कविता-भजन-
भटका बहुत मन माया में..
भटका बहुत मन माया में, अब हरि से ध्यान लगा लेना ।
करुणाकर केशव को भज कर, यह जीवन सफल बना लेना ।
झूठे झगड़ों को त्याग जरा, बेखबर नींद से जाग जरा ।
प्रभु पद से कर अनुराग जरा, सत्संग का रंग चढ़ा लेना ।
क़र्ज़ नर तन लिया था, उसको तू बिसरा गया ,
सूद का तो जिक्र किया है, मूलधन भी खा गया ।
धर्म कि डिग्री हुई, अब काल कुर्की आएगी ,
ज़िंदगी तेरी अधम, नीलम कर दी जायेगी ।
यदि यम बंधन से बचना है, नरकों में कभी न जाना है ।
तो झूठी माया रचना है, दिल पर यह ज्ञान जमा लेना ।
अपनी चालों में तुझे ,कामादिक ने फंसा लिया ,
पाप कि हुंडी खरीदी, स्वांस-रत्न लुटा दिया ।
अब पता तुझको चलेगा, अपने उस नुकसान का ,
होने वाला है दिवाला, प्राण की दुकान का ।
दृग ‘बिदु’ न व्यर्थ लुटाना अब, न ख़ाली करना खजाना,
आख़िर का सोच ठिकाना अब, पूँजी बचे बचा लेना ।
करुणाकर केशव को भज कर, यह जीवन सफल बना लेना ।
झूठे झगड़ों को त्याग जरा, बेखबर नींद से जाग जरा ।
प्रभु पद से कर अनुराग जरा, सत्संग का रंग चढ़ा लेना ।
क़र्ज़ नर तन लिया था, उसको तू बिसरा गया ,
सूद का तो जिक्र किया है, मूलधन भी खा गया ।
धर्म कि डिग्री हुई, अब काल कुर्की आएगी ,
ज़िंदगी तेरी अधम, नीलम कर दी जायेगी ।
यदि यम बंधन से बचना है, नरकों में कभी न जाना है ।
तो झूठी माया रचना है, दिल पर यह ज्ञान जमा लेना ।
अपनी चालों में तुझे ,कामादिक ने फंसा लिया ,
पाप कि हुंडी खरीदी, स्वांस-रत्न लुटा दिया ।
अब पता तुझको चलेगा, अपने उस नुकसान का ,
होने वाला है दिवाला, प्राण की दुकान का ।
दृग ‘बिदु’ न व्यर्थ लुटाना अब, न ख़ाली करना खजाना,
आख़िर का सोच ठिकाना अब, पूँजी बचे बचा लेना ।
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