किससे कैसी बात.
(राम चरितमानस)
जब हनुमानजी ने खोज करके श्रीराम को बताया कि सीता माता रावण की लंका में हैं, तो श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ दक्षिण क्षेत्र में समुद्र किनारे पहुंच गए थे। अब समुद्र पार करते हुए लंका पहुंचना था।
श्रीराम, वानर सेना सहित समुद्र किनारे तीन दिनों तक रुके हुए रहे श्रीराम ने समुद्र से प्रार्थना की कि वे वानर सेना को लंका तक पहुंचने के लिए मार्ग दें, लेकिन समुद्र ने श्रीराम के आग्रह को नहीं माना और इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गए। तीन दिनों के बाद श्रीराम, समुद्र पर क्रोधित हो गए और उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि-
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
आशय-तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥
इस दोहे का अर्थ यह है कि श्रीराम क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहते हैं, भय बिना प्रीति नहीं होती है, यानी बिना डर दिखाए कोई भी काम नहीं करता है।
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।।
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।
श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं- हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लेकर आओ, मैं अग्नि बाण से समुद्र को सुखा डालता हूं। किसी मूर्ख से विनय की बात नहीं करना चाहिए। कोई भी मूर्ख व्यक्ति दूसरों के आग्रह या प्रार्थना को समझता नहीं है, क्योंकि वह जड़ बुद्धि होता है। मूर्ख लोगों को डराकर ही उनसे काम करवाया जा सकता है।
कुटिल के साथ न करें प्रेम से बात- श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि जो व्यक्ति कुटिल स्वभाव वाला होता है, उससे प्रेम पूर्वक बात नहीं करना चाहिए। कुटिल व्यक्ति प्रेम के लायक नहीं होते हैं। ऐसे लोग सदैव दूसरों को कष्ट देने का ही प्रयास करते हैं। ये लोग स्वभाव से बेईमान होते हैं, भरोसेमंद नहीं होते हैं। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को संकट में डाल सकते हैं। अत: कुटिल व्यक्ति से प्रेम पूर्वक बात नहीं करना चाहिए।
कंजूस से न करें दान की बात-जो लोग स्वभाव से ही कंजूस हैं, धन के लोभी हैं, उनसे उदारता की, किसी की मदद करने की, दान करने की बात नहीं करना चाहिए। कंजूस व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में धन का दान नहीं कर सकता है। कंजूस से ऐसी बात करने पर हमारा ही समय व्यर्थ होगा।
श्रीराम कहते हैं-
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।।
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।।
ममता में फंसे हुए व्यक्ति से न करें ज्ञान की बात- श्रीराम कहते हैं- ममता रत सन ग्यान कहानी। यानी जो लोग ममता में फंसे हुए हैं, उनसे ज्ञान की बात नहीं करना चाहिए। ममता के कारण व्यक्ति सही-गलत में भेद नहीं समझ पाता है।
अति लोभी से वैराग्य की बात- अति लोभी सन बिरति बखानी। यानी जो लोग बहुत अधिक लोभी हैं, उनका पूरा मोह धन में ही लगा रहता है। ऐसे लोग कभी भी वैरागी (त्यागी) नहीं हो सकते हैं। सदैव धन के लोभ में फंसे रहते हैं। इनकी सोच धन से आगे बढ़ ही नहीं पाती है। अत: ऐसे लोगों से वैराग्य यानी धन का मोह छोड़ने की बात नहीं करना चाहिए।
क्रोधी से शांति का बात-जो व्यक्ति गुस्से में है, उससे शांति की बात करना व्यर्थ है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है। ऐसे समय में वह तुरंत शांत नहीं हो सकता है। जब तक क्रोध रहता है, व्यक्ति शांति से बात नहीं कर पाता है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति अच्छी-बुरी बातों में भेद नहीं कर पाता है।
कामी से भगवान की बात-जो व्यक्ति कामी है, यानी जिसकी भावनाएं वासना से भरी हुई है, उससे भक्ति की बात करना व्यर्थ है। कामी व्यक्ति को हर जगह सिर्फ काम वासना ही दिखाई देती है। अति कामी व्यक्ति रिश्तों की और उम्र की मर्यादा को भी भुला देते हैं। अत: ऐसे लोगों से भक्ति की बात नहीं करना चाहिए।
ऊसर बीज बएँ फल जथा- इस पंक्ति में श्रीराम कहते हैं कि यहां बताए गए सभी व्यक्तियों से न करने योग्य बातें करेंगे, तो कोई फल प्राप्त नहीं होगा। जिस प्रकार ऊसर यानी बंजर जमीन में बीज बोने पर बीज नष्ट हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार यहां बताए गए लोगों से सही बात करना व्यर्थ ही है।
अत: हमारे आसपास रहने वाले ऐसे लोगों से यहां बताई बातें करने से बचना चाहिए। यदि श्रीराम द्वारा बताई गई बातों का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो हमारा ही समय व्यर्थ होगा और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ेगा।
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