्त में गिरेगी और सारा खेल खत्म हो जायेगा। (2) बीच का कुआँ पिता है और चार कोनों के कुएँ पुत्र। अकेला पिता कर्तव्य धर्म को स्मरण रख कर चारों पुत्रों का पालन पोषण करता है पर स्वार्थी पुत्र अपने वृद्ध पिता की सेवा चारों मिलकर भी नहीं कर पाते और वृद्ध अभिभावक दुखी दयनीय स्थिति में शुष्क और नीरस जीवन बिताते हैं।

(3) पिता माता गौ हैं और सन्तान उनकी बछिया। कितने ही पिता अपने लड़के बेच कर विवाह रचाते हैं और देन दहेज धन कमाते हैं। इसी प्रकार कई ऐसे भी होते हैं जो लड़की को वृद्धों के हाथ बेचकर सम्पत्तिवान बनते हैं। यही गाय द्वारा बछिया का दूध पिया जाना है। (4) वह विचित्र जन्तु था साहित्यकार, कलाकार जो अपनी कृतियों द्वारा लोगों में दुर्बुद्धि उत्पन्न करता है और ऐसी कमाई खाता है जो मल द्वार से खाने के समान घृणित है।

चारों ही प्रश्न पहेलियों का रहस्योद्घाटन सही हो गया सो शर्त के अनुसार व्यापारी को धर्म रेखा के बन्धन से भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव मुक्त करने पड़े और वह अद्भुत घोड़ा भी मुफ्त देना पड़ा।

यह सब तो हो गया- पर मैंने आश्चर्यपूर्वक उस व्यापारी से पूछा-यदि प्रश्नों में पूछे गये सारे घटना क्रम सही हैं तब तो यह कलियुग रूपी पाप साम्राज्य का ही परिचय है। मेरे धर्मराज्य में भला ऐसे कैसे हो सकता है? ऐसी अनीति कहीं कैसे प्रचलित हो सकेगी?

व्यापारी गिड़गिड़ाने लगा और बोला-धर्मराज में ही कलियुग हूँ। अब मेरा पाप राज्य आ पहुँचा सो ऐसी घटनाएँ अनहोनी न रहेंगी। आये दिन पग-पग पर ऐसे ही अनाचार दृष्टिगोचर होंगे। मैं आपको वस्तुस्थिति बताने आया था पर धर्म और अधर्म की न तो प्रत्यक्ष भेंट हो सकती थी और न खुले वार्तालाप की संभावना थी। सो मैंने व्यापारी का रूप बनाया और घोड़े के बहाने राजकुमारों के सामने वस्तुस्थिति की पहेली जैसे रहस्यमय प्रश्नों के साथ पूछा। मैं जानता था कि अन्ततः उत्तर आप ही दे सकेंगे और भेंट का सुअवसर मिल जायेगा और सूचना देने का प्रयोजन सध जायेगा?

युधिष्ठिर ने कहा-”भगवन् मैं इसी से चिन्तित था कि निकट भविष्य में जब लोग ऐसी दुष्ट गतिविधियाँ अपना लेंगे तो उनके दुखों का पारावार न रहेगा।”

नारद जी ने धर्मराज की चिन्ता दूर करते हुए कहा-”मनुष्य की आत्मा में विवेक का प्रकाश पूर्णतया कभी भी नष्ट नहीं हो सकता। इसलिए पाप का पूर्ण साम्राज्य कभी भी छा न सकेगा। विवेकवान आत्माएँ अपने समय की विकृतियों से लड़ती ही रहेंगी और बुरे समय में भी भलाई की ज्योति चमकती रहेगी।

पाप का पूर्ण साम्राज्य कभी भी स्थापित न हो सकेगा। इस आश्वासन से युधिष्ठिर का समाधान हो गया। क्या वह समय नहीं आ गया है, जब कलिका साम्राज्य जाने वाला है व सतयुग की लालिमा अरुणोदय का आभास देने लगी है?

(अखंड ज्योति-1/1989)


कोई टिप्पणी नहीं: