भक्ति और ज्ञान मार्ग- क्या अंतर है?


भक्ति और ज्ञान मार्ग-
क्या अंतर है?
(सदगुरु जग्गी वासुदेव)

भक्ति का मतलब है कि आपके भीतर हर उस चीज के लिए प्रेम की भावना है, जो आप देखते हैं और जो नहीं देखते हैं। इसका मतलब है कि आपने पसंद और नापसंद के द्वैत को खत्म कर दिया है। इसका मतलब है कि अब आपके लिए 'ठीक है' और 'ठीक नहीं है' का कोई अस्तित्व नहीं रहा। आपके लिए हर चीज ठीक है।

जिस पल आप कोई चीज चुनते हैं, तो आप उसे दूसरी चीजों से अलग कर देते हैं। भक्ति का मतलब है पूरी तरह से चुनावविहीन हो जाना। जब पूरी तरह से चुनाव-विहीनता होती है, जब हर चीज आपको अपने में समेट ले या आप हर चीज को अपने में समेट लें, तब उसे भक्ति कहते हैं। सत्य भी ऐसा ही होता है- सबको शामिल करने वाला।

योगिक संस्कृति में शिव के दो पहलू हैं। एक स्तर पर, 'शिव" सृष्टि का आधार हैं। अगर आप आसमान की तरफ देखते हैं, तो तमाम खगोलीय पिंडों, तारों और आकाशगंगा को पाएंगे, लेकिन उनके बावजूद वहां अथाह खालीपन, एक अनंत शून्यता की मौजूदगी सबसे बड़ी है। इस वक्त भी, इसी शून्यता की गोद में यह संपूर्ण सृष्टि घटित हो रही है। इस शून्यता को ही 'शिव' कहते हैं, और इसीलिए उन्हें सृष्टि का आधार माना जाता है। शिव का दूसरा पहलू आदियोगी, यानी पहले योगी का है। हम चरम प्रकृति और चरम प्रकृति का अनुभव करने वाले के बीच फर्क नहीं करते।

तो अगर आप शिव से मिलना चाहते हैं, तो आप या तो उनसे उन्हीं की शर्तों पर मिलना सीख लीजिए या फिर खुद को विसर्जित कर दीजिए। अगर आपको राजा के साथ होना है, तो आपको या तो राजा बनना होगा या आपको उसका सबसे विनीत सेवक बनना होगा। यही दो तरीके हैं। ज्ञान और भक्ति का मतलब यह है। भक्ति का मतलब है कि आप खुद को शून्य बना लें, ज्ञान का मतलब है आप उनसे उनकी शर्तों पर मिलें। वरना, कोई मिलन नहीं होगा।

अगर आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं और अपनी चरम प्रकृति तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो उसे ज्ञान-योग कहते हैं। ज्ञान-योग खालिस बुद्धि होता है। ज्ञान योगी किसी चीज में विश्वास करने, और अपनी पहचान किसी चीज से जोड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकते। अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी बुद्धि खत्म हो जाएगी। लेकिन भारत में ज्ञान-योग के साथ कुछ ऐसा हुआ है कि इसकी वकालत करने वाले लोग तमामों चीजों में विश्वास करते हैं, 'मैं आत्मा हूं, मैं परमात्मा हूं,' वगैरह।

उन्हें ब्रह्मांड की व्यवस्था, आत्मा की लंबाई-चौड़ाई और इसके आकार में भी विश्वास है। उन्होंने ये सारी बातें किताबों में पढ़ी है। यह ज्ञान-योग नहीं है। किसी चीज के बारे में आपकी जानकारी, जो आपके लिए जीता-जागता अनुभव नहीं है, एक शुद्ध कचरा है। हो सकता है कि वह बहुत पवित्र कचरा हो, लेकिन वह आपको मुक्त नहीं करता, वह आपको सिर्फ उलझाता है।

सही मायने में ज्ञान-योग के मार्ग पर चलने के लिए चंद लोगों के पास ही जरूरी बुद्धि होती है। ज्यादातर लोगों को भारी मात्रा में तैयारी की जरूरत होगी। बुद्धि को छुरी जैसी पैनी बनाने के लिए एक पूरी पद्धति होती है जिससे कि उस पर कुछ भी न चिपके। इसमें बहुत वक्त लगता है, क्योंकि मन बड़ा मारक होता है। वह लाखों तरह के भ्रम पैदा कर देगा। कुछ ही लोग इसकी साधना सही तरीके से कर पाते हैं।

ज्ञान के मार्ग पर बहुत ईमानदार होना पड़ता है। भक्ति के मार्ग पर चलने वाले अपने इष्टदेव में मस्त रहने वाले लोग हैं, उन्हें समाज से कोई सरोकार नहीं होता। प्राचीन काल से ही भक्ति हमेशा से सबसे अहम मार्ग रही है, क्योंकि इसे हासिल करना बड़ा आसान लगता है। हां, यह सबसे जल्दी पहुंचाने वाला मार्ग है, लेकिन इसमें कई गड्ढे, कई फंदे हैं।

ज्ञान का मार्ग मुश्किल है, लेकिन यह 'खुली आंखों' से चलने वाला रास्ता है। भक्ति 'बंद आंखों' से चलने वाला रास्ता है। ज्ञान मार्ग पर हर कदम जो आप लेते हैं, आगे या पीछे, आप जानते हैं कि आप कहां जा रहे हैं। आप जानते हैं कि आप कहां पर गिरे, आप कहां तक पहुंचे। भक्ति मार्ग पर आप अगर गड्ढे में गिर भी जाएं, तो आपको पता नहीं चलता। अगर आप खुद अपने ही भ्रमजाल में फंस जाते हैं, तो आपको पता नहीं चलता।

भावनाओं के साथ एक जबरदस्त तीव्रता होती है। आम तौर पर ज्यादातर लोगों में भावना विचार से ज्यादा तीव्र होती है। इसीलिए भक्ति का गुणगान किया गया है और किसी दूसरे मार्ग की अपेक्षा उसकी चर्चा ज्यादा होती है, क्योंकि ज्यादातर लोगों में उनका भावना पक्ष प्रबल होता है - उनके विचार या उनके काम से भी ज्यादा मजबूत। लेकिन भावना की भी अपनी सीमा होती है।

बिना ज्ञान के, बिना सही तरह की समझ के, बिना अपनी अक्ल को खोले, बस भावना के मार्ग पर चलते जाने से मतिभ्रम जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। यह बहुत सुंदर, सुखद, परमानन्द जैसी लग सकती है, लेकिन यह एक ठहराव ला सकती है। दूसरी तरफ, भक्ति के बिना, भावना के बिना, योगिक अभ्यास बस बंजर, रूखे, बेजान हो जाते हैं। बिना भक्ति के स्पर्श के, आपका ज्ञान अक्सर बाल की खाल निकालना बन जाता है। तो अगर आप खुद के भीतर ज्ञान और भक्ति का सही मेल पैदा कर लेते हैं, तो इसके सटीक कॉकटेल से आपकी आध्यात्मिक यात्रा बहुत तेजी से आगे बढ़ सकती है।

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