संतोष करना सीखो.
(सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)
कुछ हो, एक दिन मोर ने मन में सोचा, "मेरे साथ बड़ा बुरा बर्ताव किया गया है। मुझे वैसी अच्छी आवाज नहीं दी गयी जैसे कोयल को, नहीं तो रूप के अनुरूप ही मेरा स्वर होता।" उसने शारदा से कोयल की-सी आवाज माँगी।
देवी ने उसकी विनय पर यह उत्तर दिया- "हर चिड़िया को उसके योग्य दान मिला है। कोयल काली और सीधी चिड़िया है। उसको मधुर स्वर मिला। तुम्हारी आवाज तीखी और दिल को वैसी लुभाने वाली नहीं, मगर तुम्हारे पर इतने सुन्दर हैं कि देखकर दूसरों को जलन होती है। तुम्हें जो कुछ मिला है, उसके लिए कृतज्ञ रहो। जो तुम्हें नहीं मिल सकता, उसके लिए हाथ न बढ़ाओ। अपने भाग्य से सन्तोष रखना सीखो।"
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