कविता-भजन-
कन्हैया तुझे एक नज़र...
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कन्हैया तुझे एक नज़र देखना है।
जिधर तुम छुपे हो उधर देखना है॥
अगर तुम हो दीनों की आहों के आशिक।
तो आहों को अपना असर देखना है॥
सँवारा था जिस हाथ से गीध गज को।
उसी हाथ का अब हुनर देखना है॥
बिदुर भीलनी के जो घर तुमने देखे।
तो हमको तुम्हारा भी घर देखना है॥
टपकते हैं दृग ‘बिन्दु’ तुझे ये कहकर।
तुम्हें अपनी उल्फ़त में डर देखना है॥
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